सुरेश चिपलूनकर जी का नाम सुना था, पढ़ा नहीं था. मीडिया के हिन्दू-विरोधी चरित्र पर उनकी बचैनी ने मुझे मजबूर कर दिया, कि मैं भी कुछ कहूं.
भाई सुरेश जी, मीडिया इस्लाम का प्रचारक नहीं है. न ही मीडिया का काम चर्च में घंटा बजाना रह गया है. आप क्या चाहते हैं कि मीडिया शंख फूंके?
इस मीडिया को नमाज अता करते नहीं देखा, न ही किसी पादरी से सांठ-गांठ करते. हाँ, हमारे बाबा, स्वामी जरूर ही छाये रहते हैं. हिन्दू धर्म से जुड़े हुए सीरियलों का भरमार है. इन्ही चैनलों ने रामायण और महाभारत दिखाया, जिसका असर यह हुआ, कि भाजपा २ से ९२ पर पहुँच गई. इन्हीं चैनलों की कृपा के कारण हिन्दू धर्म के प्रणेता सत्ता तक पहुंचे.
कोई देवता अछूते नहीं हैं, जिसे निर्माता ने नहीं छुआ हो. भाग्य, भगवान और स्वर्ग की सीढ़ी को देखते-देखते आँखें थक गयी.
अब तो धार्मिक चैनल ही खुल गया है. खाए-पिए, अघाये साधू, दिनभर प्रवचन पेलते रहते हैं. पूरा इलेक्ट्रोनिक मीडिया भगवामय हो गया है. जिधर देखो उधर भगवा रंग ही मौजूद है. किसी मियां को चैनल पर कहाँ देखते हैं. आरती-महाआरती का लाइव प्रसारण हो रहा है. अब क्या चाहते हैं आप, कि मीडिया घर-घर प्रसाद बांटने जाए.....! आपकी मंगल कामना रही तो रिपोर्टर के हाथ में माइक के साथ-साथ जनता को देने के लिए भगवान का भोग और भभूत भी होगा. मीडिया के इस हिंदूवादी चरित्र को और कितना प्रभावी बनाना चाहते हैं.
आपके इस हिंदूवादी मीडिया की संकल्पना पर विमर्श जारी है.
शेष फिर.......
-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.
You Would Also Like To Read:
टी वी तो संचार का एक माध्यम है। धर्म भी विषय हो सकता है। 'हिन्दू विरोधी' बात को आप ने बड़ा सरलीकृत कर पेश किया है।
एक तरफा है यह। Q TV और इसाई चैनल नहीं दिखते क्या? बवाल काटने का इंतजाम है। तैयार रहिए।
आते होंगे।
भैया गिरिजेश, आप बात कहाँ के मीडिया की करना चाह रहे हैं???
भारत में कितना लोग ईसाई चैनल देख-सुन रहे हैं? बहुसंख्यक की बात कीजिये ना..
कितने धारावाहिक और समाचार चैनल ईसाई कार्यक्रम और अल्लाह की चर्चा में लगे हुए हैं?
Q TV याद है आपको....तो फिर श्रद्धा, आस्था और संस्कार क्यों भूल जाते हैं?
saare dharmo kaa pravachan aur prachar dikhaya jaata hai. aap shayad kewal hindu wala hi dekhte hian shayad. News channalo ki baat kar rahe honge wo shayad. Jab bakhiya oodhedani hoti hai yaa kurutiyan dikhaani hoti hai wahan hinduo ko hi prefer karte hain. Kyon bhai? Dusare dharm waalo se aise duri kyon? Sabko saman mauka dijiye. Kya aapke channel dusre dharm waale nahin dekhte? aap wahan par kyon hunduo ki fikar karte hain?
गिरिजेश जी, बवाल ही तो काटना है...न काटने की वजह से ही तो ये झाड़ पैदा हो गया है....
मैं भी एक हिन्दू ही हूँ..नाम से नहीं..कर्म से भी हूँ..
मैं सरकारी हिन्दू नहीं हूँ. मेरा हिंदुत्व मुसलामानों के विरोध से जिन्दा नहीं है.
यह कोई वाद नहीं....सभी विवादों से ऊपर है.
हिंदुत्व को मुद्दा न बनाएं....इसके पीछे का खेल क्या है..उसे अवश्य दिखाएं.
संवाद जारी रखिए। यह पाँचवी टिप्पणी है। अब दूसरी जगहों पर जा रहा हूँ। प्रारम्भ अच्छा रहा।
जो बातें भारत के बारे में कही जा रही है क्या वह सब पाकिस्तान या अरब देशों में सम्भव है ? जब लोकतंत्र बहुमत पर आधारित है तो फिर बहुसँख्यकों से जुडी चीज़ों पर आपत्ति क्यों?
मीनू जी, सवालों को देश से जोड़कर देखें, न कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक से जोड़कर. आतंकवादी, आतंकवादी है उसे हिन्दू आतंकवादी और मुस्लिम आतंकवादी कहना ठीक नहीं है.
जो देश का दुश्मन है, उससे रिश्तेदारी किस बात की?
आपत्ति बहुसंख्यक को लेकर के नहीं है, आपत्ति उस विचारधारा से है, जो देश को कमजोर करती है.
मीडिया को नाकारा ठहराया जा सकता है, उसके निठल्लेपन पर एक लाख बातें कही जा सकती हैं, लेकिन उसे हिन्दू विरोधी कहना बिलकुल ठीक नहीं है.
आखिर मुसलामानों को देश पर आक्रमण करने के लिए हिन्दू ने ही तो आमंत्रण भेजा था.
अपने अभाव को ढंकने के लिए मीडिया को दोषी ठहराना ठीक नहीं है.
आपकी तार्किंक बातों पर चिपलूंकर जी और उनके ''मित्रगणों'' ने कोई कुतर्क नहीं किया... हैरानी की बात है।
संदीप भाई,
यदि हम हाड़तोड़ मेहनत भी कर लें तो किसी के विचार तो बदल नहीं सकते, फ़िर काहे टिप्पणी करें… जैसे आपकी कथित "बर्बरता के विरुद्ध" (यानी सिर्फ़ हिन्दूओं की बर्बरता के विरुद्ध) में कुछ भी लिखा जाये हमें फ़र्क नहीं पड़ेगा, वैसे ही आपको भी हम कुछ भी लिखें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। जब रास्ते अलग-अलग हैं फ़िर फ़ालतू में टिप्पणी लेने-देने से क्या फ़ायदा…
विजयेन्द्र जी, मीडिया का काम न तो घंटा बजाना है न ही भभूत बाँटना. लेकिन आजकल वह कर तो कुछ ऐसा ही रहा है. कभी वे भेड़ा - भालू की स्टोरी लिए दर्शकों की ऐसी -तैसी करते रहते हैं और कभी छिछोरे चुटकुले सुनाकर परिवारों को शर्मिंदा करते रहते है. इनसे फुर्सत मिलती है तो शिशु-मदिरों में 'ग' से 'गणेश' पढाये जाने पर स्यापा करते हैं या फिर इमरान हाश्मी और महेश भट्ट की मामा-भांजा सीरीज़ शुरू कर देते हैं. भैया, जब मदरसों में हिल-हिल कर दिन भर कुरान रटने पर कोई रोक नहीं तो फिर शिशुमंदिरों में 'ग' से 'गणेश' पर पेट में दर्द क्यों उठ रहा है ? अगर रामायण और महाभारत दिखाने भर से सत्ता पाई जा सकती (क्या तर्क दिया है!!) तो फिर हजारों करोड़ चुनाव प्रचार या फिर अन्य कार्यों में 'जाया' करने की आवश्यकता ही ना रहती.
आपका 'निर्माण संवाद' मैं अक्सर पढता हूँ और उसके लेखों का प्रसंशक भी हूँ परन्तु आज आपके कुतर्की संवादों को पढ़कर अचंभित हूँ.
@ अमित तिवारी "संघर्ष"
: मुगालते में मत रहिये. आपका हिंदुत्व अगर जिन्दा है तो उन तमाम शूरवीरों के कारण जो तलवार की नोक पर भारत के इस्लामीकरण की राह में अडिग बाधा बनकर खड़े हो गए और जिनके सिरों की ऊँची-ऊँची "कल्ला मीनारे" चुनवा कर अल्लाह- हो- अकबर के नारे लगाये गए. आपके पूर्वज भी शायद उनमें से रहे हों वर्ना आज आप खुद भी कलमा पढ़ रहे होते (अगर अभी तक नहीं पढ़ा है तो).
बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए एक हिन्दू ने ही आमंत्रित किया था और उसे "जयचंद" के नाम से जाना जाता है. ऐसे हजारों 'जयचंद' आज भी 'लाल कालीन' बिछाए ऐसे 'बाबरों' का इन्तेजार कर रहें हैं.
चिपलूनकर जी, बात तो टिप्पणी लेने-देने की बात तो आपने समझदारी की कही है, सहमत हूं।
लेकिन भाई, आप फिर वही...बर्बरता के विरुद्ध में कांग्रेस की नकली धर्मनिरपेक्षता, संसदीय वामपंथियों ढोंग के बारे में भी लिखा गया है। और हां, पहले भी कई बार कहा है, आप जबरन हिंदुत्व के विरोध को सभी हिंदुओं से जोड़ने का प्रयास क्या करते हैं भाई। खैर, विजयेंद्र जी ने सही जवाब दिया है।
भाई विजयेन्द्र, मैं संदीप जी जितना पढ़ा-लिखा तो नहीं हूं, इसलिये शायद मैं हिन्दुत्व का मतलब उन्हें ठीक से समझा नहीं पा रहा हूं… बहरहाल, आपने मीडिया की तरफ़दारी बड़े जोरदार तरीके से की है, लेकिन एक बात बताना आवश्यक है कि यदि मीडिया बाबाओं, तांत्रिकों, ज्योतिषियों और आरती-महाआरती का प्रसारण/प्रकाशन कर रहा है तो कोई हिन्दुत्व पर अहसान नहीं कर रहा, बल्कि उसे इसमें "माल" कमाने का मौका मिल रहा है इसलिये कर रहा है, नेहरु डायनेस्टी TV (NDTV) भले ही कितना भी हिन्दू-विरोधी राग अलापे, लेकिन माल कमाने के लिये उसे इमेजिन पर रामायण दिखाना ही पड़ेगा। असली आपत्ति, भाजपा की "तिल" जैसी बात को "ताड़" बनाने, लेकिन कांग्रेस और नकली सेकुलरों के बड़े से बड़े अपराध को न दिखाने की मानसिकता पर है, और इसके कई उदाहरण दिये जा सकते हैं… दिये जा रहे हैं…।
मीडिया के किसी भी स्वरूप की चर्चा कर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहूंचा जा सकता। चिपलुंकर जी!
आपको एक बात मानने से परहेज़ नही होगी कि ,
दूकान पे बैठे साहू का एक हीं धर्म और एक हीं गुण
है, माल बनाओ ! इस बाज़ारू मीडिया की नश्ल न देखें। कोठे पर जाने वाले की जात नही देखी जाती।
सुरेश भाई, एनडीटीवी का नाम बिगाड़ने के पीछे की मानसिकता को अलग कर दिया जाए, तो आपने नाम खूब रखा है, नेहरू डायनेस्टी टीवी, बढ़िया है।
जब भी कोई समाज अपनी पीठ विज्ञान की तरफ़ करता है तो उसका मुंह अपने आप अन्धविश्वास की ओर हो जाता है. ऐसे समाज में अन्धविश्वास के पौधे तेज़ी से पनपते हैं. सांप्रदायिक फासीवाद के नए उभार के लिए समां बनाने में मिडिया की भी बड़ी भूमिका है. न्यूज़ चैनलों की घोर पूर्वाग्रस्त और आक्रामिक रिपोर्टिंग के साथ ही एक के बाद एक धार्मिक चैनलों ने रामजन्मभूमि मुद्दे पर संघ परिवार के आन्दोलन के लिए फिजां तैयार करने में भूमिका निभाई थी. टीवी पर भूत-प्रेत, जादू-टोना और अंधविश्वासों को फैलाने वाले कार्यक्रमों की भरमार है.
विजयेन्द्र जी आपकी भाषा तो कुछ कहे ना कहे एक बात तो कह गई : " आप बिलकुल सेकुलर हो | "
चलो मैं भी हाल ही मैं सेकुलर बना हूँ | और इसपे २-४ पंगती लिख दिया है :
क्या करूँ मज़बूरी समझो, सत्य बोला तो सांप्रदायिक कहलाउंगा
ना बाबा सांप्रदायिक नहीं कहलाना, मुझे तो सेकुलर बन के रहना है |
सत्य नहीं बोलूंगा, मौन धारण कर लूंगा, झूठ भी बोल सकता हूँ
पर सांप्रदायिक नहीं कहलाउंगा
अब बताओ सेकुलर बनने के आसान तरीके
क्या कहा स्तुति करनी होगी, लो अभी स्तुति गाल करता हूँ
जय हो ..., जय हो ... तुम्ही तो हो भारत के भाग्य विधाता, हम सब के पालन हार |
क्यों अब तो सेकुलर बन गए ना? क्या कहा अभी तो मैं सेकंड क्लास का सेकुलर बना हूँ ?
नहीं मुझे तो फस्ट क्लास सेकुलर बन के रहना है, कुछ कान मैं मन्त्र बताओ |
अच्छा ..मजार पे चादर चढानी होगी, भारतीय सभ्यता संस्कृति को गरियाना होगा ...
चलो ये भी कर लिया, अब तो मैं फस्ट क्लास सेकुलर बन गया ना ?
सेकुलर भाइयों से बधाई खूब मिली है, लगता है जीवन सफल हो गया
चलो आज ही सवा सेर लड्डू बजरंगवली को चढाता हूँ ...
किसी ने सुना तो नहीं ... , गलती हो गई भाई बजरंगवली की जगह दरगाह पे चादर चढा के आता हूँ |