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मैं देखता था ये ख्वाब.......

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 8/27/2009 05:00:00 pm


मैं देखता था ये ख्वाब,
इस आजकल से पहले,
अपनी जिंदगी में तेरी,
इस हलचल से पहले.

ये ख्वाब, कि कोई
इतना भी हंसी होगा,
खुशियों का भी कोई
तो हमनशीं होगा..

आँखें कोई तो होंगी,
मुझे पढ़ने में कामयाब,
सितारों की इस जमीं
पर वो होगा माहताब.

कोई तो होंठ मेरी
भी आवाज बनेंगे,
जिसके मुस्कुराने से
नए साज बनेंगे..

कोई तो दिल धड़केगा,
मेरे दिल की तरह से.
कोई तो होगा मेरी राह
में, मंजिल की तरह से..

कोई तो मेरे जैसे
जज्बात लिए होगा,
कोई तो मेरे जैसी
हर बात लिए होगा.

अब सच हुआ ये ख्वाब मेरा,
खिल गया दिल गुलाब मेरा.

मिल गयी मुझको ख़ुशी
एक ख़ुशी के रूप में.
बादलों के छाँव जैसी
इस दहकती धूप में,

'संघर्ष' ने जब ख़ुशी
पाई, ख़ुशी से रो पड़ा..
जिंदगी जैसे मिली हो
मौत के जंगल से पहले..

1 Response to "मैं देखता था ये ख्वाब......."

  1. Meenu Khare Said,

    वाह !! क्‍या खूब लिखा !!

     


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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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