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बहुत हुआ आना-जाना,
यूँ आप हमारे सपनो में;
अब दिल चाहे शामिल तो,
हों आप हमारे अपनों में.

आखिर सपनो में ही आकर,
कब तक ख्वाब दिखाओगे;
तस्वीर हमारी भी तो दिखे,
कभी आपके नयनों में.

कभी तो महके नाम हमारा,
आपके वर्क-किताबों में;
कभी तो हम भी बनें मुसाफिर,
आपके रंगी ख्वाबों में.

कभी तो हमको भी हो मयस्सर,
हंसी आपके होंठों की;
कभी तो हाथ हमारा भी हो,
आपके हाथ-गुलाबों में.

कभी वो पंखुडियां होठों की,
हमको इक आवाज तो दें;
कभी हमारी ग़ज़लों को,
महकी सांसों का साज तो दें.

'संघर्ष' हमेशा देखा है,
हर दिल में इक राज़ छुपा;
हम भी छुपायें दुनिया से,
आप हमें वो राज तो दें.

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-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.

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सुधी पाठकों की टिप्पणियां



पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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