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अपने सम्मान के लिए..

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 8/24/2009 07:08:00 am


कभी तो जिंदगी रात के अंधेरो
से विचलित हो जाती थी,
समय की ऐसी हवा चली कि
दिन के उजाले भी काटने को रहते है.

क्यों सहम गई है जिंदगी,
क्या कोई तूफ़ान सा आया है
हर घड़ी-हर पल चुप सी है,
ये डर का कैसा साया है?

कभी जो मासूम, अल्हड़ बचपन
था, वही आज जवानी है,
जिसकी आहट से ही, आखों
मे बरसता हुआ ये पानी है,

दूर से घूरती नजरे
एक वहशियत की निशानी है,

खिलखिलाती हँसी ना जाने क्यों
अब गुम-सुम सी हो गई
सपनो के लिए बेचैन सी आँखें
कहीं बेखबर सी सो गयी हैं.

पर नही अब नही, अब और नही
अब इस डर से हमे लड़ना होगा
खुद को कत्ल करके थक गए हम,
उन वहशियों को ख़त्म करना ही होगा,

कोई एक कहे तो उसे पलट
कर कुछ कहना होगा
अब तक नहीं समझे है हमे,
उनकी समझ को बदलना होगा

हम जिंदगी को जन्म देने का दर्द सह सकते है,
तो हम जुर्म करने वालो को, उस
दर्द का अहसास भी करा सकते है
हमारी एकता हमारी शक्ति है,
किसी का जुर्म हमे कमजोर नही कर सकता
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5 Response to "अपने सम्मान के लिए.."

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति।
    बधाई।

     

  2. हमारी एकता हमारी शक्ति है,
    किसी का जुर्म हमे कमजोर नही कर सकता
    बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति बधाइ

     

  3. Nidhi Sharma Said,

    बहुत सुन्दर और गंभीर रचना......
    नारी मन का सहज चित्रण...
    विचारणीय है..

     

  4. Unknown Said,

    d hard reality f life..bt if we decide to stand united no wrongs can stop us from surmounting d obstacles...touching composition..n excellent expression of thoughts.

     

  5. Unknown Said,

    d hard reality f life..bt if we decide to stand united no wrongs can stop us from surmounting d obstacles...touching composition..n excellent expression of thoughts.

     


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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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