सम्पूर्ण सृष्टि एक गहरे संकट मे फंस गई है। मानवी सभ्यता ही नहीं सम्पूर्ण चराचर जगत का अस्तित्व खतरे में है। समाधान स्वयं में संकट बन गया है। कोई भी रास्ता दूर तक नहीं जाता। मनुष्य-केन्द्रीत विचार से भला नहीं होने वाला है। इस विचार से दुनिया कीचेन और कमोडिटीज में तब्दील हो जायेगी। प्रकृति की विनाशलीला तो मनुष्य-केन्द्रित विचार का ही परिणाम है। जनशक्ति का नायक हो या गणशक्ति का नायक, किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अब मनशक्ति का नायक ही तमाम समस्याओं का समाधान बनेगा।
तमाम वाद और प्रतिवाद पिट चुके हैं। मार्क्सवाद या पूँजीवाद, किसी में जनाकर्षण नहीं हैं। सभी ‘वाद’ ने समाज में निराशा को ही परोसा है। सभी वाद नकारा और अनुत्पादक हो गये हैं। अब एक ही वाद चलेगा, वह है ‘सम्बन्धवाद’। सम्बन्ध धर्म ही तमाम प्रश्नों का उत्तर बनेगा। मित्र-नायक ही युग का नायक बनेगा। विश्व से मैत्री और विश्वनाथ से प्रीति ही उसका प्रस्थान-बिन्दु होगा। हिंसा का द्वार मैत्री और करूणा के भाव से ही बंद होगा। आज का युग ‘सुपर पावर’ नहीं ‘सुपर पर्सन’ की मांग करता है। विश्वामित्र की अवधारणा भारत के कण-कण में व्याप्त है। ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ का भाव हमें दुनिया को बाजार नहीं, परिवार मानना सिखाता है। ‘जीयो और जीने दो’, ‘त्येन त्यक्तेन भुंजीथाः’ का दर्शन जीव, जगत और जगदीश से अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करता है। हम बाजार नहीं, बाजारवाद के खिलाफ हैं। ‘शुभ और लाभ’ चाहिये, ‘लाभालाभ’ नहीं। हमारा लाभ, शुभ से नियंत्रित था।
उपभोक्तावाद के इस चरम ने नई अराजकता को जन्म दिया है, जो हिंसा का द्वार खोलता है। आतंकवादी को खत्म कर आतंकवाद नहीं मिटाया जा सकता। आतंकवाद के कारणों की पड़ताल जरूरी है। आतंकवादी को मिटाने से अमेरिका सुरक्षित होगा, पर आतंकवाद खत्म होने से विश्व-सुरक्षित होगा। ‘सीआईए’ हो या ‘आईएसआई’ दोनों के लिए आतंकवाद जरूरी है।
विषमता, गैरबराबरी को मिटाये बिना देश और दुनिया से अराजकता नहीं मिटेगी। ‘‘जब तक धरती पर शैतान रहेगा, भूखा नंगा इंसान रहेगा’’, शैतान और इस शैतानी-सभ्यता को खत्म करना जरूरी है। यह शैतान न केवल इंसानी सभ्यता के लिए खतरनाक है, बल्कि पूरी सृष्टि के लिए संकट बन गया है। कोपेनहेगेन की नौटंकी हम देख रहे हैं। ‘क्योटो संधि’ का क्या हुआ। कोपेनहेगेन हो या क्योटो, कहीं भी जीवन-मूल्य और जीने के तरीके पर विमर्श नहीं है। कोई भी देश अपनी जीवन पद्धति को छोड़ना नहीं चाहता; और यह जीवन पद्धति विनाशक है। बिना भागवत व्यक्तित्व के, विश्व में कोई सही नेतृत्व नहीं घटित हो सकता। चाहे गाँधी भारत का हो या अमेरिका का, बड़े फलक वाला नेतृत्व चाहिये। जिसके भीतर मैत्री हो, करूणा हो, प्रीति हो तथा जो सम्पूर्ण चर-अचर से एकात्म स्थापित करने वाला हो, वही इस धरा को बचायेगा। तभी कुदरत की यह बेहतरीन दुनिया जीने लायक बनी रह पाएगी।
अब सम्बन्ध-धर्म ही संसार की सुरक्षा करेगा
Posted by
AMIT TIWARI 'Sangharsh'
On
4/20/2010 11:40:00 am
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