लीजिये, जनकल्याणार्थ प्रधानमंत्री महोदय का एक और बयान आ गया है. लगता है कि देश में उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से परेशान हैं प्रधानमंत्री!
होना भी चाहिए, क्योंकि दूसरी बार सत्ता जो मिली है. जन भरोसा का सर्टिफिकेट मिला है; सो जन यानि आम जन की याद उन्हें फिर सता रही है. उन्होंने पिछले दिनों आह्वान किया था कि सीबीआई आमजनता की इस धारणा को समाप्त करे कि बड़ी मछलियाँ सजा से बच जाती हैं. इससे भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है , सुरसा के मुख की तरह. लिहाजा न केवल दुनिया में भारतीयों की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि इसके कारण गरीबों को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. मनमोहन सिंह ने साफतौर पर यह कहा है, कि लोग यह मानते हैं कि हमारे देश में सिर्फ कमजोर लोगों के खिलाफ ही तुंरत कार्रवाई होती है, उच्च पदों पर बैठे और सबल लोग बच जाते हैं. उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस धारणा और हालात को बदलने के लिए सम्बंधित एजेसियों को उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से आक्रामकता के साथ निपटना चाहिए. प्रधानमंत्री के मुताबिक, दुनिया हमारे लोकतंत्र का सम्मान करती है, पर यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार हमारी छवि को धूमिल करता है. इससे निवेशक हतोत्साहित होते हैं, क्योंकि वे सौदों में पारदर्शिता चाहते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि देश का विकास हो रहा है और हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल हो रहे हैं, पर भ्रष्टाचार के कारण सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी संसाधन हासिल नहीं हो पा रहे हैं. उन्होंने फिर दुहराया कि भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा और ज्यादा खामियाजा गरीबों को ही भुगतना पड़ता है, क्योंकि उनके लिए शुरू की गयी योजनायें भ्रष्टाचार में ही ख़त्म हो जाती हैं, और वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं.
प्रधानमंत्री को यह याद दिलाना जरूरी है, कि दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गाँधी भी अपने समय में ऐसी चिंता व्यक्त कर चुके हैं. उन्होंने तो आंकडे भी दिए थे. वर्तमान पार्टी महासचिव राहुल गाँधी भी इस बात को कई बार कह चुके हैं.
समस्या बीस पैसा, दस पैसा पहुँचने का नहीं, बल्कि जो मातहत ठेकेदार या सरकारी, गैर सरकारी एजेंसियां क्रमबद्ध रूप से ८०-८५ पैसा खा रही हैं, उनके विरुद्ध अब तक क्या कार्रवाई हुई, पीएमओ को इस पर श्वेतपत्र लाना चाहिए.
प्रधानमंत्री को याद दिलाना होगा कि देश में मौजूदा नौकरशाही और उसकी विभिन्न लाबियों, समाज में सक्रिय दबाव समूहों, अर्थजगत में छाई विभिन्न लाबियों को जनोन्मुखी बनाने, तथा इसमें बाधक व्यक्तियों को न्यायिक जांच के दायरे में लाने में, और समय रहते देश में प्रचलित ठेकेदारी की व्यवस्था की भी समीक्षा करने में, यदि वे विफल रहते हैं, तो फिर यही समझा जायेगा कि मतदाताओं ने दलित व पिछड़ी मानसिकता से बाहर निकलकर कांग्रेस को जो जनाधार दिया है, उसका मकसद अधूरा रह गया.
राजनीतिक इतिहास फिर अपने आप को दुहराए, तो देश में सबसे लम्बे समय तक राज करने वाली कांग्रेस को हतप्रभ नहीं होना चाहिए. सवाल देश की आर्थिक सेहत का तो है ही, आम जनता के आर्थिक सेहत की उपेक्षा भी घातक हो सकती है.....
-Kamlesh pande, Spl. Correspondent, Swaraj T.V.
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अच्छा लेख.