कहते हैं, सभी काली सड़कें एक जैसी दिखती हैं. परन्तु इसी बात में ये भी स्पष्ट है कि वह सिर्फ दिखती हैं, होती तो नहीं हैं. क्योंकि वही सड़कें सही राहों पर बिछी होती हैं, और वही गलत राहों पर भी..
क्या उन गलत राहों पर बिछी हुई सड़कें दोषी हैं? या कि फिर उन सडकों को वहां बिछा देने वाला दोषी है?
कदापि नहीं....क्योंकि सच तो यह भी है कि यदि उन राहों यह सड़कें न होतीं तो वहां से लौटकर भी तो नहीं आ पाता कोई. .आखिर जो सीढियां नीचे ले जाती हैं, वही ऊपर भी तो ले जातीं हैं ना....सीढियों का इस्तेमाल कोई उतरने के लिए करे, तो भला इनमें उन सीढियों का या उन्हें बनाने वाले का क्या दोष?
दोषी तो हम नेत्रविहीन लोग हैं, जो हर चमकती राह पर चल पड़ते हैं बिना ये सोचे हुए कि उसका ध्येय किस दिशा के लिए है.
हम कब तक सडकों या राहों को दोषी मानते रहेंगे?
आखिर राहें तो हमेशा गुमराह ही होती हैं ना!! प्रश्न तो यह है कि हम कब तक गुमराह होते रहेंगे?
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-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.
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