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जयचंद, जिन्ना और जसवंत....

Posted by Nirman Samvad On 8/22/2009 02:38:00 pm


किसी गद्दार का महिमा मंडन, दल क्या कोई देश भी बर्दाश्त नहीं करेगा. देश के दुश्मनों को देश से बाहर करो और दल के दुश्मनों को दल से बाहर करो.
'भारत में यदि रहना है, तो वन्दे-मातरम कहना होगा', नहीं तो देश छोड़कर जाना होगा. 'जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा'...... माफ़ कीजिये....मैं नारों के जंगल में भटक गया..

हाँ, तो मैं कह रहा था कि कथित वन्दे-मातरम विरोधितों को आज तक नहीं निकाला जा सका.... ये 'बाबरी-संतान' आज भी देश में जमे हैं, उसे निकाल पाना बहुत मुश्किल जान पड़ता है हिन्दू-वीरों को....
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे.... मियां को देश-निकाला देने के बजाय, जसवंत को ही दल-निकाला दे दिया......जियो मेरे लाल...

जसवंत का अपराध क्या है? जसवंत ने जिन्ना को सेकुलर बताया, पटेल को विभाजन का जिम्मेदार बताया...परिणाम, जसवंत को पार्टी से ही निकाल दिया गया. न कारण बताओ नोटिस, ना ही कोई स्पष्टीकरण..... बस तालिबानी फरमान थमा दिया..

'संघं शरणम गच्छामि'....वाले नेता ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी ख्याल नहीं रखा. जो पार्टी अपने अन्दर के लोकतंत्र की हिफाज़त नहीं कर सकती, वह देश के लोकतंत्र की रक्षा कैसे करेगी?
अगर जसवंत ने पटेल पर लिख ही दिया, तो इतनी हाय-तौबा की बात क्या है? पटेल को महान होने के लिए ना तो संघ का पुरस्कार चाहिए, ना ही किसी जसवंत का तिरस्कार... जसवंत की पुस्तक से पटेल ना तो प्रमाणित होंगे ना ही अप्रमाणित..

भाई! गाँधी के सम्बन्ध, सरोकार और संस्कार पर लाखों लेख लिखे गए. मायावती ने तो गाँधी को शैतान की औलाद कहा, तो क्या उखड गया गाँधी का? जो मौलिक है वह मौलिक ही रहेगा..
पटेल पर जो किताब लिखी गयी, उसका प्रचार संघ परिवार इस कदर कर रहा है, मानो उस प्रकाशक का एजेंट हो संघ, और किताब को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रकाशक से पैसा लिया हो.....
किताब आई, वह लाइब्रेरी में सज जाती, पर हो-हल्ला मचाकर पटेल का जितना अपमान किया जा रहा है, उतना शायद जसवंत चाहकर भी नहीं कर पाते..

पटेल पर टिपण्णी करके सरदार को घाटा हो या ना हो, संघ को घाटा अवश्य होगा.
संघ के शिखर ही अगर ध्वस्त होंगे, तो संघ किसके बल पर जिन्दा रहेगा? संघ के लिए सरदार पूज्य इसलिए हैं, कि गृहमंत्री रहते उन्होंने सोमनाथ का उद्धार किया था. इसी सोमनाथ के बहाने संघ सरयू और सेतु तक पहुँच गया.

सावरकर और वाजपेयी पर भी सवाल है. दोनों ने बाद में आकर समझौता किया. वाजपेयी ने तो अंग्रेजों से समझौता कर के अपने ही क्रांतिकारी साथियों को फंसा दिया था. यह थी वाजपेयी की देशभक्ति.....?
कौन गद्दार है, कौन खुद्दार है, यह कौन तय करेगा?
अब तो जयचंद को भी गद्दार नहीं कह सकते. जयचंद के समर्थकों ने एक संगठन भी बनाया है, जिसका काम होगा, जयचंद को सम्मान दिलाना..

जसवंत ने अगर पटेल पर उंगली उठाई है तो उन्हें अन्य राजे-रजवाडों पर भी प्रश्न खडा करना चाहिए, जो राय बहादुर चौधरी और सिंधिया टाइटल पाने के लिए अंग्रेजों का साथ दे रहे थे. उन बनियों के खिलाफ भी जसवंत को बोलना चाहिए, जो भारतीय-सेठ और नगर-सेठ आन्दोलनकारियों का मजाक उड़ते हुए कहते थे-"पागल हो गयो है के, थारो से आजादी मिलेगी कोणी...."

आज वही सफेदपोश लोग देशभक्ति का मुखौटा लिए घूम रहे है. अगर भाजपा को अन्य चीखते सवालों से कोई सरोकार नहीं रखना है, केवल अर्थहीन सवालों पर ही उलझना है, तो वही काम पहले कर ले. तय हो जाने दे कि कौन खुद्दार है, कौन गद्दार....?
संघ कितने जसवंत को बाहर निकालेगा. सच का सामना करे संघ. शुतुरमुर्ग की तरह सर छुपाने से तूफान नहीं रुक जायेगा.

गाँधी और जिन्ना को गाली देकर कितने दिनों तक राजनीति चलेगी. सत्य को उभरकर आना ही है. हज़ार बार झूठ को दुहराओ तो वह सच नहीं बन जाता है. भाजपा दशकों के अपने दुष्प्रचार से कन्नी कैसे काटेगी.....
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7 Response to "जयचंद, जिन्ना और जसवंत...."


  1. dushmani aadani se nahi kat ji,,,,,,,,,
    dushmani to desh ke dushmanon se hai........
    hum kisi arjun moh mein rahkar desh ki jang mein nahi aaye hain.......

     

  2. Unknown Said,

    ji Amit.....shabd to bada sundar liya hai apne......ARJUN MOH.....
    jara iski vyakhya bhi kar dete.........
    sahuliyat ho jati samjhne mein....

     

  3. Meenu Khare Said,

    आप फ़रमाते हैं---

    "सरदार पूज्य इसलिए हैं, कि गृहमंत्री रहते उन्होंने सोमनाथ का उद्धार किया "

    क्यों सोमनाथ का उद्धार करना ग़लत था क्या?

    जिस मन्दिर को महान शूरवीरों ने बर्बरता पूर्वक नष्ट किया क्या उसकी गाथा भी तो लिखें कभी.

     

  4. Anonymous Said,

    'फेंस सिटर' नेहरू और वीर सावरकर की तुलना !! अंग्रेजों ने एक को दो-दो आजीवन कारावास और दूसरे को मादाम माउण्टबैटन ! क्या तुलना है!
    एक ने देश के लिये सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, दूसरे ने देश का सर्वस्व लूटने के लिये देश का विभाजन सहर्ष स्वीकार कर लिया। और जीते-जी वह सब व्य्वस्था कर गये जिससे भारत के सीने पर वह अर्ध-अंग्रेज परिवार युगों-युगों तक दाल दलता रहे।

     

  5. मीनू जी, आपका प्रश्न उचित है, उस बर्बरता पर भी आवाज उठेगी..
    गुलामी का अवशेष ढोना किसे अच्छा लगेगा....
    परन्तु किसको किसको ध्वस्त करेंगे?
    ढाई हज़ार वर्षों की गुलामी कम तो होती नहीं है, और हर चौराहे पर इनके ही प्रतीक चिन्ह बिखरे पड़े हैं..
    यह अंग्रेजी भाषा भी गुलामी का ही प्रतीक है, लेकिन इस ढांचे को हम नहीं तोड़ पा रहे हैं, केवल बाबरी ढांचा तोड़ने और सोमनाथ बनाने से बात नहीं बनेगी.
    मन के भीतर जो गुलामी बैठी हुई है इस पर प्रहार की जरूरत है.
    ननकाना की चीखती दीवारें आज भी हमें बुलाती हैं.

     

  6. Nidhi Sharma Said,

    सही कहा आपने....भाजपा के लिए कार्यकर्ता एक पायदान भर बन कर रह गया है.
    यहाँ भी 'यूज एंड थ्रो' की संस्कृति व्याप्त हो रही है.
    अन्य नेता किताब ना लिखें तब भी वह इतने बदनाम होते हैं, क्यों नहीं पार्टी आलाकमान उन बदनाम नेताओं को पार्टी-निकाला कर देता?
    पूरा रचना जगत, शर्मशार हुआ है. भाजपा को समाज में मुंह दिखाने के लिए अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.

     


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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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