सुरेश चिपलुन्कर जी! आपके 'हिन्दू विरोधी मीडिया' के विचार पर मैं आगे कहना चाहूँगा, कि मीडिया हिन्दू विरोधी नहीं, बल्कि दलित विरोधी है.
प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया, कितने दलित और पिछडों को आपने संपादक और रिपोर्टर के रूप में देखा? हर अख़बार और चैनल के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति कौन है? क्यों जाति विशेष के लोग ज्ञानसत्ता पर अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं? अर्थसत्ता, राजसत्ता और ज्ञानसत्ता पर दावेदारी और दखल किनका है? अगर 'हिंदुत्व' का आशय 'ब्राह्मणत्व' से या 'राष्ट्रवाद' का आशय 'ब्राह्मणवाद' से है, तो मामला बहुत ही गंभीर है.
नाम का अंतर्जाल मैं नहीं बुनना चाहता, जैसा कि आपने, अपने लेख में लिस्ट जारी किया है, पर अगर मीडिया के शीर्ष पर बैठे बाबा और पंडित-पुत्र ही हैं, तो भी ये आपके हिंदुत्व की चिंता क्यों नहीं कर रहे हैं? आपकी यह चिंता वाजिब है. चिंतित ना हों आप, ये पत्रकार वही काम कर रहे हैं, जो आप चाहते हैं.
चिपलुन्कर जी, आप माने या ना मानें, पर यह सत्य है कि बाजारवाद और ब्राह्मणवाद एक-दूसरे के पूरक हैं. और इन दोनों का चरित्र भी एक ही है. दोनों ही विषमता के पाँव पर आगे बढ़ते और पलते हैं. कम से कम श्रम कर, अधिक से अधिक संसाधन का उपभोग ही तो 'ब्राह्मणवाद' है. बाज़ार भी कम से कम पूंजी लगाकर अधिक से अधिक मुनाफा लूटना चाहता है. दोनों पेरासाईट है, श्रमहीन और कर्महीन भी. बौद्धिक चातुर्य ही तो असली उपादान है इसका. जब तक नासमझी और बेवकूफी समाज में बरक़रार है, तब तक श्रमहीन संस्कृति कभी नही मरेगी.
मीडिया राष्ट्रविरोधी है. इसकी चिंता आप क्यों नहीं करते? क्यों मीडिया के हिन्दू-विरोधी चरित्र से परेशान हैं?
"राम-नाम जपना, पराया माल अपना" बनाने वाले हिन्दू से, हिंदुत्व नहीं बचेगा. जो हिंदुत्व जीता है और जो हिंदुत्व बोलता है, कौन सा हिन्दू पसंद है आपको?
पिछले ढाई हजार वर्षों की गुलामी के जिम्मेवार कौन हैं? जिस देश का मन खंड-खंड में बँटा हो, वह बँटा समाज कब तक प्रतिरोध करेगा? पराभूत होना स्वाभाविक ही था.
मीडिया के लिए हिन्दू कौन है? उनके लिए हिन्दू का मतलब ब्राह्मण, यादव, चमार, दुसाध, लोध, कुर्मी और कोयरी है.....हिन्दू कहाँ है? अपमानित होकर कोई क्यों हिन्दू बनना चाहेगा? और अपमानित करने के लिए हिन्दू बनाये ही क्यों रखना चाहते हैं.? 'न हिन्दू पतितो भव' यह विचार क्या केवल अवधारणाओं में ही रहेगा या इससे बाहर भी निकलेगा?
हिंदुत्व इस अन्तर्विरोध से बाहर नहीं निकलेगा, तो फिर इसके जिन्दा रहने के और क्या आधार हैं?
भाई सुरेश जी, किसी चैनल या अख़बार का हेड अगर दढियल मियां होता, तो इस कथित कटुआ पर आप शंका करते, पर ये सब तो आपके ही भाई-भतीजा हैं?
हाँ, मीडिया, दलित और मुसलमान विरोधी अवश्य है. मीडिया का प्रयास है, कि दलित को नक्सली घोषित करना और मुसलमान को आंतकवादी. मीडिया, कबीर और बुद्ध का भी विरोधी है. कभी आपने देखा, कि किसी निर्माता-निर्देशक ने कबीर पर धारावाहिक बनाया है? कबीर क्यों नहीं पचता मीडिया को? कबीर जैसे अड़ियल और बेबाक व्यक्ति के नाम पर पैसा कौन देगा? कबीरा तो बाज़ार में लुकाठी लिए खडा है. घर भरने वाला, घर-जारो के चक्कर में क्यों पड़े?
आप जिस हिन्दू की बात कर रहे हैं, मीडिया उस हिन्दू के बगैर एक कदम भी नहीं चल सकता. माल तो आखिर इसी से झडेगा. हिन्दू के पास दान है, दक्षिणा है, भोग है, प्रसादी है, चढ़ावा है. निर्गुणी और निरंकारी बनकर मीडिया को क्या मिलेगा? मीडिया को क्या बेवकूफ समझ लिया है, जो वह हिन्दू विरोधी बने?
चिपलुन्कर जी, यह बहस नहीं, विमर्श है; और विमर्श अभी ख़त्म नहीं हुआ है, यह अब शुरू हुआ है...
-Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.
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पूर्णतः सहमत
बिलकुल सही कहा आपने मिडिया का आचरण राष्ट्र विरोधी ही है नहीं तो जिस तरह से चाइना ने कहा भारत को ३०-३५ भागो में विभाजित किया जा सकता है . इस पैर मीडिया ने क्या रुख अपनाया.
लगता है आप ब्लोगिंग में अपेक्षित सफलता न मिलने से कुंठित हैं, तभी दूसरे ज्यादा सफल ब्लॉगर के नाम शीर्षक में रखकर ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं.
अब इस टिप्पणी पर लोई पोस्ट न लिख डालना!
भैया कुछ पढ़ाई-वढ़ाई भी की है या केवल "पत्रकार" हो। अपनी बातों के समर्थन में कुछ उदाहरण और आंकड़े भी देते तो बात बनती (सुरेश चिपलूनकर सबसे अधिक उदाहरण और आंकड़े देने वाले हिन्दी ब्लागर हैं)
दुनिया में सबसे पुरानी संस्कृति कौन सी बची है?
उसमें कौन सी बात है जो आज तक बची है? ये भी बता दो कि कौन गुलाम नहीं रहा है? यूनान कहाँ गया; रोम कहां गया; मिश्र की सभ्यता कहां है? अंग्रेजों ने दुनिया के बहुत बड़े भाग पर शासन किया लेकिन फ्रांस और जर्मनी के लोगों ने उनके उपर बहुत दिनों तक शासन किया है। ये अमेरिका गुलाम था पता है कि नहीं? चीन भी गुलाम रहा है।
भारतीय मेडिया की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह मूर्खों की भीड़ है। अर्धशिक्षित और अल्पशिक्षित भरे पड़े हैं। तुम्हे शारीरिक श्रम की तुलना में मानसिक श्रम का महत्व पता नहीं है। किसी भी देश का विकास केवल बैल की तरह मेहनत से नहीं होता। उसमें बौद्धिक श्रम करके बौद्धिक उत्पाद बनने वालों का अधिक महत्व है। आज का युग 'नॉलेज इकनामी' का युग है। कृषि अर्थव्यवस्था, औद्योगिक अर्थव्यवस्था और यहाँ तक कि 'सेवा अर्थव्यवस्था' बीते समय की बात हो गयीं हैं।
हाँ, मनु को पढ़ लो। मूर्खों की तरह सुनी-सुनाई बात का भोंपू मत बजाओ। जरा देखो कि मनु ने धर्म के बारे में क्या कहा है-
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। (मनुस्मृति ६.९२)
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना - ये दस धर्म के लक्षण हैं । )
किसी और धर्मग्रन्थ में इतनी साफ-सुथरी बात कहीं लिखी हो तो जरूर बताना।
आपने सौ बात की एक बात कह दी, बेवकूफ वह है जो मिडिया को हिन्दू विरोधी कहे?
भाई जी!
सादर वन्दे !
माफ़ करियेगा लेकिन लगता है आप जरूरत से ज्यादा बुद्धिमान हैं, ये आप ब्राह्मणों की तुलना जो व्यवसाय से कर रहे है ये निश्चित ही आपके दूरदर्शिता (बिना जानकारी व शुद्ध मानसिकता ही आप जैसे लोगो की भाषा में दूरदर्शिता कही जाती है) का ही परिणाम है,
हमारे गोरखपुर के एक शायर ने एक बहुत ही अच्छी बात आप जैसे लोगों के लिए कही है कि:-
आज मैंने खुद को बड़े आसानी से मशहूर किया है,
कि मैंने अपने से बड़े शख्स को गाली दी है .
मेरी भगवान से प्रार्थना रहेगी कि आप जल्द ही अच्छे हो जाएँ, नहीं तो पत्रकारों कि इतनी सच्चाईयां मै जनता हू कि आप जबाब नहीं दे पाएंगे,
गुस्ताखी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ,
रत्नेश त्रिपाठी
@ अनुनाद सिंह
एक दो लाइन की कमेंट में व्यस्त आंकड़े देने वाला ब्लागर एक हफते पहले राजीव गांधी पर ऐसी रिपोर्ट लाता है जैसी सारा मिडिया जगत मिलके ना जुटा पाये दूसरे हफते फिर मिडिया तंत्र पर रिश्ते नातों पर ऐसी रिपोर्ट लेके आता है जिसकी शायद सारे मिडिया को खबर नहीं, भाई ऐसी बातों से साफ पता चलता है गाना किसी ने लिखा गा कोई रहा है, मेरे सदके अब तो यह गाने भी इनके पास कोई नहीं लेके पहुंचे कियूंकि पिछले हिट जो नहीं होने दिये गये,
सभ्यता कहां गई जनाब तो सारे जहां से अच्छा की यह पंक्तियां गुनगुनाईयेः
''यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा'' --------मैं समझ नहीं पाया इकबाल आपकी सभ्यता को कह रहे हैं या किसी और की?
यह दशागुण उस महान लेखक में डालदो कियूंकिः
धैर्य: नहीं उसमें इतनी बडी-बडी रिपोर्टें इतनी जल्दी लाने से पोल खुल जाती है कि यह किसी और की मेहनत है
क्षमा: करने योग्य नहीं झूठा भी है औरंगजे के ठीकठाक लेख को तोडमरोड के ब्लागजगत को पेश किया था,
संयम: नाम की चीज तो जानता नहीं मौलाना से गू की बात कर बैठे रेल में जनाब
चोरी न करना: दूसरों की रिपोर्टों को अपना बनाना चोरी ही तो है
शौच ( स्वच्छता ): जो रेल में गू गोबर की बात करता हो उसमें स्वच्छता वाला गुण्ा भी नहीं है
इन्द्रियों को वश मे रखनाः यह गुण भी कहां है उनके बस में देखलो यहां अभी आजायेंगे
बुद्धि: यह गुण भी कहां है उनमें होती तो इस्लाम के खिलाफ कुप्रचार ना करते
विद्या : यह कितनी है यह रेल में उनके चुटकुले सुनकर समझ में आगया फुटपाथी किताबों से लेकर सुनाये गये हैं
सत्य : यह गुण होता तो मिडिया का हिन्दू विरोंधी ना कहते
क्रोध न करना : खांटी जवाब क्रोध में ही दिये जाते हैं
मनु के बताये गुण में से महान लेखक में एक भी नहीं पाया जाता,
रही बात किसी और धर्मग्रन्थ की तो भैय्या वह तमाशा भी यहां दिखादेंगे, इसमें तो हमें दुनिया जाने है आपको किया बताना, अभी प्रतीक्षा करते हैं गुणी महाराज किया कहते हैं, तब तक जमें रहिये
कीचड़ उछालने और लाँछन लगाने से पहले तथ्यों की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए. वरना लोग मुर्ख कहते हैं और लोग हमेशा गलत नहीं होते!
मोहम्म्द कैरवानी,
१) मिश्र, यूनान, रोम की सभ्यता के बराबर या उससे पुरानी सभ्यता कौन है? क्या तुम इस्लाम को समझते हो? इस्लाम तो जितनी तेजी से फैला उतनी ही तेजी से इस प्र ब्रेक भी लगा और पीछे भी धकेला गया।
२) दुनिया में कोई भी आंकड़े तैयार नहीं करता। उसके पास सन्दर्भ (reference) रहते हैं और वह जानता है कि कौन सी जानकारी कहाँ है। मूर्ख लोग यही नहीं जानते। यही सुरेश को अच्छी तरह पता है। जब हमको चाय पीने की जरूरत होती है तो हम भैंस खरीदने के लिये नहीं निकल पड़ते हैं। किसी ग्वाले से दूध लेकर अपनी आवश्यकता के अनुरूप बढ़िया चाय बनाते और पीते हैं।
३) आपको बहुत पहले बता चुका हूँ कि पूरी कुरान में से छाँटकर केवल पाँच उद्धरण (कोट) बता दीजिये जिन्हें किसी विद्वतमण्डली में सुनाया जा सके। हम बहुत दिन से राह देख रहे हैं। देखते हैं कि आप इस जनम में यह काम कर पाते हैं या नहीं।
४) रही बात धर्म के दस लक्षणों की। ये तो सुरेश जी में कूट-कूट के भरे हैं। हाँ उनमें चाणक्य द्वारा प्रतिपादित कुछ महत्वपूर्ण गुण और भी हैं जिसके कारन हर ऐरा-गैरा उनसे पार नहीं पा सकता।
भैया त्रिपाठी जी,
आपने मेरे बारे में जो लिखा है उससे आप अपने ही व्यवहार की खिल्ली उड़ा रहे हैं। इस लेख में जब आप अपने से बड़े सक्स को गाली दे रहे थे तब क्या यह 'शेर' याद नहीं आया था? इसी बात को उपर एक भाई ने पहले ही कह भी दिया है।
मुझे आज के पत्रकारों की सच्चाइयाँ कम पता हैं कुछ लिखिये न कभी?
और हाँ, त्रिपाठी जी,
आपने अपने लेख में संस्कृत की एक सूक्ति उद्धृत की है; जरा जाँच लीजीये कि गलत तो नहीं है!!!
भाई जी
सादर वन्दे!
मैंने आप से पहले ही क्षमा मांग ली थी! शायद आपने पढ़ा नहीं, मै आप जितना जानकर नहीं हूँ इसीलिए दूसरों की बात में बिना जानकारी के टांग नहीं अडाता, वो तो आपने ब्राह्मणों के विषय में इतनी सुन्दर जानकारी व लोकप्रिय बात लिखी की नहीं रहा गया, नहीं तो मै भला किस खेत कामूली हूँ, विद्वान तो आप हैं, लेकिन यकीं मानिये मै आप की तरह विद्वान बिलकुल नहीं होना चाहता,
और रही बात पत्रकारों के बारे में तो जितना दलदल में ये चौथा स्तम्भ है उसकी चर्चा हम करे तो आज की नारियों का अपमान हो जायेगा जो ................., माफ़ करिए मै आप की तरह हिम्मती नहीं हूँ, मुझे लोगों को गाली देना नही आता, नही सम्मानित भाषा में और न ही अपमानित भाषा में.
एक बार पुनः क्षमाप्रार्थी हूँ.
रत्नेश त्रिपाठी
विजयेन्द्र जी ,
आपकी कल्पित कथा अनुसार मीडिया मनुवादी और मनीवादी दोनों है , लेकिन आप भी तो इसी मीडिया के अंग हैं क्यों नहीं कुछ मुहीम चलाते ?
१. मीडिया ने आजतक कितनी बार हमारे गौरवशाली इतिहास की एक झलक भी दुनिया के सामने रखने की कोई भी ईमानदार कोशिश की है अरे भाई जब इस मीडिया ने हजारों - लाखों ऋषियों , महापुरुषों के कृतित्व और व्यक्तित्व को घास नहीं डाली तो कबीर दास जी और महात्मा बुद्ध किस खेत की मूली हैं |
जरा इन महानुभावों के बारे में भी पढिये और बताइए की मीडिया ने कब इनके बारे में ढोल पीटा है |
१. महर्षि पाणिनि
२. वेद - व्यास जी
३. चिकित्सक श्रेष्ठ सुश्रुत
४. आर्यभट्ट
५. वाराहमिहिर
६. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
७. महाराज यशोधर्मन
८. महाकवि सूरदास जी
९. संगीत शिरोमणि संत हरिदास जी
१०. महाराज कृष्णदेव राय |
वैसे ये लिस्ट आपको आईना दिखलाने के लिए काफी है |
अगर छोटी पड़े तो लाखों नामों की सूचि भी कहें तो भिजवा दूंगा |
२. आपने लिखा है कि " कम से कम श्रम कर, अधिक से अधिक संसाधन का उपभोग ही तो 'ब्राह्मणवाद' है. "
अच्छा आपने तो वाकई हमारी आँखे खोल दी है हम तो आज तक इसे ' प्रबंधन का सिद्धांत ' ही समझ बैठे थे और धन्य है ये सिद्धांत जिसको न जाने कब से ब्राह्मणों ने अमेरिका को दे कर सारी दुनिया को चकाचौंध कर डाला |
भाई आज मीडिया का दखल जितनी आबादी को प्रभावित करता है वहां किसी भी जाती विशेष की मानसिकता काम नहीं करती अगर यकीन न हो तो मीडिया के प्रमुख चेहरों को देख लीजिये सभी ब्राह्मण - वाद की दुकान लगाये बैठे हैं
३. आपने लिखा है
" आप जिस हिन्दू की बात कर रहे हैं, मीडिया उस हिन्दू के बगैर एक कदम भी नहीं चल सकता. माल तो आखिर इसी से झडेगा. हिन्दू के पास दान है, दक्षिणा है, भोग है, प्रसादी है, चढ़ावा है. निर्गुणी और निरंकारी बनकर मीडिया को क्या मिलेगा? मीडिया को क्या बेवकूफ समझ लिया है, जो वह हिन्दू विरोधी बने? "
जनाब सही उत्तर यह है कि आप सभी ने हिन्दू धर्म को दान है, दक्षिणा है, भोग है, प्रसादी है, चढ़ावा है वाली व्यवस्था से जोड़कर ही देखा है |
कभी धर्म कि इन बातों पर भी गौर करिए .....................
१. साहित्य
२. व्याकरण
३. अर्थशास्त्र
४. विज्ञान .
५. मनोवृत्ति .
६. आयुर्वेद
७. सह- अस्तित्व
८. लोकमंगल
९. गणित .
१० . तर्कशास्त्र
११. कामशास्त्र
क्यों ये बातें धर्म का हिस्सा नहीं हैं या आपकी समझ में नहीं आती |
४. आपने लिखा है कि मीडिया मुस्लिम विरोधी है
" जनाब हिन्दुओं की श्रद्धा को चोट पहुंचाने वालों को जवाब देने वाले चिपलूनकर जी से बड़ी ही चोट लगी है क्या ? | "
:) :) :( :P :D :$ ;)
वरुण जी !
आपने सही रास्ता इस बंधू को दिखने का प्रयास किया है,
हे ज्ञान के भंडार जरा इन बातो को भी समझें तो हम लोगों पर आपकी बड़ी कृपा होगी
@ अनुनाद सिंह, पंक्तियां फिर से पढलो 'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी' अच्छा जी इस्लाम के पहले कितने मुल्क हो गये थे और अब कितने रह गये, उसके कितने मुल्क है जो बहुत बहुत पुराना धर्म है,
दूसरी बात में आपने मान ली ग्वाले से दूध खरीद लेते हो, वाकई मैंने यही तो कहा गाना किसी गाये कोई ताली आप जैसे बजाये
मिटटी के शेर मैं तो यहां कुरआन से 500 बता दूंगा देखते जाओ और आप भी चिपलूनकर साहब की तरह ग्रंथ का नाम लिखना ठीक करलो
, अज्ञानता का परिचय ना दो, उसका नाम कुरआन है xकुरानx नहीं महान लेखक अब ऐसे कुर-आन लिखते हैं यकीन ना हो तो albedar घूम आओ, आज खास इनायत रही मेरी इस ब्लाग पर
गुणों पर पहले ही कह चुका, भैया महान लेखक को भेजो वर्ना ब्लाग जगत में वह जहाँ हैं वहाँ जा के बात करनी पडेगी, उनसे तम्हारे कंधे से बन्दूक ना चलाये महानता दिखाओ,
दोचार रेल में सुनाये चुटकुले यहाँ भी आकर सुनादो,,
अच्छा फिर मिलेंगे तब तक इश्तहारात का मजा लिजिये
मोहम्मद कैर्वानी;
१) हर भाषा का अपना व्याकरन होता है। तुम्हारे कहने से कुरान गलत नहीं है। किसी भाषा में किसी शब्द का जो रूप प्रचलित होता है वही सही है। हम ब्रिटेन को ब्रितानिया और हॉस्पितल को अस्पताल ही कहते हैं। हमारे लिये यही सही है।
ये हिन्दी (देवनागरी लिपि) है उर्दू नहीं जहाँ 'लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर' वला हिसाब-किताब है।
२) अभी केवल ५ (पाँच) ही उद्धरण लिख दो। बाकी एक महीने में कभी लिख देना।
३) इकबाल की पूरी कविता पढ़ो। बिना सन्दर्भ के किसी भी वाक्य का गलत अर्थ लगाया जा सकता है। आपकी सुविधा के लिये बता दूँ कि इसी में आगे आया है "हिन्दी हैं हम..."
4) आप कुरान पढ़िये; सन्दर्भ वाली बात आपके समझ में नहीं आ सकती।
खेद के साथ लिखना पढ़ रहा है कि सोच भी दलित ही है !
किसी ब्लोगर के नाम से यदि पोस्टें लिखी जाने लगे, किसी ब्लोगर के नाम के कारण यदि किसी के ब्लॉग की टी आर पी बढ़ने लगे तो इसका मतलब यही हुआ की आप उसे सेलेब्रिटी का दर्जा दे रहे हैं. अतः बधाई चिपलूनकर जी . जय भारत.
लक्षण बहुत बुरे है अपने कपडे फ़ाडकर सडको पर भागते फ़िरने की नौबत आने से पहले मुहम्मद उमर साहब को साथ ले आगरा पहुचो . वहा आप जैसे लोगो के लिये सरकारी सुधार ग्रह मुफ़्त मेइलाज करता है
विजयेन्द्र जी बधाई हो, इस ब्लाग को पढ़ने वाले पाठकों की संख्या 180 से ऊपर हो गई (17।08।09 शाम 7 बजे तक)। आपका उद्देश्य सफ़ल रहा और मुझे भी नहीं पता था कि मेरा नाम लेने भर से इतनी टिप्पणियां और पाठक मिल जाते हैं… :)
सुरेश जी वाकई पॉपुलर हैं। विमर्श जारी रहे। बातें तो सब सच्ची हैं इस पोस्ट की। मनु ने धर्म की जो व्याख्या की है। वह आज के किस धर्म के अनुयायियों में देखने को मिलता है। इस माप तौल से तो सारे धार्मिक विधर्मी ही दिखाई देंगे।
लगता है पुरे ब्लॉग जगत में प्रसिद्धि पाने और ब्लॉग को हिट कराने का बढ़िया फार्मूला मिला है लोगो को ..............
किसी बड़े ब्लॉगर को घसीट लो दो चार कुतर्क भी लिख दो आलोचनाओ सहित .......... बस काम हो गया .... अब दूर बैठ कर मज़े लीजिये ... लोग तो आयेंगे ही ...
ब्लॉगर प्रसिद्दि भी पा ही रहे हैं चाहे वह सलीम खान हो, कासिफ आरिफ या ब्लॉग जगत के मोहम्मद साहब (अरे वही कैरवानी भाई) भले ही इन लोगो पर जूते पड़े हो और इनकी तुलना जानवरों से की गई हो परन्तु आज ऐसा कौन है जो इन्हें ना जाने ? :)
लगे रहिये ब्लॉग की TRP बढ़ ही रही है 200 का आकंडा पार हो गया है .............. (मीडिया वालों से और उम्मीद ही क्या है ?)
जब एक पोस्ट में नहीं बात बनी तो दूसरी दे मारे ......... आगे की भी उम्मीद है ही . |
:P :(
vijyendra jee ne jo khulasha kareney ka himmat dikhayee
hai use khud mahsoos karena hai to patrakar ban jaiye phir dekhiye kee media mathadhis kis tarah delhi ke pr dalaloon ke hatho main khelte hain . kaisha neta title dekher sambandh banate hain aur title nahi milne per patrakar ko dekhker kanni katte hai......................
देश की अल्पसंख्यक आबादी आज जिस कदर अलग-थलग और अपमानित महसूस कर रही है, वैसे पहले कभी नहीं था. आंतकवाद के बहाने पूरी मुस्लिम कौम को निशाना बनाया जा रहा है. बाबरी मस्जिद गिराए जाने और इसके बाद हुए सुनियोजित दंगो तथा गुजरात में राज्य मशीनरी के पूरी मिलीभगत से कराये गए मुसलमानों के कत्लेआम के बाद यह सांप्रदायिक फासीवाद के उभार का तीसरा और बेहद खतरनाक चरण है. देश की मुस्लिम आबादी के खिलाफ एक मुहीम छेड़ दी गई है जिसमें आंतकवाद तो महज़ एक बहाना है. आंतकवाद को वास्तव में ख़त्म करने में न भाजपा की दिलचस्पी है और न ही कांग्रेस की. दिल्ली के बम धमाकों के बाद जिस तरह आनन-फानन में पुलिस ने आंतकवादियों के नाम पर जामियानगर में दो मुस्लिम नौजवानों को मार गिराया और कई जाँच टीमों द्वारा पुलिस की कहानी पर ढेरों सवाल खड़े करने के बाद भी जिस बेशर्मी के साथ सरकार,पुलिस और मिडिया उसी कहानी को दोहराए जा रहे हैं वह आम मुसलमान के मन में इस धारणा को फ़िर मज़बूत बना रहा है कि इस समाज में उसके साथ इंसाफ नहीं हो सकता.
अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जमीन को लेकर चले आन्दोलन में संघ परिवार के संगठनों ने मुसलमानों के खिलाफ पूरे देश में जहरीला प्रचार अभियान चलाया था. जगह-जगह दंगे भड़काने की सुनियोजित हरकतें शुरू हो चुकी हैं.
पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ की फासिस्ट हिंदू वाहिनी बेरोकटोक अपना जहरीला प्रचार अभियान चलाते हुए घूम रही है. आजमगढ़ में योगी के काफिले में मुसलमानों को घोर अपमानजनक गालियाँ देते हुए नारे लगते हैं और इसके विरोध में पथराव होने पर मिडिया ख़बर देता है कि अंतकवाद के विरोध के लिए “आजमगढ़ गए योगी के काफिले पर कातिलाना हमला”. आजमगढ़ और खासकर संजरपुर गाँव को मीडिया में इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे वहां आंतकवादी ही पैदा होते हों. एस.एम.एस. ईमेल और ज़बानी प्रचार से इस किस्म की बातें फैलाई जा रही हैं कि “हर मुसलमान आंतकवादी नहीं होता लेकिन हर आंतकवादी मुसलमान होता है.”
दूसरी और नागपुर, मालेगांव और कानपूर में हुए विस्फोटों में आर.एस.एस. और बजरंग दल के लोगों के शामिल होने से स्पष्ट सबूत मिलने के बाद वे आंतकवादी नहीं माने जाते. अदालत को सिमी के खिलाफ एक भी सबूत न मिलने पर सरकार उसे फ़ौरन प्रतिबंधित कर देती है लेकिन बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाए जाने की मांग लटकाए रखी जाती है, बस बीच-बीच में कुछ कांग्रेसी मंत्री बयान देते रहते हैं कि बजरंग दल पर रोक लगनी चाहिए.
हजारों मुसलमानों के कत्लेआम की सच्चाई ‘तहलका’ की टेपों में सामने आने के बावजूद नानावटी आयोग मोदी को क्लीन चिट देता है, सोहराबुद्दीन और उसकी बीवी कौसर बानो की नृशंस हत्या के मामले में पूरी तरह नंगा हो जाने के बाद मोदी उनकी हत्या की जिम्मेवारी खुलेआम स्वीकारता है और इसे चुनावी मुद्दा बनाकर जीत भी जाता है. बजरंग दल के लोग जगह-जगह हथियारों की ट्रेनिंग लेते हैं, बम बनाते हुए पकड़े जाते हैं, अल्पसंख्यकों को जिंदा जलाकर मार देते हैं, सैंकडों घर जला देते हैं फ़िर भी उनका कुछ नहीं बिगड़ता. बाल ठाकरे हिंदू आत्मघाती दस्ते बनाने की बात करता है, बाबरी मस्जिद गिराने में शिवसैनिकों का हाथ होने की बात स्वीकार करता है, पर उस पर सरकार हाथ भी नहीं डालती. राज ठाकरे सरेआम लाखों लोगों के खिलाफ नफ़रत भड़काने वाले भाषण देता है, उसकी पार्टी के लोग सुनियोजित हमले करते हैं, हत्याएं, मारपीट और लूटमार करते हैं पर पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती. दूसरी ओर आंतकवाद के बहाने सैंकडों बेक़सूर मुसलमानों को बिना किसी सबूत के गिरफ्तार करके टार्चर किया जाता है, फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया जाता है, ऐसा माहौल पैदा कर दिया जाता है जैसे मुसलमान और नौजवान होना ही शक के घेरे में आने के लिए काफी है. पूरी कौम को कदम-कदम पर अपमानित किया जाता है, तरह-तरह से इस बात का अहसास कराया जाता है कि वे दोयम दर्जे के नागरिक हैं
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को ज़मीन देने के मसले पर चले आन्दोलन को संघ परिवार ने जिस तरह मुस्लिम विरोधी रंग दिया उसने माहौल को ओर जहरीला ही बनाया है. कश्मीर घाटी की जिस तरह से आर्थिक नाकाबंदी की गई उसके बाद घाटी के लोग अगर मुज़फ्फराबाद मार्च नहीं करते तो क्या करते? दूसरी ओर, उसके बाद से कश्मीर में जिस तरह का बर्बर दमन चक्र चल रहा है उसकी तो खबरें भी अख़बारों में कभी नहीं आई. दमन के खिलाफ फिलस्तीनी इंतिफादा की याद दिला देने वाले अंदाज़ में लाखों कश्मीरी जनता सडकों पर उतर आई पर इसे इस ढंग से पेश किया गया जैसे यह चंद अलगाववादियों का प्रदर्शन हो. सच तो यह है कि कश्मीरी जनता की अपने हकों की लडाई एक सेक्युलर लडाई थी जिसे सांप्रदायिक रूप देने और अपनी कारगुजारियों से वहां पाकिस्तान समर्थक लॉबी को मजबूत करने में सबसे बड़ी भूमिका भारत सरकार की रही है. कश्मीर शुरू से संघ परिवार के लिए मुसलमान विरोधी अंधराष्ट्रवादी प्रचार का एक बहाना रहा है और इस बार भी वे ऐसा ही करते रहे हैं.
मुद्दे के लिए वेचैन संघ परिवार की आक्रामकता बढ़ती जा रही है. रामसेतु का मुद्दा टाँय-टाँय फिस्स हो जाने और श्राइन बोर्ड के मुद्दे से भी देश में कोई लहर न बन पाने से बदहवास भाजपा को आतंकवाद के रूप में एक मुद्दा मिल गया है जिसके जारी लोगों में और खासकर मध्यवर्ग के भय के मनोविज्ञान का इस्तेमाल करके वह मुसलमान विरोधी भावनाएं भड़का सकती है और चुनाव में उसकी फसल काटने की उम्मीद कर सकती है. उसे पता है कि सत्ता के लिए फासिस्टों से भी हाथ मिलाने को तैयार पतित समाजवादियों और क्षेत्रीय अवसरवादी पार्टियों से जोड़तोड़ करके सरकार बनाने के लिए उसे जितनी सीटें चाहिए वह भी उसे केवल अंधराष्ट्रवाद और उग्र हिंदुत्व के नारों से ही मिल सकती हैं.
जब भी कोई समाज अपनी पीठ विज्ञान की तरफ़ करता है तो उसका मुंह अपने आप अन्धविश्वास की ओर हो जाता है. ऐसे समाज में अन्धविश्वास के पौधे तेज़ी से पनपते हैं. सांप्रदायिक फासीवाद के नए उभार के लिए समां बनाने में मिडिया की भी बड़ी भूमिका है. न्यूज़ चैनलों की घोर पूर्वाग्रस्त और आक्रामिक रिपोर्टिंग के साथ ही एक के बाद एक धार्मिक चैनलों ने रामजन्मभूमि मुद्दे पर संघ परिवार के आन्दोलन के लिए फिजां तैयार करने में भूमिका निभाई थी. टीवी पर भूत-प्रेत, जादू-टोना और अंधविश्वासों को फैलाने वाले कार्यक्रमों की भरमार है.
वाह भाई वाह ....................
यानी पूरी दुनिया में केवल इस्लाम ही सबसे पतित धर्म हैं ?
क्या तर्क दिए है क्या बातें कहीं हैं, जैसे पूरी दुनिया मुस्लिमो को देखते ही गोली मार देती हो ?
“हर मुसलमान आंतकवादी नहीं होता लेकिन हर आंतकवादी मुसलमान होता है.”
भाई आपके इस उपरोक्त कथन से मैं तो सहमत हूँ ......... की हर आतंकवादी मुस्लिम ही होता है ... ;)
कभी नाम देखे हैं अपने लोगो के .........जकाउल्लाह , मुजाहिद, इब्राहीम .... नाम ही सुन कर डर लगता है ....
कश्मीर और पाकिस्तान में चलने वाले हिन्दू (?) आतंकवादी कैम्पों की बात नहीं की आपने ........?
कहिये तो लम्बी लिस्ट दे दूं .............
वैसे जहाँ तक अंधविश्वास की बात हैं तो केवल कुरआन की बकवासें हमें विज्ञान की शिक्षा प्रदान करती हैं ......बाकि सारे वैज्ञानिक तो घास खोद रहें हैं न ?
तो लगे हाथों ये भी बता दे की आगे आने वाले समय में कौन कौन से अविष्कार आने वाले हैं दुनिया में ........ आपके मुहम्मद तो सभी कुछ क़यामत के दिन तक का लिख कर भागे हैं .......... क्यों ?
:) :( :P
@ अनुनाद सिंह जी, हमें संयम सिखाया जाता,कुरआन की बात मुझे धैर्य के साथ रखनी होगी, आपकी तरह नहीं 8 शब्दों के श्लोक में 10 गुण गिन दिये, और सर्वधर्म चैलेंज रख दिया,
श्लोक में 8 शब्द हैं और आप 10 गुण बता रहे हो, इन दो गुणों की व्याख्या करोः धैर्य = संयम, शब्दकोष के अच्छे अच्छे शब्द उठाकर बना दिया एक श्लोक जिसमें कुछ ऐसे गुण फिर भी रह गये वह भी जोड लो , सदाचार, सम्मान करने वाला, भलाई करने वाला, सहायता करने वाला, फिर भी हाथ किया आयेगा एक अच्छा श्लोक, मनु पर में बहुत कुछ प्रस्तुत करूंगा यही वह नाम है जहां इस्लाम और हिन्दू धर्म एक माना जाता है, महाराज तो समझ गये होंगे आप को समझा दूंगा, इतने गुणों में से एक गुण्ा संयम पर चलो यह इकबाल का तराना नहीं के फोरन उठाकर लादूं, धीरे धीरे मेरी सरकार लगता है चाणक्य निति नहीं पढी, मैंने भी नहीं पढी एक एक करके सारे वेद-कुरआन की शिक्षा दूंगा, फिर भी क्रोघ कर रहे हो तो, थोडा इसमें मगज मार लो शायद कुछ बहस के और मुद्दे मिल जायें,
राजेन्द्र नारायण लाल अपनी पुस्तक ‘इस्लाम एक स्वयं सिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था‘ में लेख ‘इस्लाम की विशेषताऐं’ में 20 बातें लिखते हैं-
(1) इस्लाम की सबसे प्रधान विशेषता उसका विशुद्ध एकेश्वरवाद है। हिन्दू धर्म के ईश्वर-कृत वेदों का एकेश्वरवाद कालान्तर से बहुदेववाद में खोया तो नहीं तथापि बहुदेववाद और अवतारवाद के बाद ईश्वर को मुख्य से गौण बना दिया गया है। इसी प्रकार ईसाइयों की त्रिमूर्ति अर्थात ईश्वर, पुत्र और आत्मा की कल्पना ने हिन्दुओं के अवतारवाद के समान ईसाई धर्म में भी ईश्वर मुख्य न रहकर गौण हो गयां इसके विपरीत इस्लाम के एकेश्वरवाद में न किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ और न विकार उत्पन्न हुआ। इसकी नींव इतनी सुदृढ़ है कि इसमें मिश्रण का प्रवेश असंभव है। इसका कारण इस्लाम का यह आधारभूत कलिमा है- ‘‘मैं स्वीकार करता हूँ कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य और उपास्य नहीं और मुहम्मद ईश्वर के दास और उसके दूत हैं। मुहम्मद साहब को ईश्वर ने कुरआन में अधिकतर ‘अब्द’ कहा है जिसका अर्थ आज्ञाकारी दास है, अतएव ईश्वर का दास न ईश्वर का अवतार हो सकता है और न उपास्य हो सकता है।
(2) इस्लाम ने मदिरा को हर प्रकार के पापों की जननी कहा है। अतः इस्लाम में केवल नैतिकता के आधार पर मदिरापान निषेघ नहीं है अपितु घोर दंडनीय अपराध भी है। अर्थात कोड़े की सज़ा। इस्लाम में सिदधंततः ताड़ी, भंग आदि सभी मादक वस्तुएँ निषिद्ध है। जबकि हिन्दू धर्म में इसकी मनाही भी है और नहीं भी है। विष्णु के उपासक मदिरा को वर्जित मानते हैं और काली के उपासक धार्मिक, शिव जैसे देवता को भंग-धतुरा का सेवनकर्ता बताया जाता है तथा शैव भी भंग, गाँजा आद का सेवन करते हैं।
(3) ज़कात अर्थात अनिवार्य दान। यह श्रेय केवल इस्लाम को प्राप्त है कि उसके पाँच आधारभूत कृत्यों-नमाज़ (उपासना) , रोज़ा (ब्रत) हज (काबा की तीर्थ की यात्रा), में एक मुख्य कृत्य ज़कात भी है। इस दान को प्राप्त करने के पात्रों में निर्धन भी हैं और ऐसे कर्जदार भी हैं ‘जो कर्ज़ अदा करने में असमर्थ हों या इतना धन न रखते हों कि कोई कारोबार कर सकें। नियमित रूप से धनवानों के धन में इस्लाम ने मूलतः धनहीनों का अधिकार है उनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे ज़कात लेने के वास्ते भिक्षुक बनकर धनवानों के पास जाएँ। यह शासन का कर्तव्य है कि वह धनवानों से ज़कात वसूल करे और उसके अधिकारियों को दे। धनहीनों का ऐसा आदर किसी धर्म में नहीं है।
(4) इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध है जबकि हिन्दू धर्म में दीपावली में जुआ खेलना धार्मिक कार्य है। ईसाई। धर्म में भी जुआ पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
(5) सूद (ब्याज) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए क़ुरआन में बाकी सूद को छोड देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर ईश्वर और उसके संदेष्टा से युद्ध् की धमकी दी गई है। (कुरआन 2 : 279)
(6) इस्लाम ही को यह श्रेय भी प्राप्त है कि उसने धार्मिक रूप से रिश्वत (घूस) को निषिद्ध् ठहराया है (कुरआन 2:188) हज़रत मुहम्मद साहब ने रिश्वत देनेवाले और लेनेवाले दोनों पर खुदा की लानत भेजी है।
(7) इस्लाम ही ने सबसे प्रथम स्त्रियों को सम्पति का अधिकार प्रदान किया, उसने मृतक की सम्पति में भी स्त्रियों को भाग दिया। हिन्दू धर्म में विधवा स्त्री के पुनर्विवाह का नियम नहीं है, इतना ही नहीं मृत पति के शव के साथ विधवा का जीवित जलाने की प्रथा थी। जो नहीं जलाई जाती थी वह न अच्छा भोजन कर सकती थी, न अच्छा वस्त्र पहन सकती थी और न शुभ कार्यों में भाग ले सकती थी। वह सर्वथा तिरस्कृत हो जाती थी, उसका जीवन भारस्वरूप हो जाता था। इस्लाम में विधवा के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। पति की मृत्यू के चार महीने दस दिन बाद वह अपना विवाह कर सकती है।
(8) इस्लाम ही ने अनिर्वा परिस्थिति में स्त्रियों को पति त्याग का अधिकार प्रदान किया है, हिन्दू धर्म में स्त्री को यह अधिकार नहीं है। हमारे देश में संविधान द्वारा अब स्त्रियों को अनेक अधिकार मिले हैं।
(9) यह इस्लाम ही है जिसने किसी स्त्री के सतीत्व पर लांछना लगाने वाले के लिए चार साक्ष्य उपस्थित करना अनिवार्य ठहराया है और यदि वह चार उपस्थित न कर सके तो उसके लिए अस्सी कोडों की सज़ा नियत की है। इस संदर्भ में श्री रामचन्द्र और हज़रत मुहम्मद साहब का आचरण विचारणीय है। मुहम्मद साहब की पत्नी सुश्री आइशा के सतीत्व पर लांछना लगाई गई थी जो मिथ्या सिद्ध हुई, श्रीमति आइशा निर्दोष सिद्ध हुई। परन्तु रामचन्द्र जी ने केवल संशय के कारण श्रीमती सीता देवी का परित्याग कर दिया जबकि वे अग्नि परीक्षा द्वारा अपना सतीत्व सिद्ध कर चुकी थीं। यदि पुरूष रामचंद्र जी के इस आचार का अनुसरण करने लगें तो कितनी निर्दाष सिद्ध् की जीवन नष्ट हो जाए। स्त्रियों को इस्लाम का कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने निर्दोष स्त्रियों पर दोषारोपण को वैधानिक अपराध ठहराया।
(10) इस्लाम ही है जिसे कम नापने और कम तौलने को वैधानिक अपराध के साथ धार्मिक पाप भी ठहराया और बताया कि परलोक में भी इसकी पूछ होगी।
(11) इस्लाम ने अनाथों के सम्पत्तिहरण को धार्मिक पाप ठहराया है। (कुरआनः 4:10, 4:127)
(12) इस्लाम कहता है कि यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से प्रेम करो।
(13) इस्लाम कहता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है जो उसके बन्दों के साथ अधिक से अधिक भलाई करता है।
(14) इस्लाम कहता है कि जो प्राणियों पर दया करता है, ईश्वर उसपर दया करता है।
(15) दया ईमान की निशानी है। जिसमें दया नहीं उसमें ईमान नहीं।
(16) किसी का ईमान पूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने साथी को अपने समान न समझे।
(17) इस्लाम के अनुसार इस्लामी राज्य कुफ्र (अधर्म) को सहन कर सकता है, परन्तु अत्याचार और अन्याय को सहन नहीं कर सकता।
(18) इस्लाम कहता है कि जिसका पडोसी उसकी बुराई से सुरक्षित न हो वह ईमान नहीं लाया।
(19) जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की एक बालिश्त भूमि भी अनधिकार रूप से लेगा वह क़ियामत के दिन सात तह तक पृथ्वी में धॅसा दिया जाएगा।
(20) इस्लाम में जो समता और बंधुत्व है वह संसार के किसी धर्म में नहीं है। हिन्दू धर्म में हरिजन घृणित और अपमानित माने जाते हैं। इस भावना के विरूद्ध 2500 वर्ष पूर्व महात्मा बुदद्ध ने आवाज़ उठाई और तब से अब तक अनेक सुधारकों ने इस भावना को बदलने का प्रयास किया। आधुनिक काल में महात्मा गाँधी ने अथक प्रयास किया किन्तु वे भी हिन्दुओं की इस भावना को बदलने में सफल नहीं हो सके। इसी प्रकार ईसाइयों भी गोरे-काले का भेद है। गोरों का गिरजाघर अलग और कालों का गिरजाघर अलग होता है। गोरों के गिरजाघर में काले उपासना के लिए प्रवेश नहीं कर सकते। दक्षिणी अफ्रीका में इस युग में भी गोर ईसाई का नारा व्याप्त है और राष्टसंघ का नियंत्रण है। इस भेद-भाव को इस्लाम ने ऐसा जड से मिटाया कि इसी दक्षिणी अफ्रीका में ही एक जुलू के मुसलमान होते ही उसे मुस्लिम समाज में समानता प्राप्त हो जाती है, जबकि ईसाई होने पर ईसाई समाज में उसको यह पद प्राप्त नहीं होता। गाँधी जी ने इस्लाम की इस प्रेरक शक्ति के प्रति हार्दिद उदगार व्यक्त किया है।।''
हम आभारी हैं मधुर संदेश संगम के जिन्होंने इस लेख को ‘इस्लाम की विशेषताऐं’ नामक पुस्तिका में छापा।
यार ये मुहम्मद कैरानावी और सलीम जी तो जहा भी मौका मिलता है ....... भर भर के copy paste मरते है |
अरे आप दोनों लोग इसलाम के प्रचार की जगह किसी और मुद्दे पे बात नहीं करते देखा, यार जिंदगी में बाकी विषय भी है चर्चा के लिए ........ जैसे यहाँ चर्चा मीडिया के झुकाव की तरफ हो रहा था और तुम लोगो ने एक दूसरे से लोहा लेना शुरू कर दिया ........ आखिर जबरजस्ती करने की आदत से बाज नहीं जाओगे .......
स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ किस दुनिया का समाचार पत्र पढ़ते हो जडा़ हमें भी बता दिया करों हिन्दुस्तान के बाहर जहाँ आर.एस.एस. और बजरंग दल नही है वहाँ क्यों मुस्लिम दंगे होते हैं जरा बता सकते हो। आज अगर मुस्लमान कही जलील होता है तो उसके पिछे तुम जैसे जिहाद सर्मथक जिम्मेदार है। आतंकियों का सर्मथन बन्द करों नही तो दुनिया कि नजर में किसी भी काबिल नही रहोगे किसी भी हवाई अड्डा, बस स्टाप, रेलवे स्टेशन, किसी भी सिनेमा हाल में जलिल किये जाओंगे और उसके बाद दुसरे को कोशते नजर आओगे
है ब्लाग स्वामी! तुमने मिडिया की सच्चाई को ऐसे पेश किया जिससे अगले सैंकडों साल तक यह लोग शर्मिंदा रहेंगे कि हमने अपने पैरों पर कुल्हाडी किंयू मारी, सब ठीक ठाक चल रहा था परन्तु अब मिडियो को पता लग गया कि हम एक ही समुदाय पर पिले पडे हैं, दर्शक की उंगलियां रिमोर्ट कन्टरोल दबा दबा कर दुख रही हैं इसलिये हमें अब दूसरे भारतीय समुदायों की ओर भी तो जाना चाहिये उधर का कुछ प्रस्तुत करेंगे तो यह नादेने के पैसे भी उनकी जेब में भरेंगे इसलिये बिना करे भी आमदनी हुआ करेगी, हैप्पी ब्लागिंग
चिंपलूनकर साहब को बतादो कि हमने सानिया मिर्जा की नेकर के साइज पर इतनी बहस की हिन्दुस्तान में नेकरों का प्रचलन आम होगया, और हमने उसका झंडे के साथ ऐसा चित्र खींचा कि वह तिरंगे का अपमान नज़र आया, जबकि उसे दिखाना खुद अपमान ही तो था, देख लो हम इस्लाम की कितनी मज़ाक उडाते हैं इसे जलील करने का कोई मौका हम नहीं छोडते और तुम कहते हो मिडिया हिन्दू विरोधी है, यह तो वही बात होगई 'उल्टा पुलिस चोर को डाँटे'
चिंपलूनकर साहब को बतादो, एक मुस्लिम हिन्दू होता है तो हम खूब नला धुलाकर पेश करते हैं, लाखों हिन्दू से मुस्लमान होते हैं वह हमें दिखाई नहीं देते, फिर भी कहते हो मिडिया हिन्दू विरोधी है,
चिंपलूनकर साहब को बतादो कि हम अर्थात मिडिया फतवों पर नये नये आइडिये सोचते हैं जैसे नीचे से हवा निकलने पर फतवा, दाढी पर फतवा, फिर हम मुसलमानों का खूब मजाक उडाते हैं, ऐसा प्रसार करते है कि लगे जैसे इस्लाम बदल गया है, यह सच्चाई तो हम किसी को जानने ही नहीं देते वह केवल धार्मिक राय ही तो है, मानने को बाघ्य नहीं
चिपलूनकर साहब को यह भी बतादो सारे समाचार पत्रों में धार्मिक कोना, धर्म कोण, धर्म पृष्ठ झांक लो सारे छोटे मोटे धर्म हो सकते हैं नहीं होता तो केवल वह जो 55 मुल्कों में झंडा फहरा रहा है, कहीं इस्लाम को कोई स्थान नहीं मिलता, किया इसी लिये कि फिर कोई नहीं टिकेगा, फिर कहते हो मिडिया हिन्दू विरोधी,
मेरा तो यही कहना केवल यह साहब टीवी पर नहीं पहुंचे बुलालो हमारी भी सिफारिश है परन्तु इनसे हमार सवाल करना राजीव गाँधी पर कीचड उछालने वाला लेख कितने में खरीदा और बगैर राजीव गाँधी ब्रिगेड के जागे वह रिपोर्ट मुद्दा फुस कैसे हो गई,
और भी बहुत कुछ है तब तक पढते रहोः
इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्त छ अल्लाह के चैलेंज
islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा हैं या यह Big game against Islam है
antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)
मिडिया को हिन्दू विरोधी बताने वाले से पूछो, यह ब्लागवाणी भी तो मिडिया में आती है कोई ब्लागवाणी से पूछे उपर के कमेंटस में बताये ब्लागों को जिनमें Rank-2 भी है को कियूं सदस्यता नहीं देती, हर इस््लाम का दुशमन इस हिन्दूवाणी पर रजिस्ट्रड है एक सुरक्षित दीवार इससे बरदाश्त नहीं होती, फिर कियूं अपना नाम यह ब्लागवाणी रखे हुये है कियूं नहीं हिन्दू वाणी,संघ वाणी, सनातन धर्म वाणी, चिपलूनकर वाणी आदि जैसा नाम रख लेती यह इनकी वाणी
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’