महात्मा गाँधी का जवाबी पत्र :-
'अनेकों में से एक' द्वारा लिखित यह पत्र, सुखदेव का पत्र है. श्रीयुत सुखदेव सरदार भगत सिंह के साथी थे. उपरोक्त पत्र उनकी मृत्यु के बाद मुझे मिला था. समयाभाव वश मैं इस पत्र को इससे पहले नहीं प्रकाशित करा सका. पत्र ज्यों का त्यों छाप दिया गया है.
पत्र का लेखक "अनेकों में से एक" नहीं है. अनेकों-राजनीतिक स्वाधीनता के लिए फांसी नहीं स्वीकार करते. राजनीतिक हत्या चाहे कितनी ही निंदनीय क्यों न हो, परन्तु ऐसे भयानक कार्यों के लिए प्रेरित करने वालों से, उनका देश-प्रेम और साहस छिपाए नहीं छिप सकता. हमें इस बात की आशा करनी चाहिए कि राजनीतिक हत्या का पंथ बढ़ने ना पावे. यदि स्वाधीनता प्राप्त करने का भारतीय प्रयोग सफल हो गया, जिसकी सफलता में कोई संदेह नहीं है, तो राजनीतिक हत्या का पेशा दुनिया में सदैव के लिए उठ जायेगा. जो हो, मैं तो इसी विश्वास को लेकर अपना काम कर रहा हूँ.
पत्र-लेखक का कहना ठीक नहीं है, कि मैंने क्रांतिकारियों से उनके आन्दोलन स्थगित कर देने के लिए केवल भावुक अपीलें की हैं, विपरीत इसके मेरा तो दावा है, कि मैंने उन्हें वैसा करने के ठोस कारण बतलाये हैं. यद्यपि उन कारणों को मैं कई बार इस पत्र के कालमों में प्रकाशित कर चुका हूँ, फिर भी उन्हें यहाँ दुहराता हूँ:-
(१) क्रांतिकारी कार्यवाइयों से हम ध्येय के निकट नहीं पहुंचे.
(२) इनके कारन देश का सैनिक व्यय बढ़ गया है.
(३) इनके कारण सरकार का दमन-चक्र बढ़ गया है, जिससे देश का कोई लाभ नहीं हुआ.
(४) जब-जब कहीं क्रांतिकारियों द्वारा कोई हत्या हुई है, तब-तब उस स्थान के लोगों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ा है.
(५) क्रांतिकारी कार्यवाइयों द्वारा जन-समुदाय में जागृति में कोई सहायता नहीं पहुंची.
(६) जन-समुदाय पर इनके कामों का असर दो तरह से बुरा पड़ा है. एक तो जनता को अतिरिक्त व्यय का भार सहना पड़ा है, दूसरे सरकार के अप्रत्यक्ष क्रोध का निशाना बनना पड़ा है.
(७) भारत की भूमि तथा उसकी परंपरा क्रांतिकारी हत्याओं के उपयुक्त नहीं है. इस देश के इतिहास में जो शिक्षा मिलती है, उससे मालूम होता है कि, राजनीतिक हिंसा यहाँ उन्नति नहीं कर सकती.
यदि क्रांतिकारी, जनसमुदाय को अपने मत में परिवर्तित कर लेने का विचार करते हैं, तो उस हालत में हमें स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए बहुत ज्यादा तथा अनिश्चित समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.
(९) यदि जन साधारण हिंसात्मक उपाय का समर्थक हो भी जाए, तो उसका परिणाम अंत में अच्छा नहीं हो सकता. यह उपाय, जैसा कि दूसरे देशों में हुआ है, स्वयं उस उपाय के संचालकों को ही नष्ट कर देता है.
(१0) क्रांतिकारियों के सामने उनके विपरीत उपाय अहिंसा की सार्थकता का भी प्रत्यक्ष प्रदर्शन हो चुका है. उन्होनें देखा होगा, कि अहिंसात्मक आन्दोलन, क्रांतिकारियों की स्फुट हिंसा तथा कुछ-कुछ स्वयं अहिंसात्मक आन्दोलन वालों की हिंसा के होते हुए भी, कैसे बराबर अपनी गति पर चलता रहा.
(११) क्रांतिकारी मेरी इस बात को मान लें, कि उनके आन्दोलन ने अहिंसात्मक आन्दोलन को कोई लाभ नहीं पहुँचाया, बल्कि हानि ही पहुंचाई है. यदि देश का वातावरण पूर्ण रीति से शांत रहता तो हम अपने लक्ष्य को अब से पहले ही प्राप्त कर चुके होते.
मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कि उपरोक्त बातें ठोस सत्य हैं, केवल भावुक अपीलें नहीं हैं. पत्र-लेखक ने, मैंने क्रांतिकारियों से अब तक जो अपीलें की हैं, उनका विरोध किया है. लेखक का कहना है कि इन सार्वजनिक अपीलों को निकाल कर मैंने नौकरशाही को क्रांतिकारियों के आन्दोलन दबाने में सहायता की है. नौकरशाही को क्रांतिकारी आन्दोलन दबाने के लिए मेरी सहायता की आवश्यकता नहीं है. वह तो अपने अस्तित्व के लिए क्रांतिकारियों से और मुझसे दोनों से लड़ रही है. उसे अहिंसात्मक आन्दोलन हिंसात्मक आन्दोलन की अपेक्षा अधिक भयानक मालूम होता है. वह हिंसात्मक आन्दोलन का सामना करना तो जानती है. परन्तु अहिंसात्मक आन्दोलन से घबराती है, जिसने उसकी जड़ बहुत पहले ही हिला दी है. राजनीतिक हत्या करने वाले व्यक्ति भीषण जीवन-पथ पर पैर रखने के पहले ही समझ लेते हैं, कि उन्हें अपने कार्यों का कौन सा मूल्य देना पड़ेगा. ऐसी अवस्था में संभवतः मेरा कोई भी कार्य उनकी स्थिति को किसी प्रकार से अधिक आशंकाजनक नहीं बना सकता. यह जान कर, कि क्रांतिकारी दल अपनी कार्यवाइयों को छिप कर करता है, मेरे पास उस दल के अज्ञात सदस्यों तक अपील पहुंचाने के, सिवा सार्वजानिक रूप से लिखने के और कोई दूसरा उपाय नहीं रह जाता. मैं कह सकता हूँ, कि मेरी सार्वजानिक अपीलें बिलकुल निरर्थक नहीं गयी. मेरे सहयोगियों में पहले के बहुत क्रांतिकारी हैं.
पत्र-लेखक की शिकायत है कि सत्याग्रही राजबंदियों के अतिरिक्त दूसरे राजबंदी नहीं छोडे गए. 'यंग इंडिया' के पृष्ठों में लिख कर मैं बतला चुका हूँ कि किन कारणों से अन्य राजनीतिक बंदियों के छोड़ने के विषय में ज्यादा जोर नहीं दे सका. स्वयं मैं तो सब बंदियों के छूट जाने के पक्ष में हूँ, और मैं उनके छुटकारे के लिए कोई प्रयत्न उठा न रखूँगा. मुझे मालूम है, कि कुछ बंदियों को तो अब से बहुत पहले छूट जाना चाहिए था. कांग्रेस ने इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव भी पारित किया है. उसने श्रीयुत नैरीमन को अब तक के न छूटे हुए राजबंदियों की नामावली बनाने का काम सौंप दिया है. नामावली तैयार हो जाते ही उन्हें छुडाने का प्रयत्न किया जायेगा. परन्तु जो लोग छूट चुके हैं, उन्हें क्रन्तिकारी हत्याओं को रोककर हमारी सहायता करनी चाहिए. हत्या और छुटकारा दोनों बातें साथ-साथ नहीं हो सकती.
निस्संदेह ऐसे राजबंदी हैं, जिन्हें तो हर हालत में छुडाना पड़ेगा. मैं इस सम्बन्ध में लोगों को यह विश्वास दिला देना चाहता हूँ कि राजबंदियों के छुटकारे में देरी का कारण हमारी इच्छा में कमी नहीं है, वरन योग्यता की कमी है. यह भी याद रहे, कि यदि स्थायी समझौता हो गया तो सम्पूर्ण राजनीतिक बंदियों को छोड़ना ही पड़ेगा. यदि स्थायी समझौता न हुआ, तो अभी जो लोग बाहर उनको छुडाने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे उन्ही के साथ जेल के अन्दर दिखलाई पड़ेंगे.
-Swaraj T.V. Desk
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