" मैं संस्कृति से मुसलमान, शिक्षा से ईसाई तथा दुर्भाग्य से हिन्दू हूँ......"
'हिन्दू होना' एक दुर्भाग्य तो नेहरु के लिए स्वाभाविक ही था. "मातृवत परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत...." यह भाव नेहरु की आधुनिकता के लिए सबसे बड़ा बाधक था. नेहरु स्वयं भी और देश को भी, दकियानूसी ख्यालों से बाहर निकालना चाहते थे.
नेहरु खूबसूरत थे. मोतीलाल के लाडले थे. धन की कोई कमी नहीं थी. भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. शोहरत का क्या कहना? विदेशी शिक्षा-दीक्षा के कारण व्यक्तित्व भी आधुनिक था. आधुनिकता के कारण वे किसी परंपरागत मूल्यों से न तो बंधे थे, न ही देश को बांधना चाहते थे.
कुंवारे नेहरु विदेश में जब थे, तो उन्होंने एक लड़की का चुम्बन ले लिया. नेहरु की इस दिलफेंक अदा के कारण कॉलेज प्रबंधन ने नेहरु पर जुर्माना लगा दिया.यह खबर मोतीलाल को मिली. इन्होने कहा कि "जुर्माना की राशि मैं भेजता रहूँगा, यह अपराध और दुहराना....." इस तर्क के पीछे मोतीलाल का पुत्रमोह था या और कुछ; पर तय है कि सौंदर्य के प्रति नेहरु का रागात्मक सम्बन्ध बचपन से ही रहा.
सौंदर्य की साधना में देसी या विदेशी होने का कोई मामला नहीं था. इडविना माउन्टबेटन कोई इकलौती नहीं थी. कुछ ज्ञात है, तो कुछ अज्ञात.....
पद्मजा नायडू ऐसी ही एक बिंदास बाला थी, जो नेहरु से उम्र में काफी कम थी. वह भारत की 'पहली महिला मुख्यमंत्री' 'सरोजिनी नायडू' की बेटी थी. बेटी क्या थी, कि बवाल थी.... नेहरु जैसी शख्शियत से दिल-लगी हो जाए तो उससे ज्यादा बढ़िया और क्या हो सकता है......पद्मजा का विचार और व्यवहार आधुनिकता से कुछ ज्यादा ही प्रभावित था.
नेहरु, पद्मजा के पास अक्सर आते. पद्मजा हहराती नदी थी, जो नेहरु के प्रेम-सागर में विलीन होती रहती. नेहरु के गले में अपनी बाहों का हार डालती, मनुहार करती. भावुकता नेहरु को बहुत दूर बहा ले जाती थी, एकदम सुदूर एकांत की ओर.... आत्मिक मिलन का आवेग इतना तीव्र होता था, कि नेहरु कई दफा दरवाज़ा तक लगाना भूल जाते थे. कई बार तो दूसरे लोग अपनी लाज बचाने के लिए दरवाजा बंद कर जाते थे.
ऐसे ही मृदुला साराभाई भी उनमें से एक थीं. एक समृद्ध यौवन की स्वामिनी साराभाई...शून्य में निहारती उसकी आँखें....साराभाई नेहरु के प्रेम में इतनी दीवानी थी, कि अक्सर प्रोटोकॉल तोड़ती रहती. पी.एम्.ओ. परेशान रहता. नेहरु ने मृदुला साराभाई को सहारा दिया.. प्रेम का भरोसा दिया. साराभाई भी नेहरु को पाकर निहाल थी.
नेहरु आम आदमी नहीं थे. वे भारत के प्रधानमंत्री थे. उनका आचरण भारतीय मूल्यों को प्रभावित कर रहा था. Frivolous और Fling शब्द का जुड़ना, देश की मर्यादा खंडित करने वाली थी.
नेहरु, कभी भी अपनी प्राथमिकता तय नहीं कर पाए, कि उन्हें दिल्लगी करनी है कि देश चलाना है? देश के नायक अगर मूल्यों और मानकों का उलंघन करेंगे, तो आम जनता कहाँ से शिक्षित होगी?
"यथा राजा, तथा प्रजा.." राजा ही अगर किसी फूहड़ संस्कृति को बढ़ावा दे, तो आम लोगों का क्या होगा? काश! वे प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र देकर प्रेम करने और प्रेम-पत्र लिखने में समय लगाते, तो देश का भविष्य कुछ और ही होता. ... ऐसा नहीं है कि उन्हें केवल प्यार की भूख थी; पद की भी भूख उतनी ही थी... अशक्त होकर नेहरु बिछावन पर आ गये, बावजूद प्रधानमंत्री बने रहना चाहते थे.
देश उनकी प्राथमिकता में था कहाँ? आजाद भारत के लिए देखा गया सपना भले ही ना पूरा हुआ हो, पर नेहरु की आशिकी का सपना अवश्य ही साकार हुआ.....
हमारे जलधारी गुरूजी बचपन में नेहरु के बारे में पढाते थे, कि -"बच्चों हमारे चाचा नेहरु इतने बड़े लोग थे कि उनकी धोती फ्रांस से धुलकर आती थी." उस वक़्त भी गुस्सा आता था कि क्या देश का धोबी नाकारा हो गया, कि उनकी धोती तक नहीं फींच सकता...?
नेहरु को भी गुस्सा था यहाँ के लौंड्री वालों से....... तभी तो देश जब नेहरु से लंगोटी मांगता...तो वे टोपी पहना देते थे.
खैर, उनकी सफेदी के चमत्कार से आँखें तो अवश्य चौन्धियायीं, पर देश की चमक वापस नहीं लौट सकी.
जय हो चाचा नेहरु की एवं अघोषित चाची नेहरुओं की.....
बस, चाचा माफ़ करना इस भतीजे को......
-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.
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"नेहरु, कभी भी अपनी प्राथमिकता तय नहीं कर पाए कि उन्हें दिल्लगी करनी है कि देश चलाना है? "
-बिलकुल सही कहा आपने. एक रईसजादे कि ऐयाशी और बेवकूफियों की भेंट चढ़ गया हमारा देश. एक अव्यवहारिक, अदूरदर्शी नेता के (कु) संस्कारों से लैस संततियों को भुगतने को अभिशप्त १२५ करोड़ जनता को इस त्रास से कब छुटकारा मिलेगा ईश्वर ही जाने.
yah aapkee murtee bhanjan karyakram chal raha hai .blog matlab ab mere liye nirman samvad ho gaya hai. sawalon kee jharee laga dee hai aapne. satya rakhne kee yah shailee theek nahee
ye nehru khandan ki baatein hi nirali hain ji.......
inhe aur aata bhi kya tha....aiyyashi ke alawa........
lage rahiye is pardafash kaarykram mein...hum apke sath hain..
sach mein....nehru ji ka ye sach to bilkul hi chhupa raha hai abtak..
lekin ab desh ki tamaam samsyayon ka karan samjh aa raha hai..
is sach ke anaavaran ke liye dhanyavad
नेहरू जैसी शख्सियत के आगे ये प्रधानमंत्री आदि पद गौड थे -उनकी गिनती चंद महामानवों में थी ! वे बहुत सहज थे और स्वाध्याय और विद्वता में उनकी सानी कम ही थी ! आपने उनके बहुरंगी व्यक्तित्व के जिस पहलू का संस्पर्श किया है वह उनकी निश्छलता की और संकेत करती है -कितनी सुंदरियों को उन्होंने कृतकृत्य किया जो अन्यथा लोक गम्यता को ही प्रस्तुत होतीं ! नेहरु ने उन्हें भी कालजयी बना दिया !
भतीजे उद्विग्न न होवो -नेहरू जैसी विशालात्मा के लिए यह सब तुच्छ सा ही था !