अमिताभ को लेकर राजनीति लगातार तेज हो रही है। कभी अमिताभ को आँखों पर बिठा कर रखने वाली कांग्रेस को आज पूरा बच्चन परिवार फूटी आँख भी नहीं सुहा रहा है। कभी अमिताभ की विरोधी रही भाजपा आज उनके पक्ष में कशीदे पढ़ रही है। बेहया मीडिया इस बेवजह के मुद्दे को तूल देने पर तुला है। देश के सामने खड़े असंख्य सवालों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। कांग्रेस अपनी निर्लज्जता के चरम पर है। यह वही कांग्रेस है जिसके राजीव गाँधी अमिताभ को अपने भाई की तरह लेकर चलते थे।
समय बीतने के साथ-साथ कांग्रेस से बच्चन परिवार का रिश्ता टूटता गया। लेकिन फिर भी जब तक सपा के साथ से कांग्रेस की सरकार चल रही थी, तब तक कांग्रेस को अमिताभ इतने बुरे नहीं लगे। लेकिन जैसे ही अमिताभ राजनीतिक दृष्टिकोण से निरर्थक हुए कि कांग्रेस को बच्चन परिवार का नाम भी काट खाने लगा। ......
दूध के धुले अमिताभ भी नहीं...
‘...सेठ, मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता..’ जैसे ही परदे पर यह आवाज गूंजती है, पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से भर जाता था। वह इसी व्यवस्था की बद इन्तजामी से परेशान होकर उस मुकाम पर पहुँचने वाले किसी शख्स की कहानी होती थी। साठ-सत्तर के दशक में जब गाँधी, लोहिया, जेपी आदर्श हुआ करते थे। जब व्यवस्था के विरुद्ध एक आक्रोश था, उस वक्त में अमिताभ ने खुद को उस जमात की आवाज बनाया। वह जमात, जो सिर्फ सोच सकती थी, लेकिन जिसे कुछ कर सकने का अधिकार नहीं था। तब परदे पर अमिताभ उसे एक सुकून देते दिखाई पड़ते थे। अमिताभ की यही छवि उन्हें महानायक बना गई थी। ‘जंजीर’, ‘खुदा गवाह’ बना रहा उस वक्त का अमिताभ एक महानायक जैसा ही था। जब वह अमिताभ ‘गंगा की सौगंध’ खाता था, तो हर किसी के दिल में वह सौगंध उतर जाती थी। यही वजह थी कि उस ‘कुली’ के घायल हो जाने भर से पूरे देश में एक हाहाकार सा मच गया लगता था। ...................
- अमित तिवारी
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