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भारतीयों-पाकिस्तानियों को जिन्ना और नेहरु के विषय में अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है. यह भी कहने की जरूरत नहीं है कि दोनों महापुरुषों के सपनों का उनके द्वारा निर्मित देशों में क्या हश्र हुआ, अंतर सिर्फ उन्नीस या बीस का हो सकता है? नेतागण हिंदुत्व की दुहाई देकर, हमारे मासूम जनता का रक्त-तिलक लगाकर केंद्र और सूबाई सत्ता का उपभोग करते ही किस प्रकार गिरगिटिया रंग बदलने लगे. सिर्फ नरेन्द्र मोदी जैसे बिरले ही उसका अपवाद हो सकते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व रक्षामंत्री जसवंत सिंह, आर. एस. एस. के सरसंघचालक कुप्पा हल्ली सीता रमैय्या सुदर्शन जैसे लोग जिन्ना और हिंदुत्व की कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं- जनता महसूस कर रही है.


भारतीय समाज 'वसुधैव कुटुम्बकम' और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया' के सिद्धांत पर अमल करता आया है और हमारे लिए 'ग्लोबल विलेज' की अवधारणा नई नहीं है. हमने विदेशी प्रहार झेले हैं तथा प्रतिरक्षात्मक रणनीति ही अपनाई है, कभी आक्रामक प्रतिशोधी रणनीति पर नहीं चले. एक आम भारतीय होने के नाते मैं धर्मनिरपेक्ष पार्टी कांग्रेस से अपेक्षा करता हूँ कि, चूँकि आप पर तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है एवं सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से साबित होता है, कि अकलियत के भाइयों के प्रति आपकी पार्टीगत सोच प्रगतिशील है. कांग्रेस के नेतृत्व में हमारे मुसलमान भाई राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति, लोकसभाध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राज्यपाल आदि अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं.

अक्सर कहा जाता है कि नेहरु ने विभाजन स्वीकार कर लिया, लेकिन जिन्ना को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया... हम इतिहास को तो बदल नहीं सकते, लेकिन नेहरु जी के नाती-वधुओं अर्थात सोनिया गाँधी और मेनका गाँधी तथा परनाती राहुल गाँधी और वरुण गाँधी एवं परनातिन प्रियंका से अपील करता हूँ, कि वे ऐसी राजनीतिक परिस्थितिया तैयार करें, ताकि किसी मुस्लिम नेता को प्रधानमंत्री बनाकर उक्त ऐतिहासिक कलंक को धोया जा सके. इससे भारत-चीन संबंधों को भी बल मिलेगा.

कोरा सच है, कि भविष्य में सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीति राहुल-वरुण के आसपास ही घूमेगी. कांग्रेस पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के नाती एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, सलमान खुर्शीद या भाजपा भागलपुर के सांसद शहनवाज हुसैन को प्रधानमंत्री बनाने का साहस दिखाए तो २१ वीं सदी का इतिहास बदल सकता है. यह सांप्रदायिक सौहार्द का सबसे बड़ा नमूना होगा....और वोट बैंक की राजनीति......?
ऐसा करने के बाद पश्चाताप भी व्यक्त हो जायेगा..

-Kamlesh Pandey, Spl. Correspondent, Swaraj T.V.

2 Response to "जिन्ना-नेहरु प्रसंग और पश्चाताप..."

  1. Anonymous Said,

    अच्छा है.......
    एक और मुस्लिम चिन्तक पैदा हो गए हैं......
    लगे रहिये...

     

  2. लगे रहिये,! ऐसा ही विचार हमारे तथाकथित दलित भी रखते थे मायावती के बारे में, ज़रा यू पी की जाकर देखो क्या दुर्गती हो गई है उस प्रदेश की !

     


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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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