हमारे देश को आजाद हुए ६२ वर्ष हो चुके हैं. इस आजादी के लिए अनगिनत कुर्बानियां दी हैं इस माटी ने. कितने ही दीवानों ने लाठियाँ खायी इस आजादी के लिए. गाँधी ने 'नमक-सत्याग्रह' चलाया, विदेशी कपडों की होली जली. क्रांतिकारियों की कुर्बानियां आज भी गीतों में याद की जाती हैं. सच तो यह है कि जितना हम किताबों में पढ़ते हैं वो तो सिर्फ कुछ बड़े लोगों के नाम हैं, असल में जितने लोग कुर्बान हुए हैं इस आजादी की बलिवेदी पर उनकी तो गिनती करना भी संभव नहीं हो सकता..
अनगिनत ऐसे शहीद हैं जिन्होंने इस आजादी के लिए अपनी जान तो दे दी लेकिन इस राष्ट्र को उनका नाम भी नहीं पता है,,
वो शहीद जिन्होंने आम कौम के दुःख को दूर करने के लिए अपनी खुशियों को त्याग दिया..
उन्होंने तमाम दुःख सिर्फ इसलिए झेल लिए ताकि हम खुश रह सकें. धन्य हैं ऐसे पूर्वज. सर उनके नाम से ही सजदे करता है.
आज हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गए हैं,लेकिन क्या यही आजादी देना चाहते थे वो? आज राजनीति ने हमारी आजादी को गिरफ्त में लिया हुआ है. सच की आवाज को पार्टियाँ दबा देती हैं..
पहले पूरा देश अपना परिवार लगता था, और अब परिवार में भी दरार पड़ गयी है.
आजादी के समय देश पर कोई कर्ज नहीं था, आज खरबों के कर्ज में हम डूबे हुए हैं. मंहगाई चरम पर है. भ्रष्टाचार असीम हो गया है. हर तरफ नारेबाजी और मार काट है. किसी के पास पैसा रखने के लिए जगह की कमी पड़ रही है तो कोई पैसे-पैसे के लिए मोहताज है. देश का पैसा विदेशों में जा रहा है.
जब तक भूखमरी रहेगी, तब तक हिंसा रहेगी..और जब तक हिंसा रहेगी देश को आजाद कैसे कहा जा सकेगा?
किस से कहे आम जनता? उनसे, जो खुद ही लोगों का खून चूसते हैं?
पूर्वजों की कुर्बानियां निरर्थक गयी लगती हैं!!!!
-Anand, Swaraj T.V.
0 Response to "जन-आवाज को दबा रही है राजनीति.."