इस बरस खेती हुई ऐसी भरी बरसात में;
खेत में पानी भरा था और दाना हाथ में|
मेहेरबानी इस कदर, की खुदा ने इस बरस;
कश्तियाँ उम्मीद की सब बह गयी बरसात में|
दावतों का सिलसिला, कुछ यूं चला है उम्रभर;
भूख की कुछ खीर-पूरी, है भरी परात में|
पहले बोते थे फसल, अब तरीके मौत के;
दिन में फांसी पर मरें या कूच कर लें रात में|
फाइलों में उग रही है खेत से ज्यादा फसल,
कुछ सिंचाई और भी अच्छी हुई है रात में.
बाप तो पिछले पहर में 'मुक्त' होकर चल दिया.
'संघर्ष' उसको 'कर्ज की बहियाँ' मिली सौगात में.
-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल.