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"अंग्रेजों भारत आओ" वाली कांग्रेस...

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 8/10/2009 12:56:00 pm


जनरल डायर मारा जा चुका है. हिंदुस्तान का गरम खून उबल रहा है. 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' का नारा इस्पाती शक्ल ले चुका है. कोई विकल्प शेष नहीं बचा है, ब्रिटिश सल्तनत के पास...
१४ जुलाई से कांग्रेस में भी सुगबुगाहट है. गाँधी कह रहे हैं कि हिंसा और कायरता में चयन करना है, तो गाँधी हिंसा को चुनेगा...
७ अगस्त, १९४२ को कांग्रेस कमिटी की बैठक शुरू हो चुकी है. आजादी के शंखनाद का समय करीब है. क्रांतिकारियों का गुस्सा भिन्न-भिन्न शब्दों में फूट रहा है. कोई कह रहा है कि 'लीव इंडिया' (leave india) तो कोई कह रहा कि 'अंग्रेजों गेट आउट' ..... राज गोपालाचारी रिट्रीट और विद्ड्राल' की बात सूझा रहे हैं. युसूफ के भीतर 'मादरे-वतन' की मुक्ति की छटपटाहट तीव्र हो चुकी है. उनके मुंह से निकलता है..'क्विट इंडिया (Quit india)....गाँधी ने 'आमीन' कहा और हो गयी शुरुआत...'Quite India' यानि 'भारत छोडो' आन्दोलन की...
अब तक बहुत ही स्पेस था ब्रिटिश राज के लिए भारत में टिके रहने का. पर वक़्त बदल चुका है. पूरा देश उबल पड़ा है. चारों और तोड़-फोड़.....अंग्रेजों के समझ में आ गया है, कि अब उन्हें बोरिया बिस्तर बांधना ही पड़ेगा......
भयभीत अंग्रेजों ने, आन्दोलन की अगुआई करने वाले गाँधी, नेहरु, पटेल आदि को कैद कर लिया. पूरा आन्दोलन असंवैधानिक घोषित हो गया. अरुणा आसफ अली जंग-ए-आजादी की कमान थामने को तैयार है. उन्होंने ही 'टैंक मैदान' में तिरंगा फहराया..
क्रन्तिकारी हर मोर्चा पर लड़ने को बेताब है. डॉ. उषा मेहता जैसी शख्सियत ने तो ४३.३४ मीटर बैंड का रेडियो-बुलेटिन शुरू भी किया. रेडियो के माध्यम से आन्दोलनकारियों के बीच समन्वय जारी रहा.
भारत छोडो आन्दोलन ने सिद्ध किया कि अंग्रेजों के रहते भारत का भला नहीं हो सकता. कांग्रेस के पास केवल आजादी की ही तैयारी नहीं है, बल्कि नए भारत के निर्माण की संकल्पनाएँ भी मौजूद हैं.
गाँधी मैनचेस्टर के कपडों की होली जला रहे हैं. विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार ही केवल नहीं था, बल्कि स्वावलम्बी भारत के निर्माण के लिए चरखा भी पास था. ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्राण कहाँ बसता है, गाँधी यह जानते थे., और वहीँ प्रहार भी करते थे.
ब्रिटिश साम्राज्वाद को नेहरु से कोई खतरा नहीं था, खतरा था तो केवल गाँधी से. बाजारवाद के जिन पंखों पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने उडान भरा था, गाँधी उन पंखों को ही काट डालना चाहते थे.
भारत के विकास की अवधारणा तय थी. गाँधी ने ताबीज दिया था कि कोई भी कानून बनाते वक़्त यह जरूर सोचा जाए कि इसका परिणाम विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को कितना होगा?
नामधारी कांग्रेसी आज हमारे बीच मौजूद हैं. ये स्वागत में खड़े हैं कि कोई अंग्रेज कब हमारे यहाँ आये....
एक ईस्ट इंडिया कंपनी की तबाही हम झेल चुके हैं. अभी हजारो-हजार विदेशी कम्पनियाँ हमारे यहाँ आ चुकी हैं. भारत के बाजार पर विदेशी कंपनी का कब्जा हो चुका है. एक भी भारत की बनी वस्तुएं सामने नहीं दिखती. सवेरे उठो 'कोलगेट' से दांत साफ़ करो और रात में 'गुडनाईट' लगा कर सो जाओ. कोलगेट से लेकर गुडनाईट की टिकिया के बीच स्वदेशी वस्तुएं गायब हैं.
'स्वदेशी और स्वराज' का नारा कांग्रेसियों ने दफ़न कर दिया है. गोडसे ने गाँधी को एक बार मारा, कांग्रेसी, गाँधी को रोज मार रहे हैं.
गाँधी का भारत भूखा है. उनका किसान आत्महत्या कर रहा है. उनकी खेती बेकार, बंजर और बिकाऊ हो गयी है. गाँधी के जल, जंगल, जानवर और जमीन पर फिर हमने अंग्रेजों को बिठा दिया है. बुनकर बेहाल है. खादी विचार नहीं, व्यापार है. आमजनों की पहुँच से खादी कहीं दूर है.
ईश्वर से प्रार्थना है कि कांग्रेस को इतिहास बोध हो जाए. अपने ही गौरवशाली अतीत को पहचान ले. विदेशी कंपनियों के हवाले वतन साथियों का राग न अलापे.
कांग्रेस के नेहरूवियन मॉडल के परिणामों को देश देख चुका है. आजादी का ६३वां साल मनाने जा रहे हैं. थाली से रोटी गायब है. दाल-सब्जी तो सपना हो गया है.
हमारी कुर्बानियां इन मुट्ठीभर अय्याशों के लिए नहीं हुई हैं.
देश का भूखा आम-अवाम एक और आन्दोलन की तैय्यारी में है, वह है- "विदेशी कंपनियों भारत छोडो.."

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3 Response to ""अंग्रेजों भारत आओ" वाली कांग्रेस..."

  1. JEE.........BILKUL THIK KAHA APNE....GANDHI KO TO ISS CONGRES NE HI MARA HAI.....BALKI AAJ TAK UNHE NOCH BHI RAHE HAIN YE CONGRESSI....

    ABHI SADAN MEIN DO PRAKAR KE GANDHI MAUJOOD HAIN...EK RAHUL AUR DOOSRA VARUN GANDHI.....
    EK HATH JODE FIR RAHE HAIN,,,,,AUR DOOSRA HATH KATNE KA HATHIYAR DHOONDH RAHA HAI,,,

    JAI HO GANDHI....JAI HO TUMHARI VIRASAT.

     

  2. Anonymous Said,

    gandhi ke naam ko bechkar hi congress aur nehru parivar ka shasan is desh par itne salo se raha hai, bawjood desh ke logo ne sahi aajadi ko mahsoos nahi kiya hai aaj tak, par unke kargujario se badhte mahgai se log do waqt ke bhojan se jaroor azad hote ja rahe hai.

     

  3. Unknown Said,

    umda post !
    vichaarpoorna post
    badhaai !

     


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