Blog Archive

Bookmark Us!


इस बरस खेती हुई ऐसी भरी बरसात में;
खेत में पानी भरा था और दाना हाथ में|

मेहेरबानी इस कदर, की खुदा ने इस बरस;
कश्तियाँ उम्मीद की सब बह गयी बरसात में|

दावतों का सिलसिला, कुछ यूं चला है उम्रभर;
भूख की कुछ खीर-पूरी, है भरी परात में|

पहले बोते थे फसल, अब तरीके मौत के;
दिन में फांसी पर मरें या कूच कर लें रात में|

फाइलों में उग रही है खेत से ज्यादा फसल,
कुछ सिंचाई और भी अच्छी हुई है रात में.

बाप तो पिछले पहर में 'मुक्त' होकर चल दिया.
'संघर्ष' उसको 'कर्ज की बहियाँ' मिली सौगात में.

-Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.

1 Response to "कश्तियाँ उम्मीद की सब बह गयी बरसात में!!!"

  1. Meenu Khare Said,

    बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल.

     


चिट्ठी आई है...

व्‍यक्तिगत शिकायतों और सुझावों का स्वागत है
निर्माण संवाद के लेख E-mail द्वारा प्राप्‍त करें

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

सुधी पाठकों की टिप्पणियां



पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
****************************************** गूगल सर्च सुविधा उपलब्ध यहाँ उपलब्ध है: ****************************************** हिन्‍दी लिखना चाहते हैं, यहॉं आप हिन्‍दी में लिख सकते हैं..

*************************************** www.blogvani.com counter

Followers