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तिरंगा महज एक कपड़े का टुकडा नहीं है, न ही केवल तीन रंगों का जोड़... तिरंगा प्रतीक है भारत की अस्मिता का, स्वाभिमान और शान है. एक अरब से ज्यादा भारतीयों का भाव पिरोया हुआ है, इस तिरंगा में. दुनिया के मानकों पर तिरंगा हमारा प्रतिनिधि है...
तिरंगा के स्वाभिमान का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली है. १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन के शागिर्दों ने जो शहादत का इतिहास रचा, वह तिरंगा के शान को और ही बढाने वाला है. पटना का शहादत स्थल इस बात की आज भी गवाही दे रहा है कि किस प्रकार तिरंगा न झुके, को लेकर एक-एककर नौजवानों ने अपनी आहुति दी. तिरंगा का फहराना, आजादी का उद्घोष बन गया था.
यद्यपि राष्ट्र-ध्वज का वर्तमान स्वरुप कई बदलावों के बाद आया है. ७ अगस्त १९०६ को पहली दफा कलकत्ता के पारसी बगान में इसे फहराया गया. १९०७ में मैडम कामा ने इसे फहराया. १९१७ में तिलक और एनी बेसेंट ने होमरूल के दौरान तिरंगा फहराया.१९२१ को विजयवाडा में गाँधी ने राष्ट्र-ध्वज थामा, जिसका दो ही रंग था, केसरिया और हरा, जो हिन्दू और मुस्लिम का प्रतीक था. गाँधी ने उस झंडे में सादा रंग जोड़ा जो सत्य और अन्य समुदायों का प्रतीक था. ध्वज के बीच में गाँधी का चरखा जोड़ा गया.
पर २२ जुलाई १९४७ को चरखा हट गया और अशोक चक्र जुड़ गया. तब से आजतक ध्वज का रूप और स्वरुप बरक़रार है. पर तिरंगा कि वह पहचान गायब हो गई है, जो आजादी के वक़्त थी.
आज तिरंगा के प्रति हमारा लगाव कम हुआ है. राष्ट्र-ध्वज के फहरने के बाद अक्सर मैं सावधान हो जाता था. आज तिरंगा हाथ में लेकर चलना शर्म की बात हो गई है. आज आधुनिक वही है जो इस प्रकार के प्रकल्पों और विचारों से दूर है. तिरंगा हाथ में लेकर चलने वाला पप्पू है. उसे बेवकूफ की तरह देखा जाता है.
खेल के मैदानों में चौ़के और छक्कों के बीच तिरंगा तो लहराते हैं, पर हम उपयुक्त सम्मान को भूल जाते हैं. खेल ख़त्म होते ही तिरंगा को बिखरा हुआ देखता हूँ और पदमर्दित होते हुए भी.
अपने ही प्रतीकों के साथ यह अराष्ट्रीय व्यव्हार अफसोसजनक है. क्यों न हो?? टेबल पर तिरंगा लगाकर जब राष्ट्रहित से समझौता कर रहे होते हैं तब कौन सा हम तिरंगा का सम्मान करते हैं? गाडी में तिरंगा लगाकर क्या-क्या नहीं करते हैं, क्या उससे तिरंगा बदरंग नहीं होता? क्या बदहाल, बीमार और बेकार भारत को देखकर तिरंगा की इज्जत नहीं घटती..?
सबसे बड़ी बात तो यह है, कि तिरंगा फहराए राष्ट्रपति और उतारे चपरासी..इससे तिरंगा की प्रतिष्ठा कहाँ से बढेगी?
तिरंगा की अस्मिता की बहाली भारतीय राष्ट्रवाद की बहाली होगी.
बेहतर होगा कि ससम्मान फहराएं और ससम्मान उतारें. ध्वज उतारते वक़्त ध्वज फहराने वाले की उपस्थिति आवश्यक है...
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-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.

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2 Response to "तिरंगा फहराए राष्ट्रपति और उतारे चपरासी...!"

  1. मु्द्दा काफी गंम्भीर है साथ ही पेचिदा भी। आपका सवाल बिल्कुल सही है, आखिर क्यों हम उस तिरगें के मान को भुलते जा रहे है जिसके लिए हमारे पुर्वजो ने न जाने कितने बलिदान दिए। इक नयी चेतना की जरुरत है।
    आपकी ये रचना काबिले तारिफ है। आप ने उस तरफ हमारे ध्यान को खिचा जहाँ अक्सर हम अंजान बने रहते है।

     

  2. M VERMA Said,

    "तिरंगा फहराए राष्ट्रपति और उतारे चपरासी..इससे तिरंगा की प्रतिष्ठा कहाँ से बढेगी?"
    मत भूलिये कि तिरंगे को टांगने वाला भी चपरासी ही होता है और उतारने वाला भी चपरासी ही होता है. केवल फहराने वाला हाथ बीच मे आ जाता है.
    चिंता किस बात की, अपमान क्यो आखिर चपरासी भी तो भारतवासी ही है.

     


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