Blog Archive

Bookmark Us!


कहते हैं, सभी काली सड़कें एक जैसी दिखती हैं. परन्तु इसी बात में ये भी स्पष्ट है कि वह सिर्फ दिखती हैं, होती तो नहीं हैं. क्योंकि वही सड़कें सही राहों पर बिछी होती हैं, और वही गलत राहों पर भी..
क्या उन गलत राहों पर बिछी हुई सड़कें दोषी हैं? या कि फिर उन सडकों को वहां बिछा देने वाला दोषी है?
कदापि नहीं....क्योंकि सच तो यह भी है कि यदि उन राहों यह सड़कें न होतीं तो वहां से लौटकर भी तो नहीं आ पाता कोई. .आखिर जो सीढियां नीचे ले जाती हैं, वही ऊपर भी तो ले जातीं हैं ना....सीढियों का इस्तेमाल कोई उतरने के लिए करे, तो भला इनमें उन सीढियों का या उन्हें बनाने वाले का क्या दोष?
दोषी तो हम नेत्रविहीन लोग हैं, जो हर चमकती राह पर चल पड़ते हैं बिना ये सोचे हुए कि उसका ध्येय किस दिशा के लिए है.
हम कब तक सडकों या राहों को दोषी मानते रहेंगे?
आखिर राहें तो हमेशा गुमराह ही होती हैं ना!! प्रश्न तो यह है कि हम कब तक गुमराह होते रहेंगे?

You would also like to read:-

-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.

0 Response to "आखिर राहें तो हमेशा गुमराह ही होती हैं ना!!"


चिट्ठी आई है...

व्‍यक्तिगत शिकायतों और सुझावों का स्वागत है
निर्माण संवाद के लेख E-mail द्वारा प्राप्‍त करें

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

सुधी पाठकों की टिप्पणियां



पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
****************************************** गूगल सर्च सुविधा उपलब्ध यहाँ उपलब्ध है: ****************************************** हिन्‍दी लिखना चाहते हैं, यहॉं आप हिन्‍दी में लिख सकते हैं..

*************************************** www.blogvani.com counter

Followers