सरदार पटेल का वक्तव्य :
२४ मार्च को सरदार पटेल ने भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी के सम्बन्ध में नयी दिल्ली में निम्न वक्तव्य दिया:-
"अंग्रेजी कानून इस बात पर अभिमान से झूमता था, कि वह गवाही में जिरह के द्वारा प्रमाणित किये बिना किसी अभियुक्त को सजा नहीं देता, परन्तु उसी कानून ने ऐसी गवाही के विश्वास पर, जो घटना के बहुत देर बाद प्राप्त हुई थी और जिसमे जिरह का नाम न था- भारत के श्रेष्ठ युवकों की हत्या कर डाली. किसी व्यक्ति को ढीठता और उच्छ्स्रंख्लता के अपराध की सजा दी जा सकती है, परन्तु उसे फांसी पर लटका देना कहाँ का न्याय है"
पंडित मदनमोहन मालवीय का क्लेश:
पं. मदनमोहन मालवीय ने कराची को प्रस्थान करने से पहले मुलाकात में कहा- "इस फांसी से मुझे इतना दुःख हुआ है कि मेरे मुंह से शब्द नहीं निकलते."
पं. जवाहरलाल नेहरु का वक्तव्य:
२४ ता. को नयी दिल्ली में पं. जवाहरलाल नेहरु ने अपने वक्तव्य में कहा:-"मैंने इन देश-भक्तों के अंतिम दिनों में अपनी जबान पर लगाम लगा रखी थी, क्योंकि मुझे संदेह था, कि मेरे जबान खोलते ही कहीं फांसी की सजा रद्द होने में बाधा न पहुंचे. यद्यपि मेरा ह्रदय बिलकुल पक गया था और खून अन्दर से उबाल खा रहा था, परन्तु तिस पर भी मैं मौन था. परन्तु अब, फैसला हो गया. इस देश भर के लोग मिलकर भी भारत के ऐसे युवक की रक्षा नही कर सके, जो हमारा प्यारा रत्न था और जिसका अदम्य उत्साह, त्याग और विकट साहस भारत के युवकों को उत्साहित करता था. भारत आज अपने प्यारे बच्चों को फांसी से छुडाने में असमर्थ है. इस फांसी के विरोध में देश भर में हड़तालें होगी और जुलुस निकलेगा. हमारी इस परतंत्रता और असहायता के कारण देश के कोने-कोने में शोक का अन्धकार छा जायेगा."
मौलाना ज़फरअली का वक्तव्य:
"अभागे भारत ने अपने इतिहास में ऐसी असहायता का कभी अनुभव नहीं किया था, जैसी असहायता का अनुभव उसने २३ ता. को भगत सिंह और साथियों की फांसी के वक़्त किया है."
-Swaraj T.V. Desk
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