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ममता बनर्जी ने रेल बजट पास किया। बजट में ममता का ममत्व छलक रहा है, ऐसा मीडिया का भी कहना है।

हर बजट सुविधा और थोडी असुविधा लेकर आता है। हर बजट मिश्रित प्रतिक्रिया बटोरता है। इस बार भी पक्ष ने बजट को जनोन्मुखी बताया, तो विपक्ष ने जनविरोधी कहा।

बजट में क्षेत्रीय संतुलन की अपेक्षा खंडित होती रही है। ललित नाथ मिश्र, राम विलास पासवान, दिग्विजय सिंह, नीतिश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहार से जुड़े रहे है, इन्होने अपने बजट में बिहार का विशेष ख्याल रखा। उनके कार्यकाल में अन्य प्रान्तों की उपेक्षा का सवाल उभरा।

निःसंदेह ममता बनर्जी का व्यक्तित्व बेदाग है। अन्य मंत्रियों की तरह किसी गबन का आरोप नहीं है। न ही रेलवे में ठेकेदारी या अन्य खरीदारी पर पैसा वसूलने का आरोप। पर बंगाल में आसन्न चुनाव का भूत अवश्य इस रेल बजट पर सवार रहा है। ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनने और बनाने के कई निहितार्थ हैं। सिंगूर, नंदीग्राम और फ़िर लालगढ़ के संघर्ष से वामपंथ की मिट्टी पलीद हो रही है। वामपंथ की सरकार लगातार हारती जा रही है। लोकसभा चुनाव में वामपंथ की अर्थी निकली ही, रही सही कसर स्थानीय निकाय के चुनाव में निकल गई।

बंगाल वामपंथ का गढ़ माना जाता रहा है। कांग्रेस एवं अन्य पार्टियाँ हासिये पर रही हैं। ममता बनर्जी ने लोहा लिया, तृणमूल कांग्रेस वास्तव में ग्रास रूट की पार्टी बन गई। वहां हवाई राजनीति चल भी नहीं सकती थी। केवल लफ्फाजी एवं भावनात्मक मुद्दों पर बंगाल को घेरना मुश्किल था। ममता बंगाल के आगामी चुनाव की चिंता में हैं। वामपंथ के ताबूत में अन्तिम कील ठोकने के लिए ममता तैयार हैं। इस कारण इस रेल बजट में अगर चुनावी आहट सुनाई पड़ रही है, तो स्वाभाविक ही है।

अच्छी-अच्छी घोषणाएं तो हर रेल बजट में होती रही हैं, पर परिणाम क्या आया ये रेल और रेल स्टेशनों को देखकर लगाया जा सकता है। बजट में पैसा कितना बढ़ा या कम हुआ ये मायने नहीं रखता, मायना ये रखता है कि हर बजट के बाद परिणाम क्या आया? वाजिब पैसा देने के बाद भी व्यक्ति भेड़-बकरी की तरह यात्रा कर रहे हैं। भाई! यह कौन सा बिज़नस है कि होटल में पैसा दें और खाना भी न मिले। यदि यात्री से पैसा लेने के बाद भी आपके पास जगह नहीं है तो बेहतर है कि आप पैसा लें ही न। स्लीपर का किराया लेने के बाद भी यात्री को सीट न देना, यह घोर अन्याय और अपराध है रेलवे का।

लालू रेल-मुनाफा का ढिंढोरा तो पीटते रहे, मगर किसकी कीमत पर? पैसेंजर के साथ जानवर सा सलूक करके!ममता को बजट में ममता दिखाने की जरूरत नहीं है, पैसेंजर उनकी दया का पात्र नहीं है। वह वाजिब पैसा देता है, उससे उचित सुविधा पाने का अधिकार है।

हर रेल मंत्री अच्छी छवि के लिए अच्छी घोषणाएं करता है। मगर छवि का वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता। रेल अपने मानकों पर खरी हो, यह किसी भी रेल बजट का जरूरी हिस्सा है। वोट बैंक बनाना भी राजनीति की जरूरी जरूरत है, पर देश को समग्रता में देखना भी उतना ही जरूरी है।

ममता बनर्जी बंगाल की नेता जरूर हैं, मगर बंगाल की रेलमंत्री नहीं! आशा है अगले बजट में ममता पूरे देश का रेल बजट पेश करेंगी न की सिर्फ बंगाल का

--Vijayendra, Group Editor, Swaraj T.V.

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पाश ने कहा है कि -'इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी होगी, सपनों का मर जाना। यह पीढ़ी सपने देखना छोड़ रही है। एक याचक की छवि बनती दिखती है। स्‍वमेव-मृगेन्‍द्रता का भाव खत्‍म हो चुका है।'
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