गर्म तपती दोपहर है,
लड़कियों की जिंदगी,
महज पथरीली डगर है,
लड़कियों की जिंदगी.
हर घडी हर पल सताए,
पत्थरों का डर जिसे,
वो चमकता कांचघर है,
लड़कियों की जिंदगी.
रास्तों का है पता, न
मंजिलों की है खबर,
एक अनजाना सफर है,
लड़कियों की जिंदगी.
है बड़ा बेताब पढ़ने
को, जिसे सारा जहाँ,
आज की ताज़ा खबर है,
लड़कियों की जिंदगी.
जी, यह कोई भावावेश में किसी स्त्री-चिन्तक के मन से निकली हुई पंक्तियाँ नहीं हैं, यह विकृत सत्य है, इस समाज का. समाज में आज तक भी यही स्थिति है स्त्री की. स्त्री सशक्तता की तमाम ऊंची-ऊंची बातों के पीछे का सच ऐसा ही विकृत है.
स्त्री सशक्तता के बहाने भी तो स्त्री देह ही चर्चा का विषय है. आज समानता के नाम और छल के पीछे जिस तरह से स्त्री के शील का हरण किया जा रहा है, वह क्या है?
इन्द्र अगर अहिल्या के पास छल से जाकर उसका शीलभंग करने का अपराधी है, तब फिर यह भी एक प्रश्न है, कि अहिल्या को ही भ्रमित करके इन्द्र के पास छले जाने के लिए भेज देने में, क्या किसी का दोष नहीं? और तब क्या अहिल्या का शील-भंग नहीं हो रहा? चाहे इन्द्र, अहिल्या के पास जाए या अहिल्या, इन्द्र के पास....छली तो अहिल्या ही जाती है....!!
आज आधुनिकता और समानता के नाम पर अहिल्या को स्वयं ही छले जाने का आभास नहीं रहा, और शायद इसी का परिणाम है, कि अब हर अहिल्या पत्थर ही होती जा रही है. स्त्री के पत्थर होते जाने का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं है, जो कि आये दिन समाचार पत्रों और समाचार चैनलों की ताज़ा खबर के माध्यम से जानने को मिल रहा है. आज देह-व्यापार का सञ्चालन करने वाली संचालिका भी तो पत्थर हो चुकी स्त्री ही है...
और समाज का दुर्भाग्य है, कि अब कोई राम अहिल्या को तारने नहीं आने वाले, क्योंकि अब अहिल्या को ही अपने छले जाने का भान नहीं रहा...या यह भी कहा जा सकता है, कि शायद उसे अपने छले जाने का कोई पश्चाताप नहीं रहा.
आज स्त्री यदि ताज़ा खबर बन गयी है, तो इसमें कहीं न कहीं उसका स्वयं का भी योगदान है. उसने स्वयं ही अपने जीवन को एक अनजाने सफ़र में तब्दील कर लिया है.
स्त्री को यह सत्य अपने जीवन में स्वीकारना होगा कि 'स्त्री होना ही पूर्णता है'.
'पूर्ण' की समानता मात्र 'पूर्ण' से ही हो सकती है, उसे किसी अन्य से समानता की आवश्यकता नहीं होती.......
और यदि यह प्रयास किया जाए, तो वह उस 'पूर्ण सत्य' की महत्ता को कम करने जैसा ही होगा.
-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.
You Would Also Like To Read:
बहुत सही कहा..पुरुष को जो कुछ प्राप्त करने में साम दाम दंड भेद का प्रयोग करना होता था..स्त्री स्वतंत्रता के रूप में उसे मुफ्त में बिना प्रयास ही प्राप्त हो रहा है..और इसका खामियाजा भी वही भुगत रही है... गंभीर चिंतन है आपका.. सोचना होगा की नारी स्वतंत्रता की यह राह किस ओर लिए जा रही है !!
मुझे कल ही पता चला है की आप मार्क्सवादी खेमे के हैं -अब आपकी पोस्ट हिचक हिहक के साथ अवेयर होकर पढ़ रहा हूँ ! जबकि पहले सहजता और प्रशंसा भाव से पढ़ जाता था -बहुत कम ब्लॉग को सब्सक्राईब करता हूँ उसमें एक निर्मल आनंद भी है -आज से आप को प्रोबेशन पर रखता हूँ -हा हा हा !
बाँच कर बहुत अच्छा लगा
लड़कियों की व्यथा पर उत्कृष्ट पोस्ट !
बधाई !
"है बड़ा बेताब पढ़ने
को, जिसे सारा जहाँ,
आज की ताज़ा खबर है,
लड़कियों की जिंदगी."
सही कहा आपने...
यह स्त्री के लिए विमर्श का प्रश्न है.
आखिर वह कब तक 'ताज़ा खबर' बने रहना चाहती है..?
खबर से बाहर भी तो उसकी जिंदगी का अस्तित्व हो...