भष्मासुर की पीढी के निर्माण व उस परंपरा के निर्वहन में जुटी 'भारतीय जसवंत पार्टी' इन दिनों गहरे संकट में है. हाल ही में चुनावी मोर्चे पर मिली पराजय के बाद से अवसादग्रस्त पार्टी, घरेलु मोर्चे पर घिर गयी है. चुनौती भी उसी भष्मासुर से है, जो कल तक भाजपा के प्रिय संकटमोचक थे. कथित अनुशासन और विचारधारा के नाम पर स्वजनों की बलि, भाजपा की पुरानी परंपरा है. यह पहली दफा नहीं है, जब परिवार के किसी निष्ठावान प्रभावशाली नेता ने अपने दल-कुल की फजीहत की हो. दल-उत्थान के लिए गोविन्दाचार्य, उमा भारती, कल्याण व बाघेला जैसे नेता समय-समय पर भाजपा को चुनौती देते रहे हैं. भष्मासुरी संस्कार ने अपने अपने आघातों से पार्टी की जो दशा की है, वो जगजाहिर हैं.
पैदाइश के बाद से अब तक के सबसे ख़राब दौर से गुजर रही भाजपा, जहाँ चिंतन के जरिये खडा होने की जुगत में जुटी है, वहीँ दूसरी तरफ अतीत के संकटमोचक, संकटकारक बन, चिंता बढा रहे हैं. भाजपा के पोल-खोल अभियान में जुटे भष्मासुर का आक्रोश बेजा नहीं है, भाजपा ने तीन दशक से लीक पर चल रहे सपूत को परम्परा निभाने का दंड दिया है.
घर-निकाला का सामना करने वाले, भाजपा के घोषित कपूत का रोष जायज है. भाजपा के इस नए कपूत ने अपनी नई किताब में पार्टी की परम्परा का ही तो निर्वहन किया है, फिर पुरस्कार की जगह तिरस्कार क्यों? अपने संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्श, दृष्टिकोण व बलिदान को तिरस्कृत करने वाली भाजपा, महापुरुषों का क्या खाक सम्मान करेगी? रामसेवकों की लाश पर लात रखकर सत्ता-सुख भोगने वाली पार्टी से शहादत के सम्मान की उम्मीद ही बेमानी है. 'गांधीवादी समाजवाद' से शुरू होकर, हिन्दू-राष्ट्रवाद, एकात्ममानववाद, राम-रोटी-मकान और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बाद 'भारत-उदय' कर चुकी भाजपा में वादाखिलाफी कूट-कूट कर भरी हुई है. हर बार चुनाव के बाद नारा और चेहरा बदलने वाली भाजपा की बुनियाद ही दोषपूर्ण है.
मोहम्मद अली जिन्ना को भारत विभाजन के दोष से मुक्त करती, व्यक्तिगत कुंठा, बौद्धिक क्षुद्रता, दलगत संस्कार पर आधारित किताब "जिन्ना: भारत विभाजन के आईने में" के जरिये जसवंत सिंह ने अपने साथियों के विचार को आधार दिया है. भाजपा में दृष्टिकोण की पुनर्व्याख्या की जिस परम्परा को भाजपा के जंग खाए लौह-पुरुष ने शुरू किया था, जसवंत सिंह ने बस उसे विस्तार दिया है.
कमाल तो यह है कि जिन्ना की मजार पर पुष्प चढाने वाले, भावावेग में ऐतिहासिक कसीदा पढने वाले भाजपा के रथी भी कपूत-निष्कासन को जायज मानते हैं. भारतीय राजनीति को इच्छाशक्ति का व्यावहारिक अर्थ बताने वाले लौह-पुरुष का अपमान और बैरिस्टर मो. अली जिन्ना का गुणगान भाजपा की परंपरा का परिचय मात्र है.
-Amitabh Bhushan 'Anhad', Swaraj T.V.
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नाम खूब दिया आपने- 'भारतीय जसवंत पार्टी'
भाजपा से कुछ ज्यादा खार खाए लग रहे हो बन्धु....
वैसे बातें ठीक हैं, लेकिन रोष कुछ ज्यादा हो गया...
Baat ko bahut hee saleeqe se kaha hai. Patrakaarita mein kisee kee taareef likhna bahut aasaan hota hai lekin khilaaf likhna bahut mushkil. Mubaarak ho .Bahut tameez se apnee baat kahee hai