कभी तो जिंदगी रात के अंधेरो से विचलित हो जाती थी,
समय की ऐसी हवा चली की दिन के उजाले भी काटने को रहते है,
क्यों सहम गई है जिंदगी ,क्या कोई तूफ़ान सा आया है
कभी जो मासूम, अल्हड़ बचपन था वही आज जवानी है
जिसकी आहट से ही आखों मे पानी है, दूर से घूरती नजरे
एक वेशायता की निशानी है, खिलखिलाती हँसी कही गुम सी हो गई
पर नही अब नही,अब और नही अब इस डर से हमे लड़ना होगा
उन वेश्यों को ख़त्म करना ही होगा, कोई एक कहे तो उसे पलट कर सहना अब होगा
अब तक नहीं समझे है हमे, उनकी धारणा को बदलना होगा
हम जिंदगी को जन्म देने का दर्द सह सकते है,
तो हम जुर्म करने वालो को उस दर्द का अहसास भी करा सकते है
हमारी शक्ति हमारी एकता है, किसी का जुर्म हमे कमजोर नही कर सकता
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वाह क्या बात है दिल छू लेनी वाली लाजवाब रचना।
बहुत अच्छे मकसद से लिखी गयी रचना
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना बधाई
गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना