सरदार भगतसिंह आदि के शव-दाह के विषय में जांच करने के लिए कांग्रेस की ओर से जो कमेटी नियुक्त की गयी थी, उसने लाजपत राय हाल में १२वीं अप्रैल से बयान लेना शुरू कर दिया. १२वीं अप्रैल को बयान शुरू होने से पहले डॉ. सत्यपाल ने बताया कि हमने पंजाब-सरकार के चीफ सेक्रेटरी से इस जाँच में सहयोग देने का अनुरोध किया था, पर वहां से जवाब मिला कि सरकार इस मामले की जाँच कर चुकी है और उसका नतीजा भी प्रकाशित कर दिया गया है; इसलिए अब वह और किसी जाँच में सहायता देना नहीं चाहती. इसके बाद फिरोजपुर कांग्रेस कमेटी के मंत्री श्री पृथ्वीचंद वकील, मि. शफ़ाअतुल्ला, श्रीमती पार्वती देवी और श्रीमती सोंधी की गवाहियाँ हुईं.
श्री पृथ्वीचंद वकील का बयान :
श्री पृथ्वीचंद ने अपने बयान में कहा कि २४ मार्च को सवेरे ८ बजे मुझे मालूम हुआ कि सरदार भगतसिंह आदि की लाशें, सतलज के किनारे पुराने पुल के पास जलाई गई हैं. इस समाचार की सच्चाई की जाँच करने पर पता लगा कि खबर ठीक है. उस जगह से मिटटी के तेल की बू आ रही है. और जमीन अभी तक गरम है. सवा दस बजे के करीब एक सिक्ख देकेदार ने भी आकर कहा कि रात ही को वहां लाशें दफना दी गई और जमीन से अभी तक मिटटी के तेल की बू आ रही है.
थोडी देर बाद मुझे मालूम हुआ कि सरदार भगतसिंह और उनके साथियों के रिश्तेदार मौके पर आये हैं, कुछ मित्रों के साथ मैं भी वहां पहुंचा. मैंने देखा कि जहाँ लाशें दफनाई गयी थी, वहां से केरोसिन की गंध आ रही थी. कुछ अधजले कोयले के टुकड़े भी वहां पर पड़े हुए थे. मैंने मेहरचंद फोटोग्राफर को बुला कर उस स्थान का फोटो खिंचवा लिया. एक आदमी ने, जिसका नाम कृपाराम है, मुझे एक अधजला मांस का टुकडा दिखाया. वह अठन्नी के बराबर था और आध इंच के करीब मोटा था. उसने कहा कि चींटियाँ उस टुकड़े को घसीट कर ले जा रही थीं. वहां मुझे यह भी मालूम हुआ कि वहां एक कटी हुई हड्डी मिली थी, जिसे भगतसिंह के घरवाले ले गए.
छुट्टी के दिन हम लोग फिर उस स्थान पर गए. खां शफ़ाअतुल्ला ने चिता-स्थान से करीब ३० कदम के फासले पर एक जगह दिखाई, जहाँ दाह-क्रिया के दूसरे दिन उसने खून देखा था. हम लोगों को वहां कुछ कंकड़ मिले, जिन पर खून लगा हुआ था. वे कंकड़ फिरोजपुर में मेरे पास रखे हुए हैं. पचास-साठ कदम के फासले पर एक झोपडी थी, जिसमे झोपडी वाले के सिवा एक और आदमी था. झोपडी वाले को कुछ मालूम न था, किन्तु उस दूसरे आदमी ने कहा कि दाह-स्थल के पास एक जगह उसने खून गिरा हुआ देखा था. रेलवे फाटक पर उस समय मौजूद एक आदमी से पूछने पर मालूम हुआ कि रात को ४-५ लारियाँ वहां आई थी. जिनमे अधिकतर अंग्रेज थे. एक पर डेढ़-दो मन लकड़ी और मिट्टी के तेल के कनस्तर भी थे. रायजादा हंसराज के प्रश्न करने पर व्यक्ति ने कहा, कि जहाँ दाह-क्रिया की गई थी, वहां तीन अर्थियां अलग-अलग रख कर नहीं जलाई जा सकती है, अगर ऐसा किया जाता तो पास वाली झाड़ियों तक आग का असर जरूर पहुंचता, और एक झाड़ी तो जल ही जाती.
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