'नया मियां प्याज ज्यादा खाता है!'. मैं भी नया-नया संघी बना था. संघ के एक स्वयंसेवक श्याम जी 'संघ-साहित्य' बेचते थे. एक से एक किताब लाते थे. 'यों देश बाँट गया', 'मोपला विद्रोह', 'विचार नवनीत', राष्ट्रान्तरण बनाम धर्मान्तरण', 'मैं, मनु और संघ'.....आदि-आदि.
एक दिन उन्होंने कहा कि "गुरु एक किताब पढ़ लोगे तो दिमाग ख़राब हो जायेगा... गाँधी को गली देने लगोगे, रियली भाई, गाँधी ने इतिहास में गंध फैला रखा है. देश तोड़ दिया... मुस्लिम हितैषी गाँधी, हिन्दुओं का कितना बड़ा दुश्मन था.?"
मैंने भी कहा कि इतनी देर क्यों? जल्दी दीजिये किताब. उन्होंने पुस्तक दिया-
"गाँधी वध और मैं"
मैं नया-नया कॉलेज में आया था. विशुद्ध कस्बाई मन. भावना से भरपूर.... मैं भी गोडसे के बयान की गिरफ्त में आ गया; और फिर शुरू हो गया गाँधी के खिलाफ बोलने में... गाँधी पर जब मैं बोलता तो अनपढ़ लोगों को आहत देखता. उनकी आँखों में विस्मय होता. उनका मौन कहता, मानो मैंने गाँधी पर बोलकर कोई पाप कर दिया हो; उनकी श्रद्धा और विश्वास पर मैंने चोट कर दी हो.
आज मैं शीर्षक समझ पा रहा हूँ, कि गाँधी के लिए 'वध' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? गाँधी के साथ हत्या, मर्डर, किलिंग शब्द का भी प्रयोग हो सकता था, पर यह वध क्यों?
हमारे समाज में 'वध' शब्द या तो 'रावण' से जुड़ा है या 'कंस' से...!
तो क्या गाँधी का जीवन 'रावण' और 'कंस' की तरह था? क्या गाँधी इतना बड़ा अत्याचारी, लुटेरा, अनाचारी और हत्यारा था, कि उसका वध करना पड़ा?
संघ शिविरों में बिकने वाली किताबों में 'गाँधी वध और मैं' एक प्रतिनिधि किताब होती है. खूब कमाई होती है, इस किताब को बेचकर.
कथित तौर पर एक से एक विद्वान, विचारक, वक्ता और चिन्तक वहां दिखते थे; पर किसी का विरोध नहीं था, कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर लिखी गयी इस किताब को नहीं बिकने देना चाहिए...
एक बार जब मैंने कहा भी तो एक अधिकारी ने कहा कि यह ऐतिहासिक मामला है. नयी पीढी को जानने का हक है कि इतिहास की विद्रूपताएं क्या-क्या हैं?
आज पटेल पर जसवंत ने कुछ लिखा, तो वे अधिकारी क्यों नहीं बोलते कि यह इतिहास का मामला है, इसे जानने का हक है देश को? क्यों निकाल दिया गया जसवंत को? क्यों उनकी किताब पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है? गोडसे की लिखी किताब पर भाजपानीत सरकारों ने प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया?
संघ, नेहरु के विरोध में ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकता. जिन्ना को दुश्मन नंबर वन बनाना ही पड़ेगा. जिन्ना अगर साफ़-सुथरा हो गए तो मुस्लिम घृणा पर आधारित भावी राजनीति का क्या होगा? नेहरु के अत्यधिक विरोध से तो हिन्दू भी बंट सकते हैं.
'गांधीवधी-समाजवाद' या 'गांधीवादी-समाजवाद'....? गाँधी को प्यार कर या तिरस्कार कर, पर गाँधी को नकारकर कोई राजनीति देश में नहीं चल सकती. विरोध हो या समर्थन, गाँधी आज भी केंद्र में हैं.
गाँधी नकली मुद्दा, नकली विरोध और नकली नेतृत्व के पक्षधर नहीं हैं. गाँधी के मन और जीवन में भारत दिखता है. उनकी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समझ में भारतवाद दिखता है.
सूचना तकनीक के विस्फोट के इस दौर में बातें अब गोपनीय नहीं रह सकती. अपने आडवाणी को उन्होंने 'लौह-पुरुष' कहा. फिर अब दूसरे 'लौह-पुरुष' की क्या आवश्यकता है? उस सरदार ने तो गृहमंत्री रहते संघ पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया था. पटेल तो दुश्मन नंबर वन होना चाहिए. संघ का अपना 'लौह-पुरुष' तो हो ही गया है, अब कोई नकली 'बापू' भी बना ले. वैसे गाँधी के नाम पर दो गाँधी को तो खोज ही लिया है. पर इस मेनका गाँधी और वरुण गाँधी से बहुत भला नहीं होगा संघ का.
भाई! मेनका गाँधी कुत्तों को बचायेगी कि मुसलमानों को? वरुण गाँधी तो इस्लाम को निहत्था ही बना देना चाहता है..
अगर इन्ही 'गांधियों' पर भाजपा का 'गांधीवादी समाजवाद' खडा होना है तो जसवंत को निकालना और उनकी किताब पर प्रतिबन्ध जरूरी है. 'गांधीवध और मैं' को 'घोषणा-पत्र' में शामिल करें.. गाँधी का सम्मान न ही सही, पर गाँधी का अपमान करके भी पार्टी जिन्दा रह ही लेगी......
देखते रहिये गाँधी का बाजार बाजारभाव....
-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.
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वाह भई वाह !
युवा काल में मैंने भी ये पुस्तक पढ़ी थी..आपको जो लगा वो आपका नजरिया होगा,लेकिन ये पुस्तक बहुत से नए तथ्यों की और इशारा करती है जिन पर सामान्यतया चर्चा तक नहीं होती!इसलिए प्रतेक को यह पुस्तक पढ़नी जरूर चाहिए!आपने किताब में दिए गए तर्क और वितर्क पर चर्चा करे बिना सीधे ही एक निर्णय सुना दिया है...!
विजयेन्द्र भाई आपने जो लिखा वह विमर्श के योग्य है। मैं भी एक समय में जब अप जैसी परिस्थितियों में था तो संघ से प्रभावित होना या कम्युनिज्म से प्रभावित होना आदि सामान्य लक्षण था। अब कदाचित उस उम्र की अपेक्षा अधिक अनुभव हुए हैं और विवेक विकसित हो पाया है। आप निम्न पुस्तकें भी पढ़ें----
१. गोडसे की आवाज़ सुनो- जगदीश वल्लभ गोस्वामी
२. गांधी वध क्यों? - गोपाल गोडसे
३. महात्मा गांधी भारत के लिये अभिशाप - आनन्द प्रकाश मदान
४. गांधी बेनकाब - हंसराज रहबर
५ क्यागांधी महात्मा थे? - डा.मंगाराम
६. गांधी जी की विचित्र अहिंसा - भक्त रामश्रण दास
७.let's kill gandhi - Tushar gandhi
हम जब तक व्यापक विमर्श नहीं करते किसी निष्कर्श पर नहीं जा सकते चाहे वह गांधीवाद हो या साम्यवाद या कुछ अन्य....
Maine bhi apne blog 'gandhivichar.blogspot.com'paris vishay par charcha ki hai ki Sanghiyon ko baar-baar jinna par hi pyaar kyon aata hai. Jahan tak Gandhiji ke vicharon ki baat hai, unki kisi bhi kitaab ko utha kar dekh lein dusri aur kisi bhi kitab ka nasha utar jayega; Kyonki Gandhi 'Intakaam' nahin 'Prem' ke prateek hain.
Yun hi likhte rahiye.
vimarsh yogya vishay......
Gandhi ko lagatar gali dete rahne walon ko jawab dena hi hoga.....
sarahniya pahal.....
मित्र आप चाहे संधी ऐनक लगाइये अथवा नही किन्तु गांधी जी की भूलो को अस्वीकार नही किया जा सकता।
मित्र आप चाहे संधी ऐनक लगाइये अथवा नही किन्तु गांधी जी की भूलो को अस्वीकार नही किया जा सकता।
और उनकी महानता को इंकार भी नही किया जा सकता।