२००४-२००९ पंचवर्षीय योजना का शासन काल कांग्रेस-आधारित यूपीए गठबंधन का रहा. काफी सरे विरोधाभाषों के बीच पांच साल सर्कार चलने में कांग्रेस कामयाब रही. तमाम मुद्दों के बीच कमरतोड़ महंगाई का भी एक मुद्दा रहा. क्रूड आयल के बढ़ते दामों के कारन बढ़ी महंगाई को तो सरकार अंतर्राष्ट्रीय समस्या कहकर टालती रही. अप्रैल-मई २००९, चुनाव से कुछ पहले संयोग से महंगाई पर कुछ नियंत्रण भी हो गया था. सरकार भी जमकर आम आदमी के हित में वादे पर वादे करती गई. डीजल, पेट्रोल, गैस, खाद पर सब्सिडी दी गयी, किसानों के ऋण माफ़ किये गए..
आम आदमी प्रसन्न हो गया. उन्हें लगा कि महंगाई इस सरकार ने कम की है,वरदान स्वरुप जनता ने कांग्रस को वोट किया. कांग्रेस के नेतृत्व में पुनः सरकार बनी. आशा और विश्वास किया जाने लगा, कि कम से कम महंगाई नियंत्रण में रहेगी. लेकिन यह भ्रम साबित हुआ. सरकार ने अपने सौ दिन के कार्यक्रम प्राथमिकता के आधार पर तय किये. जिसका पहला दुष्परिणाम सामने है- आसमान छूती महंगाई.
आम जनता अवाक, मौन, और चुप है. धोखा, विश्वासघात और वादाखिलाफी. अब खोने के लिए कुछ नहीं रहा. महंगाई के कारण दाल पूरी काली हो गयी है, या काली दाल के कारण महंगाई काली हो गयी है. सब्जी अपना रंग बदल चुकी है. फलों का रस नीरस लगने लगा. आटा, गेंहू, चावल, दलहन, तिलहन आदि के भाव से ऐसा लगता है कि इसकी उपज किसी लोहे,पत्थर और स्टील का उत्पादन करने वाली फैक्ट्री से हुआ हो, और यह सीधे बाजार में आ गया हो, जिससे व्यापारी वर्ग के लोग अपनी पूँजी बना रहे हों.
दुर्भाग्य है! किसान अन्न उपजाते-उपजाते अकाल पीड़ित होकर मर रहा है, और सरकार इस उपज से मलाई खा रही है.
क्यों नहीं? ऐसा होना स्वाभाविक भी है, कांग्रेस सरकार का दूसरा टर्म जो है, वो भी करीब-करीब पूर्ण बहुमत से. सत्ता का काला रंग, काला चेहरा और काली नीति दिखनी ही चाहिए.
"सत्ता पाइ काहू मद नाहीं, भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़तहि जाहीं."
-Smt. Neelam, Swaraj T.V.
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