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'..........कंडोम, हमेशा रखिये साथ, क्या पता ज़िन्दगी में कब, कहाँ...........???!!'
मैं कोई विज्ञापन नहीं कर रहा हूँ..यह एक प्रख्यात कंडोम कम्पनी द्वारा दूरदर्शन पर दिखाए जा रहे एक विज्ञापन की पञ्च लाइन है. मैं आश्चर्य में हूँ कि आखिर इस पंक्ति का अर्थ क्या है?
विज्ञापन में क्या दिखाने का प्रयास किया जा रहा है?
क्या कहने का प्रयास हो रहा है?
क्या आदमी कुत्ते से भी गयतर हो चुका है, कि उसे पता ही नहीं कब, क्या हो जाए? कहते हैं कि कुत्ते का भी एक मौसम होता है, मगर लगता है कि आदमी बारहमासी कुत्ता हो चुका है!
फिर हम हल्ला मचाते हैं एड्स का. अरे ऐसे में एड्स नहीं तो क्या प्यार फैलेगा??!
आखिर हम किस संस्कृति की और बढ़ने के प्रयास में हैं? एड्स का हौव्वा है क्या?
सच तो ये है कि यहाँ नाको(राष्ट्रिय एड्स नियंत्रण संस्थान) के माध्यम से एड्स को रोका नहीं फैलाया जाता है!!! एड्स को रोकने का ये कैसा प्रयास है जो सरकार 'कंडोम' के रिंगटोन के जरिये करने का प्रयास कर रही है?
जितनी बार सरकार 'कंडोम-कंडोम' चिल्ला रही है अगर उतनी बार 'हरिओम' कहा होता तो शायद ज्यादा फायदा हो जाता!!
बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक जाल फैलाकर एड्स का विज्ञापन कर रही हैं और हम इस सुखद भ्रम में खोये हुए हैं कि ये सब एड्स को रोकने के लिए है. ८० प्रतिशत कंडोम के विज्ञापनों से यह स्पष्ट है कि ये सब मात्र उनके विज्ञापन का, और यौनिक स्वच्छंदता को बढ़ावा देने का प्रयास है. इन सभी विज्ञापनों में इसे एक आनंद प्राप्ति का साधन बताया जाता है, एड्स की रोकथाम या और इस जैसी बातें तो कहीं पीछे छूट जाती हैं, और यही कारन है कि कम पढ़े लिखे लोगों का बड़ा वर्ग इसे उसी रूप में जानता और समझता है, और उसकी उपलब्धता न होने पर उस जैसे और विकल्पों की तलाश करता है. यही तलाश कारन बन जाती है एड्स या उस जैसी गंभीर बीमारी का.
समझ नहीं आता सरकार एड्स रोक रही है या कंडोम की मार्केटिंग कर रही है? जनसत्ता, १९ जुलाई के अंक में एक समाचार पढने को मिला कि अब सरकार राजमार्गों के पेट्रोल पम्पों पर भी कंडोम की वेंडिंग मशीने लगाने जा रही है,,आश्चर्य.... ये क्या है?
क्या ऐसे ही एड्स रुकेगा?
भारत कभी एड्स का देश नहीं रहा है, क्योंकि यहाँ यौन स्वच्छंदता की आदत नहीं रही है. मगर अब लग रहा है कि हम एड्स के मामले में भी शीर्ष पर पहुंचना चाहते हैं.
यहाँ एड्स के रोकथाम का प्रयास नहीं बल्कि एड्स के इलाज का प्रयास ज्यादा हो रहा है. और कोई भी इलाज तभी कारगर है जब बीमारी हो. और इसीलिए बीमारी को बढ़ाने के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.
एड्स किसी कंडोम के इस्तेमाल से नहीं रुक सकता, न ही ए.आर.टी. के इस्तेमाल से.
एड्स को ख़त्म करना है तो जरूरी है कि सरकार ये हवाई विज्ञापन बंद कर के कुछ जमीनी कदम उठाये जो भारत की तासीर के हिसाब से हो.
इस सम्बन्ध में यह पंक्तियाँ बहुत ही प्रासंगिक हैं--
'हर तरफ शोर है, एड्स का दौर है,
कोई कहता है ये करो, कोई कहता है वो करो,
कोई कहता है ऐसे करो, कोई कहता है वैसे करो,
मगर आश्चर्य ....
कोई ये नहीं कहता कि चरित्र ऊँचा करो...'
शायद यह ज्यादा बेहतर तरीका हो सकता है एड्स से बचने का.

--Amit Tiwari 'Sangharsh', Swaraj T.V.

1 Response to "आदमी बारहमासी कुत्ता हो गया है!!!!!"

  1. Tullujee Said,

    Amit jee ye picture ish prashang par sahi baith raha hai. jara condom ke bare main agar samay ho to likhenge.

     


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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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