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पर्यावरण बचाने का शोर क्योटो से लेकर कोपेनहेगन तक सुनाई पड़ रहा है. पर्यावरण असंतुलन का खतरा अब पुस्तकीय नहीं रहा, यह अब हर व्यक्ति को प्रभावित कर रहा है. पर्यावरण पर मंडराता खतरा अब किसी एक कारण से नहीं रह गया है, बल्कि आधुनिक मानवी सभ्यता का विकास ही प्रकृति के विनाश पर आधारित हो गया है. हर व्यवहार, हर तकनीक और हर विकास प्रकृति विरोधी हो गया है.
सूचना क्रांति के इस दौर में मोबाइल, मोबाइल टॉवर, माइक्रोवेव ओवन, इलेक्ट्रोनिक खिलौने, एक्सरे मशीनों से निकलने वाला रेडियेशन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो रहा है. सूचना-तकनीकी के विकास को रोका नहीं जा सकता, पर इससे उत्पन्न होने वाले खतरों की अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण है. अंधाधुंध कमी के चक्कर में मोबाइल कम्पनियाँ हों, या अन्य घरेलु सामान बनाने वाली इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक कम्पनियाँ स्वास्थ्य के प्रति इनकी अनदेखी जगजाहिर है.
उपर्युक्त बातें कोजेंट ईएमआर सोल्यूशंस लिमिटेड कंपनी के अधिकारी मो. ज़फर ने कही. कोजेंट इएमआर सोल्यूशंस लिमिटेड भारत में विकिरण सुरक्षा उपकरणों के क्षेत्र में काम कर रही एक मात्र कंपनी है. जहाँ एक ओर तमाम बड़ी कम्पनियाँ मुनाफाखोरी में लगी हैं, वहीँ कोजेंट कंपनी ने समय और समाज के साथ अपने सरोकारों को समझते हुए आमजन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तमाम उपकरणों से निकलने वाले विकिरणों के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के उत्पादों को बाज़ार में उतारा है. कंपनी इस दिशा में लम्बे समय से लगी है.
अब कंपनी ने अपने कदमो को और आगे ले जाते हुए प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की दिशा में भी पहल की है. कंपनी के सीइओ मो. ज़फर ने बताया कि कंपनी ने प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की दिशा में प्रभावी कदम उठाया है. कंपनी अपने सभी उत्पादों की पैकिंग 100 प्रतिशत रिसाइकिल योग्य मैटर से कर रही है. कंपनी के सेल्स विभाग के वीपी अश्विनी ने बताया कि कंपनी के इस कदम से मासिक लगभग 24 मीट्रिक टन प्लास्टिक की बचत हो रही है.
कंपनी ने अपने अभियान को और अधिक बल प्रदान करने के उद्देश्य से राजस्थान की एक अन्य कम्पनी अक्ष ट्रेडविजन प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया है. अक्ष कंपनी के प्रमुख अभिषेक शर्मा ने बताया की उनकी कंपनी जो कि रत्न-पत्थर आदि के क्षेत्र में काम कर रही है, ने कोजेंट कम्पनी के प्रयासों की गंभीरता को समझते हुए उनके साथ समझौता किया है. एक प्रश्न का उत्तर देते हुए अभिषेक ने कहा कि पहले वह स्वयं विकिरण उत्सर्जन की समस्या की गंभीरता पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन जैसे ही उन्हें इसकी गंभीरता का अंदाजा हुआ, उन्होंने इस क्षेत्र में कुछ सगुण प्रयास करने का निश्चय कर लिया था. इसी दिशा में कोजेंट कंपनी के प्रयासों ने उनके समूह को प्रभावित किया, तथा दोनों कम्पनियों ने इस क्षेत्र में मिलकर काम करने का निश्चय किया.





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मोबाइल एक छोटा सा यन्त्र जो आज कल आमिर गरीब सब के पास होता है । जिसके लाखों उपयोग हमें रोज सुनने और देखने को मिलते है। हम भी इसकी जरूरतो को मानते और समझते है। परन्तु आज मै आप की चेतावनी देना चाहूगी उन लोगो को जिन्हें शो ऑफ मतलब दिखावा करने का ज्यादा शौक है कृपया इस बात पर जरुर गौर करें ये मेरी आप सब से गुजारिश है कि किसी से भी सस्ते सेकंड हैण्ड मोबाइल लेने की गलती न करें ,जब तक आप को उस इन्सान या मोबाइल के बारे मै सारी मालूमात न होकहीं आप का भविष्य चढ़ावा न बन जाये दिखावे का आप को लग रहा होगा ,ये तो हम सब को पता है- इस में इतना खास क्या है हम जानते है सब इस बात को जानते है पर अमल कुछ ही करते है । आप को एक किस्सा सुनती हू और शायद जो रोज समाचार पढते होगे वो जानते हो -हमारे एक मित्र बी. टेक कर रहे थे, उन्हें मोबाइल का बड़ा शौक था ,उन्हें किसी आदमी ने एक नया handset ६०० रुपये मे दे दिया, वो बहुत खुश इतना महगा मोबाइल इतनी सस्ते में मिल गया उन्हों ने न आदमी के बारे मे पता किया न ही कोई पेपर लिए, कुछ दिन बाद पुलिस उनके घर पहुची और उन्हें जेल मे बंद कर दिया, उन्हों ने सब बताया पर किसी ने विश्वास नहीं किया मीडिया ने इस किस्से को और हवा दे दी परन्तु उन्हें भी पूरा सच नहीं पता था और उनका भविष्य तबाह हो गया ,अगर उन्होंने "दिखिवे" और "सस्ता मिल रहा है लेलो" के चक्कर मे न पड़ते तो आज वो एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर कर रहे होते लेकिन वो आज अपनी एक गलती के लिए हर पल रोते है, हम नहीं चाहते की किसी की भी जिंदगी मे ऐसा कुछ हो इस लिए हमारी आप सब से गुजारिश है की कृपया किसी भी वस्तु को लेने से पहले उसके सभी कागज जरुर देख ले अपनी छोटी छोटी इच्छाओ को पूरा करने के लिए अपनी जिन्दगी बरबाद न करे . किसी के दिखने से क्या होगा क्या वो आप को दे जायेगे ,नहीं ,आप अपनी जिंदगी को सही दिशा मे अग्रसर करे भविष्य मे आप इतने काबिल हो जायेगे की आप अपने ओर दुसरो की हर जरुरत को पूरा कर सकेगें। दिखावा कभी आप की जिंदगी पर भी भारी पड़ सकता है

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सैनिक का ख़त घरवालो के नाम

Posted by अमिताभ भूषण"अनहद" On 10/17/2009 03:16:00 pm 3 comments

लक्ष्मी की अर्चना

माँ हृदय रूपी दीप में वात्सल्य अपना भर लेना
पितृ प्रेम की बाती रख ,लक्ष्मी की अर्चना करना

भाई अपने हृदय दीप में तू ,राष्ट्र सेवा भाव भरना
कर्म की बाती रख कर ,लक्ष्मी की अर्चना करना

बहन अपने हृदय दीप में ,आँखों का सूनापन भरना
बचपन की अवीस्मर्निये यादो की बाती रखकर
लक्ष्मी की अर्चना करना

बेटा तेरा यह बाप कही , हो सके तुझे न देख सके
पर तू अपनी माँ की आँखों में ,मेरी तस्वीर निहार लेना

तुझसे अब मै क्या कहू सखे .............
दीप की नियति है ,अपने तल में अँधेरा समेटे रखना
तू त्याग साधना की प्रतिमूर्ति ,नित्य कर्म पथ पर
तिल- तिल कर जलती रहना
इस जन्म में मुझे क्षमा करना

प्रिये अपने हृदय दीप में ,सजल नयनों का जल भरना
बिरहा की बाती रखकर ,लक्ष्मी की अर्चना करना
लक्ष्मी की अर्चना करना (//)

अनहद


आज फिर से आजकल की, बातें याद आने लगी।
आज फिर बातें वही, रह-रह के तड़पाने लगीं।।

सोचता हूँ आज फिर से मैं कहूँ बातें वही।
दर्द हो बातों में, बातें कुछ अधूरी ही सही।।

फिर करूँ स्‍वीकार मैं, मुझमें है जो भी छल भरा।
है अधूरा सत्‍य, इतना है यहॉं काजल भरा।।

है मुझे स्‍वीकार, मेरा प्रेम भी छल ही तो था।
शब्‍द सारे थे उधारी, हर शब्‍द दल-दल ही तो था।।

जो भी बातें थी बड़ी, सब शब्‍द का ही खेल था।
फूल में खुशबू नहीं, बस खुशबुओं का मेल था।।

हाथ्‍ा जब भी थामता था, दिल में कुछ बासी रहा।
मुस्‍कुराता था मगर, हंसना मेरा बासी रहा।।

साथ भी चुभता था, लेकिन फिर भी छल करता रहा।
जिन्‍दगी में साथ के झूठे, पल सदा भरता रहा।।

मैं सभी से ये ही कहता, 'प्रेम मेरा सत्‍य है',
और सब स्‍वीकार मेरे सत्‍य को करते रहे।
मैंने जब चाहा, किया उपहास खुद ही प्रेम का,
कत्‍ल मैं करता रहा और, सत्‍य सब मरते रहे।।

सोचता हूँ क्‍या स्‍वीकारूँ, सत्‍य कितना छोड़ दूँ?
मन में जितनी भीतियॉं हैं, भीतियों को तोड़ दूँ।।

वह प्रेम मेरे भाग का था, भोगता जिसको रहा।
सब को ही स्‍वीकार थे, मैं शब्‍द जो कहता रहा।।

आज है स्‍वीकार मुझको, मैं अधूरा सत्‍य हूँ।
तट पे जो भी है वो छल है, अन्‍तरा में सत्‍य हूँ।।

सत्‍य को स्‍वीकार शायद, कर सकूं तो मर सकूं।
'संघर्ष' शायद सत्‍य से ही, सत्‍य अपने भर सकूं।।

- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी. वी.

(चित्र गूगल सर्च से साभार)
लेख से सहमति है, तो कृपया यहॉं चटका लगायें


अकारण ही... आज अकारण ही मन अपने अन्‍दर के खालीपन को स्‍वीकारना चाह रहा है। शब्‍द - अर्थ और फिर अर्थ्‍ा के भीतर के अर्थ। कितना ही छल भरा है मन में।
सच को स्‍वीकारने का साहस होता ही कब है। कब स्‍वीकार पाया हूँ अपने अर्थों के भीतर के अर्थ को। कई मर्तबा स्‍वीकार भी किया, तो ऐसी व्‍यंजना के साथ, कि सुनने वालों ने उस स्‍वीकारोक्ति को भी मेरी महानता मानकर मेरे भीतर के उस सत्‍य को धूल की तरह झाड़ दिया।

ऐसा ही एक सत्‍य है, 'स्‍त्री-सम्‍मान और मैं'। स्‍त्री होना ही पूर्णता है। स्‍त्री स्‍वयं में शक्ति का रूप है। स्‍त्री - शक्ति का सम्‍मान करना ही नैतिकता है। स्‍त्री का अपमान करना, निष्‍कृष्‍टतम् पाप है।

इन बातों का ऐसा प्रभाव हुआ, कि मैं भी स्‍त्री-शक्ति को विशेष रूप से खोजकर, उनका सम्‍मान करने लगा। अक्‍सर सड़क किनारे से गुजरते हुये ये ख्‍याल आ जाता था कि काश कोई सुन्‍दर स्‍त्री-शक्ति लड़खड़ाये, और मैं दौड़कर उसकी सहायता और सम्‍मान कर सकूं।

सोच रहा हूँ कि आखिर स्‍त्री-सम्‍मान के लिये इतनी बातों और इतने प्रयासों की आवश्‍यकता ही क्‍यूँ आन पड़ी ?और फिर इनका अपेक्षित परिणाम क्‍यूँ नहीं मिला ? क्‍यूँ स्‍त्री - सम्‍मान की सहज भावना नहीं पैदा हो पाई इस मन में ? क्‍यूँ मुझ जैसे अधिकतर युवाओं में 'सुन्‍दरतम् स्‍त्री-शक्ति का अधिकतम् सम्‍मान' की भावना बनी रही ?
क्‍यूँ शक्तिहीन और सौन्‍दर्यविहिन के प्रति सहज सम्‍मान-भाव नहीं जागृत हो सका मन में ?

इन प्रश्‍नों का उत्‍तर अभी भी अज्ञेय ही है।
भीतर के इस सत्‍य का कारण, समाज से चाहता हूँ।
उत्‍तर अभी प्रतिक्षित है।

- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी. वी.
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
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बहुत दिनों से मैंने शायद

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 10/08/2009 11:37:00 pm 9 comments


बहुत दिनों से मैंने शायद, नहीं कही है दिल की बात...
बहुत दिनों से दिल में शायद, दबा रखे हैं हर ज़ज्बात..
बहुत दिनों से मैंने शायद, रिश्ते नहीं सहेजे हैं....
बहुत दिनों से यूँ ही शायद, बीत गयी बिन सोये रात...
-लेकिन इसका अर्थ नहीं मैं...रिश्ते छोड़ गया हूँ....

अपने दिल की धड़कन से ही, मैं मुंह मोड़ गया हूँ..

मेरा जीवन अब भी बसता है, प्यारे रिश्तों में,

बिन रिश्तों के जीवन सारा, जीते थे किश्तों में,.,,

मेरी जीत अभी भी तुम हो,

मेरी प्रीत अभी भी तुम हो..

पूज्य अभी भी है ये रिश्ता ..

दिल का गीत अभी भी तुम हो...

नहीं भूल सकता हूँ, मेरा, जीवन बसता है तुम में..

चाहे जहाँ भी तुम हो लेकिन, बसते हो अब भी हम में..


- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी.वी.
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
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