'रीता बहुगुणा जोशी का घर जला दिया गया..'
कारन यह था कि उन्होंने उ.प्र. की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा किसी दलित महिला के बलात्कार के बाद दिए गए एक बयान के विरुद्ध कुछ कठोर शब्द कह दिए..
देखते ही देखते एक अच्छा खासा बवाल मिल गया मीडिया को...
हर तरफ तहलका सा मच गया इस मामले को लेकर..
लोग परेशां..मीडिया बेचैन, नयी नयी बाइट्स लेने के लिए कि कब कौन क्या कहने वाला है? राहुल गाँधी की क्या प्रतिक्रिया है?सोनिया क्या कह रही हैं? विपक्षी पार्टी क्या कह रही है?कौन सी धारा लगेगी रीता पर?
तमाम सवाल..तमाम उलझनें...!!!
मायावती का बयान सुनते ही रीता को लगा कि जैसे सारी स्त्री जाति की अस्मिता के साथ कोई बड़ा मजाक हो गया है! देखते ही देखते स्त्री जाती की रक्षा के लिए उन्होंने मायावती पर ही एक अच्छा और तगड़ा बयान दे डाला. वैसे भी बहुत दिनों से रीता राजनीतिक परिदृश्य से बाहर सी लग रहीं थी, और वापसी का इस से बढ़िया क्या तरीका हो सकता था कि सारी नारी जाति की ही नेता बन जाओ? उन्होंने वही किया जो एक समझदार राजनीतिज्ञ करता. और फिर मीडिया तो था ही....
लेकिन अब बारी थी मायावती की..... उन पर बयान देने का अर्थ तो सीधे सीधे एक दलित महिला पर हमले जैसा था...मगर मायावती ने भी लाज रख ही ली....देखते ही देखते रीता को उनके बयान की सजा मिलने लगी....उधर पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके ले गयी..इधर दलित महिला रक्षकों ने भी अपनी तरफ से सजा की घोषणा करते हुए रीता का घर जला दिया...
अब दो महान महिलाओं की जंग भला यहीं कैसे ख़त्म हो सकती थी.....!??देखते ही देखते राजनीतिक तलवारें खिंच गयीं....सभी अपनी तलवारों पर धार धराने लगे.......कलावती के शुभचिंतक राहुल की ओर भी लोगों की नजरें लगी हुई थी......उन्होंने भी एक मंझे हुए तलवारबाज की तरह अपने शब्दों का वार कर दिया...सबकी उम्मीदें धरी की धरी रह गयी...कलावतियाँ भी उनके हमले से चकित.....
सदा से ही शांतचित्त मनमोहन जी की शांति अब भी भंग नहीं हुई....कहीं कोई बयान पकड़कर फिर से विपक्ष कमजोरी का ताना ना देने लगे इसलिए ..."झूठा बन जीने से अच्छा मैंने होठों को सी डाला...."
और विपक्ष .....? वो तो बेचारा हमेशा से ही कमजोरियां खोजता रहा है....लेकिन जब बयान ही नहीं दिए जायेंगे तो कमजोरी कहाँ से मिलेगी?
मीडिया हमेशा की तरह से एक पालतू कुत्ते की तरह...पूरी वफादारी से व्यवस्था का काम संभालने में लगा हुआ है....
ये सब देखकर मैं भी एक सुखद एहसास में डूब गया हूँ....कितना अच्छा सा लग रहा है कि कहीं बेरोजगारी नहीं बची हुई है!! मंहगाई का कोई मुद्दा नहीं है!! कोई किसान आत्महत्या नहीं कर रहा है!! कहीं गंगा के बिकने की खबर नहीं है!! सेज की सेज सजाने के लिए किसी किसान की ओर से विरोध नहीं हो रहा है!! जब से मीडिया में ये तहलका है, तबसे बिजली तो शायद जाना ही भूल गयी है!!
वाह! रे माया की माया......!!!
क्या है ये सब???
यह सब सत्ता और मीडिया का खेल है...जनता को भरमाने का...जब-जब राज्य में भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, आत्महत्या, लूट, दंगे, आतंक, मंहगाई चरम पर होते हैं, तब-तब राज्य ऐसे ही किसी मुद्दे का खेल खेलता है..और मीडिया उसके अनुचर की भूमिका निभाता है......
मुझे आश्चर्य इस बात का है कि एक रीता का घर जल गया पूरी व्यवस्था परेशान हो गयी है...मगर कितने घरों के चूल्हे नहीं जल पा रहे हैं इसकी चिंता किसी को नहीं है!!
और सबसे गंभीर प्रश्न तो यह है कि जिस महिला के बलात्कार को मुद्दा बनाकर नेता अपनी राजनीति चमका रहे हैं...मीडिया अपनी टी.आर.पी. बढा रहा है, वो पूरे परिदृश्य से ही गायब है!!!
एक घर जलने की चिंता है,मगर जिसकी पूरी जिंदगी जल गयी, उसकी किसी को खबर ही नहीं!!
बलात्कारी ने तो उस महिला के साथ सिर्फ एक बार बलात्कार किया होगा........लेकिन ये मीडिया और ये सत्ता उसके साथ रोज जो छ्लात्कार कर रहे हैं उसका क्या??
आखिर कब तक ये आम जनता आम की तरह चूस कर फेंकी जाती रहेगी??
कब समझेंगे लोग राज्य के इस खेल को??
कब तक लोग ऐसे बेकाम के मुद्दों में भटककर परेशां होते रहेंगे??
कब तक मीडिया सत्ता का अनुचर बना रहेगा??
क्या मीडिया की यही भूमिका है??
अब तो रोज रोज का ये वैचारिक बलात्कार बंद करो......!!
और भी समस्याएं है देश में...!!
- Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.
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