"सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं..
दिल पे रखकर हाथ कहिये, देश क्या आजाद है..
कोठियों से मुल्क की ऊँचाइयाँ मत आंकिये..
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है.."
हाँ! मैं फुटपाथ पर आबाद एक हिंदुस्तान बोल रहा हूँ. मैं यह तो नहीं कहता कि मेरी आवाज सुनो, लेकिन नक्कारखाने में तूती ही सही, मैं बोलना चाहता हूँ.
राजा-रानी की कहानी के बीच ही मेरा बचपन गुजरा. मेरी जानकारी में राजा-रानी महलों में रहते थे. किला बनाकर रहते थे.
हमारे लाल-किला में भी पहले राजा-रानी रहते थे. यहाँ मैं कभी राजा-रानी को देख तो नहीं पाया. कमबख्त जिंदगी भी बहुत बाद में धरती पर टपकी. हाँ! टिकट कटाकर मैं लाल-किला के भीतर अवश्य गया. वहां राजा-रानी तो नहीं थे, पर उनके शयन-कक्ष, बाथरूम को अवश्य देख आया. राजा के सैनिक तो नहीं थे, पर स्वतंत्रता की रक्षा में लगे सैनिक अवश्य थे.
जिस इलाके से मैं आया हूँ, उस इलाके में भी एक राजदरबार था. रानी को एकबार देख लेने को जी करता. मैं भी उचक-उचक कर देखता. एक बार तो मेरी हड्डी-पसली टूटते-टूटते बची.
रानी मुखर्जी को भी देखने में उतनी ही मशक्कत उठानी पड़ती है. आज भी सड़क पर आ जाये तो मेरी भूखी आँखें चमक उठती हैं.
स्वतंत्रता भी एक देवी है, रानी है. यह बहुत ही खूबसूरत है. एक बला की खूबसूरत! जहाँ खूबसूरती हो, वहां बला है, बलवा है, झगडा है, झंझट है....
भारत की इस स्वतंत्रता की रक्षा और सुरक्षा जरूरी है. आम लोगों की पहुँच से स्वतंत्रता जितनी दूर होगी, उतनी ही सुरक्षित होगी.
वर्षों से लाल-किला के आस-पास मंडराता रहा हूँ, कि एक बार स्वतंत्रता की इस रानी को निहार लूं.पर पुलिस के डंडे के सिवा कुछ भी ना मिला आज तक. स्वतंत्रता को न देख पाने का मलाल आज भी मुझे सालता है.
स्वतंत्रता के साथ 'मेरी' शब्द का जुड़ना खतरे से खाली नहीं है. यह एक अनाधिकार क्षेत्र है. इस पर हक जताना तो एक अपराधपूर्ण कृत्य है.
मैं यही सोच रहा हूँ, कि यह स्वतंत्रता कब किले से बाहर आएगी? खेत-खलिहान, गाँव और गलियों के बीच कब होगी ये स्वतंत्रता? इतनी महँगी और कीमती स्वतंत्रता कब मुहाल होगी मेरे, तुम्हारे, हमारे लिए??
तीन-रंगिया चुनरी में लिपटी स्वतंत्रता का हाल तो जानूं. भगवान् न करे कहीं उसकी चुनरी बदरंग तो नहीं हो गयी. उसके केसरिया में कैशौर्य है, या गायब हो गया होगा....?
सादा रंग पर कोई बदनुमा दाग तो नहीं लगा दिया किसी ने??
हरीतिमा ख़ाक में तो नहीं मिल गयी होगी??
मैं स्वतंत्रता से बहुत प्यार करता हूँ, बेशक वह मुझे मिले या ना मिले. बाहर यानि लाल-किला के बाहर जो कुछ भी देख रहा हूँ, मुझे सहज आशंका हो रही है कि किला के अन्दर बंद स्वतंत्रता भी सुरक्षित नहीं होगी....!
शायद वह सिसक रही होगी. बाहर में कहानी बनती कायरता, शिष्टाचार बनता भ्रष्टाचार और वीरान होती धरती को देखकर डर लगता है, कि कहीं स्वतंत्रता का तीनों रंग, बदरंग तो नहीं हो गया...!
"जो उलझकर रह गयी है, फाइलों के जाल में...
रौशनी वो गाँव तक पहुँचेगी कितने साल में..."
हे स्वतंत्रता! तुम किले से कब मुक्त होगी? मैं जानता हूँ कि तुम्हारा प्राण तो जन-गण-मन में ही बसता है. तुम्हे भी अफ़सोस है कि तुम उसकी नहीं हो पायी, जो तुम्हारे लिए जीता, मरता है..
घबराना नहीं, तुम्हे लाल-किला से मुक्त कराने के लिए एक और मुकम्मल लड़ाई की तैयारी है....
-Amit Tiwari
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आपकी भावना ने हमें भी भावुक कर दिया....क्षुब्ध मन और क्षुब्ध हो गया..
swagat hai. desh ke baaren me sochta hee ab kaun hai.blog par streedeh ,sex aur double meaning walee baaton kaa hee bharmaar hai.joognoo hee sahee aasha to jaga hee diya hai aapne.
sach kaha apne...ajadi kile se baahar aayi hi kab.....
ise dekhne ke liye abhi bhi aam janta lal kila ke iird-gird ikattha hoti hai, har saal...
aajadi ko kile se aajad karane ke liye apke iss abhiyan mein hum har sambhav yog denge..
"सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं..
दिल पे रखकर हाथ कहिये, देश क्या आजाद है.."
सही कहा आपने...क्या इसी आजादी का सपना देखा होगा शहीदों ने.......!!!