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बहुत दिनों से मैंने शायद

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 10/08/2009 11:37:00 pm 9 comments


बहुत दिनों से मैंने शायद, नहीं कही है दिल की बात...
बहुत दिनों से दिल में शायद, दबा रखे हैं हर ज़ज्बात..
बहुत दिनों से मैंने शायद, रिश्ते नहीं सहेजे हैं....
बहुत दिनों से यूँ ही शायद, बीत गयी बिन सोये रात...
-लेकिन इसका अर्थ नहीं मैं...रिश्ते छोड़ गया हूँ....

अपने दिल की धड़कन से ही, मैं मुंह मोड़ गया हूँ..

मेरा जीवन अब भी बसता है, प्यारे रिश्तों में,

बिन रिश्तों के जीवन सारा, जीते थे किश्तों में,.,,

मेरी जीत अभी भी तुम हो,

मेरी प्रीत अभी भी तुम हो..

पूज्य अभी भी है ये रिश्ता ..

दिल का गीत अभी भी तुम हो...

नहीं भूल सकता हूँ, मेरा, जीवन बसता है तुम में..

चाहे जहाँ भी तुम हो लेकिन, बसते हो अब भी हम में..


- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी.वी.
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
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