जाने क्यूँ ये कलम आजकल प्रेम-गीत से डरती है,
प्रिय के मोल-तोल में होते हार-जीत से डरती है.
प्रीत भरी दो बातें अब क्यों लिखती नहीं है स्याही,
जाने अब किस भय में डूबा प्रेम-पंथ का राही.
माना कि संसार-समर में और बहुत से किस्से हैं;
बोटी-बोटी कटी लाश में सबके अपने हिस्से हैं.
किस कृपाण ने काटा होगा अंग कौन सा तन का,
जाने कौन हवा ने फूंका होगा चिराग आँगन का.
इस जैसे भ्रम प्रश्न अनेक होते हैं रोज समर में;
जाने कितने स्वप्न-महल, हर रोज जले हर घर में!
लेकिन क्यों मृत्यु-भय से जीवन-रस मर जाए,
प्रेम-सुधा झर जाए, द्वेष-गरल भर जाए.
लिखो प्रेम की गाथा हर पल, गीत प्रीत के रोज लिखो;
प्रियतम की दो बातें लिखो, उसके नयन सरोज लिखो.
निश्चय ही यह भ्रम माना, दो पल सुख की पाती तो है!
प्रियतम की मीठी बातों से, मुस्कान कहीं आती तो है!
-Amit Tiwari 'Sangharsh, Swaraj T.V.
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