यह राखी का महीना है. जब से यह राखी टी.वी. पर आने लगी है, मैं अपनी कलाई छुपाये फिर रहा हूँ कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए. इस प्यारे भाई को परेशान करने के लिए सड़कछाप बहनें कम शैतानी नहीं कर रही हैं. कल ही दो लिफाफा हाथ लगा. वह चमचमाता लिफाफा कोई बम हो सकता है, मैंने सावधानी नहीं बरती, दुर्घटना हो गयी. वह राखी-बम निकला. मेरे अरमानो का विस्फोट हो गया. वर्षों से संजोये सपनो का परखच्चा उड़ गया.
हाँ, तो मैं राखी और स्वयंवर की चर्चा कर रहा था. प्यारे भाई अभी व्यस्त हैं; कौन बहन को याद करे.
राखी का असली भतार कौन होगा? भाईजान परेशान हो गए हैं, देखने और जानने के लिए. इलेश पारुजनवाला के गले में राखी ने हार डाल दिया. यद्यपि राखी सावंत ने होने वाले पाँचों पतियों के लिए करवा-चौथ का व्रत रखा. क्या होगा इस पांचाली का? पतियों की इस भीड़ को यह राखी कैसे संभाल पायेगी, समझ नहीं आ रहा है!! मैं राखी के इस दर्द को गंभीरता से महसूस कर रहा हूँ. मैं उस गायक 'मिक्का' से भी नाराज हुआ था. सरेआम उतना घना चुम्बन.....! कहानी "चुम्बन और चांटा" याद आ गयी. राखी को उस चुम्बन ने महान बना दिया. वह सिलेब्रिटी बन गई. वह नाचती है तो मेरे मन का मोर भी नाच उठता है. कमबख्त राखी को मेरा ध्यान कहाँ? मुझ जैसे कितने ढेर-अधेर राखी के लिए रह-रह कर घुटते हैं और घुट-घुट कर रहते हैं.
इलेश की माँ अपने इस नौलखिया बहु से परेशान होगी या गर्व कर रही होगी, इलेश अच्छी तरह से जान रहा होगा. राखी सावंत दहेज़ में चार और पतियों को साथ ले जायेगी. इलाके के लोग इलेश के माता-पिता को बहुत ही धन्यवाद दे रहे होंगे, कि क्या बहु लाये हो, पतियों का मीना बाज़ार ही साथ लायी है. इलेश के घर पर सिसेप्टन का भोज होगा. मंडप पर पांच पति सज-धज कर मौजूद होंगे. बेहतर होगा कि इलेश धर्मराज युधिष्ठिर की भूमिका में आ जाएँ. मार लेने दें बजी भीम को....!!
टी.आर.पी. का यह खेल अब ख़त्म होगा. स्वयंवर के बाद, "राखी का हनीमून" सीरियल शुरू हो रहा है. मजा नहीं आया होगा स्वयंवर के इस तमाशे में.....!
राखी जैसी हहराती युवती को कोई प्रेम के कच्चे-धागे में बाँध ले यह संभव ही नहीं है. यौवन के उन्माद में लोहे की जंजीरें भी टूट जायेंगी.
आइटम-गर्ल फिल्म की चटनी या आचार होती है. वह फिल्म का फ्लैट-करेक्टर नहीं होती, बस केवल राउंड-करेक्टर होती है. ...
भाई इलेश! आइटम-गर्ल को आइटम बहु ही समझिये. अपने को आइटम-हसबैंड मान लीजिये, दुःख नहीं होगा. राखी को पराया धन मानकर संतोष कीजिये....!
अखबार में खबरें छप रही हैं कि आपके माता-पिता इस फूहड़ बहु से आहत हैं. वैसे आपके माता-पिता को जानता ही कौन था? कम से कम मैं तो नहीं जानता था! राखी ने आपके माता-पिता को एक पहचान दिया, एक मुकाम दिया. बाजार के बेलगाम घोडे पर चढ़कर आई बहू को आप डोली में क्यों बिठाना चाहते हैं?
शादी, सम्बन्ध, संवेदना और परिवार को बाजार बना डालने में आप लोगों की भूमिका कम नहीं रही. प्रेम ऐसे ही मर रहा था, परिवार का बिखरना जारी था....कालजयी संबंधों के इस ताबूत में अंतिम कील ठोंक ही दी आपने ...!
दफ़न हो गयी संस्कृति का आर्तनाद सुनिए. वह आपसे पूछ रही है..-
"सो रही थी चैन से ओढे कफ़न मजार में,
यहाँ भी सताने आ गया, किसने पता बता दिया.."
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