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जॉर्ज बुझे हुए कारतूस हैं....

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 8/06/2009 05:18:00 pm


बूढे, कूड़े नहीं होते, वे विरासत होते है. विरासत को सजोना-संवारना जरूरी होता है। नीतीश ने, जॉर्ज जैसे बूढे समाजवादी को सांसद बना कर जो सम्मान दिया, उसका अपना एक राजनीतिक निहितार्थ है। जार्ज फर्नाडीज लगातार नीतीश के खिलाफ आग उगलते रहे। सम्बन्ध में इतना खटास आ गया कि नीतीश ने जार्ज को अध्यक्ष तक नहीं बनने दिया . नीतीश ने सफाई देते हुए कहा था कि जार्ज बूढे हो चुके है , स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया गया . सवाल उठता है कि अगर पार्टी काम के लिए जार्ज अयोग्य हैं, तो देश के कार्य के लिए कैसे योग्य हो गए ? नीतीश के लिए दल का हित समझ में आता है, देश का हित समझ में नहीं आता. जार्ज को सम्मानित करने का केवल यही तरीका है कि उन्हें सांसद बना दिया जाय? अगर जॉर्ज को संसद ही भेजना था, तो मुजफ्फरपुर में ही क्यों हरा दिया गया?स्थिति साफ़ है कि नीतीश बिना किसी राजनीतिक मकसद का कोई काम नहीं करते ।

बिहार का आगामी चुनाव नीतीश के लिए चुनौती भरा है. अपने ही सीनियर नेता दिग्विजय सिंह को नीतीश बर्दास्त नहीं कर सके . टिकट तक नहीं दिया . दिग्विजय सिंह अपने क्षेत्र में विकासपुरुष के रूप में चर्चित है . उनके टिकट को काट कर दामोदर महतो को उनके खिलाफ उतारना किसी राजनीतिक चरित्र का मानदंड नहीं. दिग्विजय सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत कर अपनी लोकप्रियता का डंका बजाया. दिग्विजय, लालू , रामविलाश और वामपंथ की लामबंदी नीतीश के लिए भारी पड़ सकती है. जार्ज, विरोध का केंद्र बन सकते थे। देह ही न उनकी कमजोर हुई है, पर नाम तो आज भी उतना ही वजनदार है. जॉर्ज को खेमे से बाहर निकालना जरूरी था. सांप्रदायिक शक्तियों के साथ गठजोड़, नीतीश की समाजवादी छवि को कमजोर करता है । जॉर्ज को सांसद बनाना,समाजवादी धारा में अपने को बनाये रखने का राजनीतिक उपक्रम भर है . नीतीश ने समाजवाद का सम्मान किया है, जॉर्ज का नहीं, ऐसा कह कर अपने फैसले को सैद्धांतिक आधार प्रदान करेंगे. बांका उपचुनाव के दौरान जॉर्ज के साथ कुछ समय मैंने भी बिताया. उनके भाषण का मैं भी दीवाना बना रहा.क्या डाटा होता था उनके भाषणों में. व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह की आग को लहकते देखता था. जॉर्ज युवाओं के माडल की तरह थे. जब से भाजपा के हनुमान बने, मुझ जैसों के लिए जॉर्ज उसी दिन मर गए थे. राजग का एक से एक देश को बेचने वाला फैसला आया, पर यह समाजवादी खामोश बना रहा. गुजरात का दंगा हुआ चुप रहा. बाबरी मस्जिद गिराने वाले के पक्ष में बोलते रहे. जॉर्ज का मतलब संसद में होने या ना होने से नहीं था. जॉर्ज का मायने जंग था व्यवस्था के खिलाफ, नाइंसाफी के खिलाफ.......जॉर्ज यानि मजदूरों का मसीहा ...जॉर्ज यानि बरौदा डायनामाईट कांड..... जॉर्ज यानि कट्टर समाजवादी. अंतिम, जॉर्ज का अफसोसजनक है. सत्ता के खिलाफ जेहाद करने वाले जॉर्ज हार गए. सत्ता और संसाधन के सामने जॉर्ज नतमस्तक हो गए. पूंजीवाद के अंत का एक सुखद सपना टूटकर बिखर गया। पूंजी जीवन के केंद्र में आ गयी. समाजवादी लक्ष्य गायब हो गए. समाजवाद बबुआ धीरे -धीरे आयी,पर कब तक आयी?यह धीरे -धीरे कब पूरा होई? जॉर्ज ने धैर्य खो दिया. चीन, पोलैंड,हंगरी जैसे देश पूंजी की शरण में पहले ही आ गए. विश्वव्यापार संघ का लगातार विरोध हुआ. पर दीर्घकाल तक पूँजीवाद के खिलाफ ये राष्ट्र नहीं लड़ सके और अंत में बाजार के सामने समर्पण किया. साम्यवादी और समाजवादियों की चीन ने बोलती बंद कर दी. आखिर किस मुह से ये पूंजीवाद का विरोध करते? जॉर्ज समय को पहचान लिए. वक्त रहते वे समाजवादी धारा से पलायन कर गए. बाजार ने समाजवादी मूल्यों की धज्जी उडा दिया. समाजवादियों के बीच एका नहीं रह पाई. "दिल के टुकड़े हजार हुए, कुछ यहाँ गिरे, कुछ वहां गिरे." समाजवादी छिन्न-भिन्न हो गए. एक समाजवादी, देश को नाच सिखा रहे हैं, दुसरे समाजवादी, देश को हँसाने में लगे है; और जो शेष है, उन्हें पार्टी बदलने से फुर्सत ही कहाँ है? समाजवादियों के नाजायज वारिसों को सत्ता चाहिए. समाजवाद से इनका लेना देना ही क्या है? मृत समाजवादी धारा को जीवंत किया जा सकता है. यह भूमिका नीतीश निभा सकते है. केवल जॉर्ज को सांसद बना देने भर से काम नहीं चलेगा. इस बुझे हुए कारतूस से समाजवादी जंग नहीं लड़ा जा सकता.ये केवल खबर है, इन ख़बरों का क्या? जॉर्ज के बजाय किसी अन्य नेता को सदन भेजते तो दल और देश दोनों का भला होता. काम करने वाले नेता का मनोवल भी बढ़ता. यह केवल नीतीश का काकावाद है. काका सहलाने का कौशल आखिर नीतीश ने सीख ही लिया. चर्चिल के साथ जो हुआ, वही जॉर्ज के साथ होना चाहिए. थे तब तीसमार खान, अब आपकी क्या जरूरत है? जार्ज को अवसरवाद के लिए ही याद किया जाएगा. लोहिया और कर्पूरी ने तो कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया।
नीतीश, नेता के बजाय नीतियों को आगे बढायें तो अच्छा है....
-जॉर्ज बुझे हुए कारतूस हैं....

-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.

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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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