शरद पवार कृषि मंत्री हैं कि क्रिकेट-मंत्री, समझ में नहीं आता. इतना बड़ा निठल्ला और नकारा कृषिमंत्री आजतक नहीं देखा. लोगों का जीना दूभर हो गया है. देश अब भूखमरी के कगार पर खडा है, कृषि-मंत्री केवल डाटा-बाजी में लगे हैं.
शरद पवार के पास अनेकों फैक्ट्रियां, अकूत धन-सम्पदा मौजूद है. हजारों करोड़ के मालिक शरद पवार को गरीबी का तनिक भी एहसास नहीं है. पवार की भूमिका नीरो की तरह हो गयी है. रोम जब जल रहा था...नीरो बैठकर बांसुरी बजा रहा था. पवार की लापरवाही अफसोसजनक है.
हर चीज का दाम आसमान छू रहा है. दाल, रोटी, नमक, दूध चीनी नाम गिना कर कागज क्यों ख़राब करना... चारों और हाहाकार मचा है...
इस चुनाव से पहले २० रुपये किलो चीनी बाजार में उपलब्ध थी. आज मैंने ३५ रूपये किलो चीनी बाजार से ख़रीदा... जिंदगी आचार-रोटी खाने को विवश है. दाल खरीदने की हिम्मत ही नहीं है.
देश में प्रतिवर्ष कुल चीनी की खपत २१० लाख तन है. पिछले साल की खपत के बाद ८० लाख टन चीनी बच गयी थी, १५० लाख टन चीनी उत्पादन की आशा है. यानि २३० लाख टन (८०+१५०) अब भी देश में मौजूद है. "चीनी महँगी हो सकती है" का बयान देकर पवार ने जमाखोरों को मौका दिया. बाजार में एक ही दिन में पवार के बयान के बाद चीनी बाजार से गायब हो गई. कुछ ही दिन के बाद चीनी का मूल्य ४० रूपये किलो हो सकता है.
यह पवार का जमाखोरों के साथ समझौता है...!
कांग्रेस का सौ दिन यानि १००% महंगाई. सौ प्रतिशत महंगाई का रिकार्ड, कांग्रेस के सौ दिन के शासन की उपलब्धि है.
बेशर्म सल्तनत उत्सव मना रही है, कि हमने सौ दिन पूरा किया. सौ दिन का जब यह हाल है, तो अभी सरकार को १६०० दिन और गुजारना है. केवल कल्पना की जा सकती है. इस कपूत का पाँव पालने में देखकर क्या करेंगे?
८२ दिन का भोजन मात्र शेष बचा है देश में. राष्ट्रीय सहारा की खबर चौकाने वाली है.
कृषि मंत्रालय के आंकडों पर अगर ध्यान दें, तो अभी गोदाम में मात्र ५०.४ मिलियन टन अनाज मौजूद है. १८.३ मिलियन टन अनाज की प्रतिमाह खपत है. यानि तीन महीने के बाद सरकार हाथ खडा कर देगी, कि देश को हम खाना नहीं खिला सकते. देश भूखों मरने को विवश होगा.
पिछले वर्ष जब रिकार्ड उत्पादन हुआ था, तब चावल की पैदावार ९९.१५ मिलियन टन और गेंहू की पैदावार ८०.५८ मिलियन टन थी.
इस बार तो सूखा ने १९६५ का रिकार्ड तोड़ दिया है. जहाँ की ६०% खेती मानसून पर टिका हो, उस खेती का क्या होगा? ४०% खेती को ही सरकार सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करा पा रही है. उसमे बिजली की इतनी किल्लत हो गई है कि राजस्थान को अब ए.सी. चलाना बंद करना पड़ रहा है.
पंजाब, हरियाणा की हालत पतली है. बिहार और यू.पी. की राजनीति से हम रू-ब-रू हैं ही. बिहार का अधिकांश जिला सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है. बुंदेलखंड और विदर्भ में हो रही आत्महत्या कैसे रुकेगी?
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-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.
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"शरद पवार कृषि मंत्री हैं कि क्रिकेट-मंत्री"
वाकई एक विचारनीय प्रश्न किया है आपने......
वैसे भी सच तो यही है कि पवार बाज़ार के दलाल की भूमिका में ही दिखाई पड़ते हैं.
लेकिन दोषी केवल पवार ही नहीं हैं, पूरी सरकार ही कटघरे में कड़ी है. प्रधानमंत्री कुछ बोल रहे हैं, तो कृषि मंत्री कुछ और.....
खामी पूरी व्यवस्था में है.....
एक और भूख से बेहाल जनता है तो दूसरी और सौ दिन की सफलता का जश्न मना रही सर्कार.....
गरीब जनता का मजाक ना उडाएं तो बेहतर है.
लेख प्रशंसनीय है.