Bookmark Us!
Showing posts with label बहुत दिनों के बाद. Show all posts
Showing posts with label बहुत दिनों के बाद. Show all posts


आज फिर से आजकल की, बातें याद आने लगी।
आज फिर बातें वही, रह-रह के तड़पाने लगीं।।

सोचता हूँ आज फिर से मैं कहूँ बातें वही।
दर्द हो बातों में, बातें कुछ अधूरी ही सही।।

फिर करूँ स्‍वीकार मैं, मुझमें है जो भी छल भरा।
है अधूरा सत्‍य, इतना है यहॉं काजल भरा।।

है मुझे स्‍वीकार, मेरा प्रेम भी छल ही तो था।
शब्‍द सारे थे उधारी, हर शब्‍द दल-दल ही तो था।।

जो भी बातें थी बड़ी, सब शब्‍द का ही खेल था।
फूल में खुशबू नहीं, बस खुशबुओं का मेल था।।

हाथ्‍ा जब भी थामता था, दिल में कुछ बासी रहा।
मुस्‍कुराता था मगर, हंसना मेरा बासी रहा।।

साथ भी चुभता था, लेकिन फिर भी छल करता रहा।
जिन्‍दगी में साथ के झूठे, पल सदा भरता रहा।।

मैं सभी से ये ही कहता, 'प्रेम मेरा सत्‍य है',
और सब स्‍वीकार मेरे सत्‍य को करते रहे।
मैंने जब चाहा, किया उपहास खुद ही प्रेम का,
कत्‍ल मैं करता रहा और, सत्‍य सब मरते रहे।।

सोचता हूँ क्‍या स्‍वीकारूँ, सत्‍य कितना छोड़ दूँ?
मन में जितनी भीतियॉं हैं, भीतियों को तोड़ दूँ।।

वह प्रेम मेरे भाग का था, भोगता जिसको रहा।
सब को ही स्‍वीकार थे, मैं शब्‍द जो कहता रहा।।

आज है स्‍वीकार मुझको, मैं अधूरा सत्‍य हूँ।
तट पे जो भी है वो छल है, अन्‍तरा में सत्‍य हूँ।।

सत्‍य को स्‍वीकार शायद, कर सकूं तो मर सकूं।
'संघर्ष' शायद सत्‍य से ही, सत्‍य अपने भर सकूं।।

- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी. वी.

(चित्र गूगल सर्च से साभार)
लेख से सहमति है, तो कृपया यहॉं चटका लगायें

बहुत दिनों से मैंने शायद

Posted by AMIT TIWARI 'Sangharsh' On 10/08/2009 11:37:00 pm 9 comments


बहुत दिनों से मैंने शायद, नहीं कही है दिल की बात...
बहुत दिनों से दिल में शायद, दबा रखे हैं हर ज़ज्बात..
बहुत दिनों से मैंने शायद, रिश्ते नहीं सहेजे हैं....
बहुत दिनों से यूँ ही शायद, बीत गयी बिन सोये रात...
-लेकिन इसका अर्थ नहीं मैं...रिश्ते छोड़ गया हूँ....

अपने दिल की धड़कन से ही, मैं मुंह मोड़ गया हूँ..

मेरा जीवन अब भी बसता है, प्यारे रिश्तों में,

बिन रिश्तों के जीवन सारा, जीते थे किश्तों में,.,,

मेरी जीत अभी भी तुम हो,

मेरी प्रीत अभी भी तुम हो..

पूज्य अभी भी है ये रिश्ता ..

दिल का गीत अभी भी तुम हो...

नहीं भूल सकता हूँ, मेरा, जीवन बसता है तुम में..

चाहे जहाँ भी तुम हो लेकिन, बसते हो अब भी हम में..


- अमित तिवारी 'संघर्ष', स्‍वराज टी.वी.
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
IF YOU LIKED THE POSTS, CLICK HERE
Top Blogs


चिट्ठी आई है...

व्‍यक्तिगत शिकायतों और सुझावों का स्वागत है
निर्माण संवाद के लेख E-mail द्वारा प्राप्‍त करें

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

सुधी पाठकों की टिप्पणियां



पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
****************************************** गूगल सर्च सुविधा उपलब्ध यहाँ उपलब्ध है: ****************************************** हिन्‍दी लिखना चाहते हैं, यहॉं आप हिन्‍दी में लिख सकते हैं..

*************************************** www.blogvani.com counter

Followers