"जी मंत्री जी... बाढ़ बहुत भयावह स्थिति में है, मैं उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से बचाव और राहत का प्रयास कर रहा हूँ. आप प्रशासन से कुछ और सहायता के लिए आग्रह कीजिये...." अविनाश ने बेचैनी से कहा.
अविनाश की नियुक्ति बाढ़-प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष के रूप में अभी जल्दी ही हुई थी. पहली बार बाढ़ की विभीषिका को देखने के कारण से उसे ये बाढ़ कुछ ज्यादा ही भयावह लग रही थी. और शायद इसीलिए सुधार की दिशा में उसकी गति भी विभाग की कच्छप गति से कहीं ज्यादा तीव्र थी. अंततः बाढ़ थम गयी, और राहत कार्यों की तीव्रता के चलते जनजीवन आशा से कहीं शीघ्र सामान्य होने लगा. सारा महकमा अचंभित था.
लेकिन अविनाश को पता था कि ये मंजिल नहीं है. शीघ्र ही राज्य के प्रमुख अभियंताओं की सहायता से उसने भविष्य में बाढ़ के प्रभावी प्रबंधन का प्रारूप तैयार कर, अधीनस्थों की बैठक में उसे पारित भी करा लिया. स्वीकृति तथा लागत की व्यवस्था के लिए प्रारूप को विभाग के मंत्री के पास भेज दिया गया.
प्रारूप ऐसा था कि वास्तव में यदि उस पर अमल किया जाए और निर्धारित गति से कार्य हो, तो पूरे प्रखंड को अगले चार माह के भीतर ही बाढ़ की आशंका से मुक्त किया जा सकता था.
मंत्री जी प्रभावित हुए. पूरी व्यवस्था में कहीं भी धन के दुरूपयोग की आशंका नहीं रख छोड़ी थी अविनाश ने.
मंत्री जी ने आनन-फानन में अविनाश को सम्मानित करने के लिए संवाददाता सम्मलेन बुला लिया. अविनाश को पदक और पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सम्मलेन के तुंरत बाद मंत्री जी ने अविनाश को अपने कार्यालय में बुलाया.
"आइये! अविनाश बाबु. भई आपने तो कमाल कर दिया! जो बाकि लोग पीढियों से सोचते आ रहे थे, आप तो महीनों में ही पूरा कर देंगे."मंत्री जी ने कहा.
"जी धन्यवाद. ये सब तो आपकी कृपा और आशीर्वाद से ही संभव हुआ है." अविनाश ने नम्रता से आभार व्यक्त करते हुए कहा.
"अजी काहे का आशीर्वाद.....! अच्छा ये बताइए उमर कितनी है आपकी?"
"जी!?...जी वो...४२ साल."
"क्या लगता है, कितना उमर बाकी है अभी?"
"जी, मैं समझा नहीं!!."
"अरे! मतलब अभी ३०-४० साल तो और जियोगे ही.?"
"जी!!!"
"तो फिर काहे बद्दुआ ले रहे हैं लोगन की?"
"जी..!"
"अरे, बच्चा लोग बता रहे हैं, कि बड़ी ईमानदारी से खर्चा किया आपने!! पिछली साल बाढ़ का बोनस से बच्चा लोग गोवा में फ्लैट खरीद लिए थे, कौनो-कौनो तो अमेरिका में खरीद लिए थे..और ई बार...ससुरा आपने बोनस फिफ्टी परसेंट पर पहुंचा दिया...."
"जी.."
"का जी-जी?? ऊपर से ई माडल, बाढ़-रोको माडल.....यानि अगली साल से बाढ़ बोनस ख़त्म...! अब बाढ़ आएगी नहीं, तो लोगों को राहत कैसे देंगे? और बच्चा लोग जनसेवा का पुन्य कैसे कमाएंगे...?
और फिर इन लोगन को बोनस नहीं मिलेगा, तो इनके बीवी-बच्चों का क्या होगा?? बाढ़ नहीं आई तो इनके घर में सूखा मेवा कहाँ से आएगा???
कुछ समझे आप??"
"जी....."
"फिर से जी?? अभी बहुत उमर बचा है, कुछ कमा लीजिये. हम मैडल दे दिए हैं ना आपको....अब अपना ई बाढ़-रोको माडल भूल जाइए.."
"जी...ठीक है....चलता हूँ ....."
"आरे चाय तो पीते जाइए..."
"जी धन्यवाद.."
अगली सुबह अख़बार में अख़बार में छपा था:-" बाँध टूट गया- अविनाश बाबू का हृदयाघात से निधन."
-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.
एक उम्दा लघुकथा..
राजनीति के काले चरित्र को बहुत ही हृदयस्पर्शी तरीके से सामने रखा है आपने...
बधाई..
achchha, gambhir aur hridaysparshi.........
lage raho...
अच्छा और प्रसंशनीय...
राजनीति का काला चरित्र ऐसा ही है..
ये घाव बनाकर दावा बेचते हैं...
लेकिन 'अविनाश बाबू' की तरह दिल को कमजोर रखकर इनसे जीता भी तो नहीं जा सकता...
संघर्ष करना पड़ेगा...
मर्मस्पर्शी और सत्य के निकट.....
प्रशंसनीय रचना..
बधाई..
बेहद अच्छी रचना....
लेकिन अंत अधिक दुखद हो गया......
ये सत्य तो है...लेकिन इस सत्य को बदलने की जरूरत है.......
राजनीति का घिनौना चेहरा.....
एक सत्य को दर्शाता हुआ लेख...
बेहद मर्मस्पर्शी....